न्याय की उम्मीद जगाता कदम
कोलकाता के एक अस्पताल में एक ट्रेनी डाक्टर के साथ रेप और मार्डर मामले का सुप्रीम कोर्ट ने सुओ मोटो यानि स्वत: संज्ञान ले लिया है। चीफ जस्टिस डी.वाई. चन्द्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से न्याय की उम्मीद जगा दी है। सुओ मोटो लेटिन शब्द है इसका अर्थ न्यायिक सक्रियता से सब के लिए न्याय को सुलभ बनाना है। स्वत: संज्ञान का मतलब है कोर्ट किसी भी केस पर खुद से हस्तक्षेप कर सकता है। यह प्रक्रिया सबको समुचित न्याय मिले, इसलिए शुरू की गई थी। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट किसी भी विषय पर स्वत: संज्ञान ले सकते हैं। अमूमन जब मौलिक अधिकार और न्याय का अधिकार हनन हो रहा होता है तो कोर्ट मामले में स्वत: संज्ञान लेती है। स्वत: संज्ञान अमूमन राज्य और केन्द्र सरकार के फैसले के खिलाफ ही होता है। सुप्रीम कोर्ट को संविधान की धारा 32 और 131 में किसी भी मामले में न्याय करने का अधिकार प्राप्त है।
सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट ने जब-जब स्वत: संज्ञान लिया है। तब-तब सरकार और पुलिस की टैंशन बढ़ी है। 1979 के भागलपुर जेल में 31 विचाराधीन कैदियाें की हत्या पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था तब बिहार सरकार को 14 पुलिसकर्मियों पर हत्या का केस दर्ज करना पड़ा था। सुप्रीम कोर्ट उन्नाव बलात्कार केस, मुज्जफरपुर के बालिका गृह में नाबालिग बच्चियों से यौन शोषण, लखीमपुर खीरी में प्रदर्शन कर रहे किसानों को कुचल कर मारे जाने। किसान आंदोलन के दौरान सड़कें बंद रहने, आईएएस कोचिंग सैंटर हादसा आदि कई महत्वपूर्ण केसों में स्वत: संज्ञान ले चुका है। भारत में कुख्यात आतंकवादियों को मृत्युदंड देने से पहले सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट रात के समय भी खोला गया था ताकि यह धारणा न बने कि किसी को फांसी की सजा बिना सुनवाई के ही दे दी गई है। भारतीय न्यायपालिका ने कई एेतिहासिक फैसले कर लोगों को इंसाफ दिलवाया है बल्कि लोकतंत्र की रक्षा भी की है। डाक्टर रेप और मर्डर केस में सुप्रीम कोर्ट का दखल बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस घटना का सीधा असर देशभर के डाक्टरों पर पड़ा है। देशभर में रोषपूर्ण प्रदर्शन हो रहे हैं। अस्पतालों में कामकाज ठप्प होने से मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कोलकाता पुलिस पांच दिन तक अंधेरे में तीर चलाती रही। अंतत: हाईकोर्ट ने जांच सीबीआई काे सौंपी।
कुछ ज्यादतियां दूसरों के मुकाबले ज्यादा हद पार करने वाली होती हैं। बलात्कार को मानवाधिकारों के सबसे भीषण उल्लंघनों में शुमार करना बिल्कुल उचित है। कोलकाता की स्नातकोत्तर (पीजी) मेडिकल छात्रा के भयावह बलात्कार और हत्या की हालिया घटना एक ऐसी जगह (राजकीय अस्पताल जहां वह काम करती थी) हुई जिसे उसका सुरक्षित आश्रय होना चाहिए था। इस पर देश को ठहर कर सोचना चाहिए। जिस दशा और जिन हालात में लाश मिली, उसमें किसी शक की गुंजाइश नहीं है कि यह सबसे जघन्य हिंसक कृत्य था और इतना दुस्साहसिक था कि यह सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के महफूज समझे जाने वाले परिसर में एक हॉल के भीतर हुआ। दुर्भाग्य से, हरेक बलात्कार की गंभीरता को इससे नापा जाता है कि उसने जनता का कितना ध्यान खींचा है और यह आक्रोश चयनात्मक होता है।
समस्या यहीं पर है यहां तक कि कानून लागू कराने वाले अधिकारी भी महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर कार्रवाई करने से पहले जनाक्रोश को मापते प्रतीत होते हैं। कोलकाता कांड इसका एक आदर्श उदाहरण है। मृत डॉक्टर के मां-बाप को कथित तौर पर पहले यह बताया गया कि उसने आत्महत्या की है, जो एक खुला झूठ था, जबकि, मौका-ए-वारदात पर यह किसी की, खासकर मेडिकल पेशेवरों की, नजर से नहीं बच सकता था कि यहां वास्तव में भयानक हमला और हत्या हुई है। क्या जान-बूझकर पर्दा डालने की जरूरत इसलिए पड़ी कि गृह और स्वास्थ्य दोनों मंत्रालय किसी और के नहीं, बल्कि राज्य की मुख्यमंत्री के पास है? या उस प्रशासनिक चूक के लिए जिम्मेदारी से बचने की खातिर यह किया गया जिसके चलते ऐसा अपराध घटित हुआ? अफसोस की बात है कि सरकार ने तब तक इंतजार करना पसंद किया जब तक कि इस वीभत्स अपराध पर जनाक्रोश को राजनीतिक रूप से रोक पाना नामुमकिन नहीं हो गया। दुख की बात यह है कि इस मामले में भी सियासत कम होने का नाम नहीं ले रही। सीबीआई परत दर परत केस को खोलने में जुटी है। देखना होगा कि जांच किस निष्कर्ष तक पहंुचती है जिस तरह महिलाओं के प्रति जघन्य अपराध बढ़ रहे हैं। उससे यह सवाल तो उठता है कि क्या समाज मनोविकृतियों से बीमार है अगर है तो समाज में मनोविकार खत्म करने के लिए क्या करना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट के दखल से यह सुनिश्चित होगा कि जांच एजैंसी जवाबदेह होगी। सुप्रीम कोर्ट स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा और अस्पतालों में सुरक्षा प्रोटोकाॅल की स्थापना के लिए सरकार को निर्देश जारी कर सकता है। देशवासियों को इंतजार रहेगा कि डाक्टर बेटी को इंसाफ कब मिलेगा?
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com