‘आमार-सोनार बांग्ला’
अब से 52 वर्ष पूर्व भारत ने एशिया महाद्वीप में इतिहास रच कर एक नये देश बांग्लादेश को दुनिया के मानचित्र पर खड़ा कर दिया था और उस पाकिस्तान को बीच से चीर कर दो टुकड़ों में विभाजित कर दिया था जिसे खुद 1947 में भारत को विभाजित करके अस्तित्व में लाया गया था। 16 दिसम्बर 1971 से पहले पूर्वी पाकिस्तान कहे जाने वाले इस भू भाग का नया नाम ‘बांग्लादेश’ हो चुका था औऱ इसके निर्माता के रूप में इस क्षेत्र के लोकप्रिय नेता स्व. शेख मुजीबुर्ररहमान नवोदित राष्ट्र बांग्लादेश के राष्ट्रपिता के औहदे से नवाज दिये गये थे। इस्लामी देश पाकिस्तान का हिस्सा रहे बांग्लादेश को स्वतन्त्र होने पर शेख साहब ने धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया था और इसमें जन मूलक लोकतन्त्र की स्थापना की थी। तब से लेकर यह देश आज तक बीच-बीच में लोकतन्त्र व सैनिक शासन के हिचकोले खाते हुए भारत का सबसे निकटतम पड़ौसी बना हुआ है औऱ आज शेख साहब की पुत्री शेख हसीना वाजेद के नेतृत्व में खुशहाली की ओर बढ़ रहा है। इस देश को बनाने में भारत की तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने जिस दूरदर्शिता औऱ वीरता का परिचय दिया उससे पूरी दुनिया एक बारगी हिल गई थी और पाकिस्तान को मदद कर रहा अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश भी मानो तौबा बोल रहा था।
इन्दिरा गांधी ने अपनी कूटनीति व सैन्य नीति के बल पर अमेरिका समेत सभी उन पश्चिमी यूरोपीय देशों को करारा सबक सिखाया था जो पाकिस्तान के हक में खड़े हुए थे। पाकिस्तानी फौज ने बांग्लादेश के उदय से पूर्व वहां जनरल टिक्का खां के नेतृत्व में जो कहर बरपाया था और जुल्मों-सितम का बाजार गर्म किया था उसकी नजीर दोनों विश्व युद्धों के इतिहास में भी ढूंढे नहीं मिलती है। पाकिस्तानी फौज की वहशियाना हरकतों को बन्द करने के लिए भारत की फौजों ने पूर्वी पाकिस्तान में मार्च 1971 में गठित बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी का समर्थन किया और केवल 14 दिन में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में एक लाख पाकिस्तानी फौजियों से हथियार समेत समर्पण करा कर फौज की दुनिया में भी नया इतिहास लिख डाला। भारत ने यह काम तब के जनरल एस.एच.एफ. जे. मानेकशा के निर्देशन में किया था। पाकिस्तान की फौज का नेतृत्व कर रहे मेजर जनरल नियाजी ने अपने सारे हथियार भारत की फौज के लेफ्टि. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष डाल कर अपने 90 हजार से ज्यादा फौजियों की जान की भीख मांगी थी। इसके बाद पाकिस्तान की जेल से रिहा होने के पर शेख मुजीबुर्ररहमान भारत आये थे और उन्होंने दिल्ली में ही श्रीमती इन्दिरा गांधी के साथ एक जनसभा में हुंकार लगाई थी ‘आमार सोनार बांग्ला’। उसी दिन से भारत के गांव-गांव में उत्तर से लेकर दक्षिण तक यह वाक्य पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांटने का प्रतीक बन गया।
80 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी वाले इस देश के बहुसंख्य मुसलमान लोगों ने मुहम्मद अली जिन्ना के हिन्दू-मुस्लिम के आधार पर गढे़ गये ‘द्विराष्ट्र’ के सिद्धान्त को 1971 में कब्र मैं गाड़ कर एेलान कर दिया था कि इंसानियत का उपदेश देने वाले महात्मा गांधी का सन्देश ही सभी धर्मों और वर्णों के लोगों में भाईचारा स्थापित कर सकता है। इस देश के लोगों ने इसके साथ यह भी एेलान कर दिया कि मजहब से किसी देश की पहचान केवल फौरी तौर पर ही बनाई जा सकती है और मजहब कभी भी किसी देश के वजूद की गारंटी नहीं हो सकता। पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने अपनी बांग्ला पहचान व संस्कृति को 1947 में पाकिस्तान का हिस्सा बन जाने के बाद भी कभी नहीं छोड़ा और 1971 में यह सिद्ध कर दिया कि भारतीय संस्कृति का अभिन्न भाग बांग्ला संस्कृति उनकी रगों में बहती है जिसके चलते इस देश के लोगों ने गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के लिखे गीत को ही अपना राष्ट्र गान बनाया।
स्व. इदिरा गांधी ने एशिया में एक नये देश का निर्माण विशुद्ध मानवता के आधार पर करने में सफलता प्राप्त की और सिद्ध किया कि भारत के लोगों की नीति सर्वदा मानवता के पक्ष में ही रहेगी क्योंकि भारत की संस्कृति की यह सदियों से प्राण वायु रही है। बांग्ला देश युद्ध स्वतन्त्र भारत की ऐसी उपलब्धि कही जा सकती है जिसे प्राप्त करने पर भारत के अलग-अलग विचारधाराओं वाले सभी राजनैतिक दलों ने भी राष्ट्र हित में अपने दलगत स्वार्थ भुला कर श्रीमती इदिरा गांधी को ‘दुर्गा’ का अवतार बता दिया था। क्योंकि विजय भारत के लोगों के उन सिद्धान्तों की हुई थी जिन्हें श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में इस तरह परिभाषित किया गया है ‘सूरा सो पहचानिये जो लरै दीन के हेत’
भारत की फौजों ने दिसम्बर 1971 में युद्ध अपने निज के विस्तार या दुश्मन को अपने क्षेत्र से बाहर करने के लिए नहीं किया था बल्कि निरीह बांग्लादेशियों पर पाकिस्तानी फौज और इसके हुक्मरानों के अत्याचार को समाप्त करने के लिए मानवता की रक्षार्थ किया था।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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