चम्पई सोरेन के विकल्प ?
गरीब लोगों की अमीर धरती के नाम से प्रसिद्ध झारखंड राज्य में राजनीतिक भूचाल आने की आशंका इसके पूर्व मुख्यमन्त्री श्री चम्पई सोरेन ने खड़ी कर दी है। चम्पई सोरेन को झारखंड राज्य का मुख्यमन्त्री विगत फरवरी महीने में तब बनाया गया था जब तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्री हेमन्त सोरेन को एक कथित धन शोधन मामले में जेल जाना पड़ा था। हेमन्त सोरेन ने तब उच्च राजनीतिक परंपराओं का निर्वाह करते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और अपनी जगह पार्टी के वरिष्ठ नेता चम्पई सोरेन को मुख्यमन्त्री बनाया था। विगत जुलाई महीने में जब हेमन्त सोरेन को देश के सर्वोच्च न्यायालय ने धन शोधन मामले में जमानत दी तो पुनः वह मुख्यमन्त्री के आसन पर बैठे और चम्पई सोरेन ने पद से इस्तीफा दे दिया। यह सत्ता हस्तांतरण बहुत सरलता के साथ सम्पन्न हुआ और चम्पई सोरेन ने उस समय किसी प्रकार का विरोध नहीं दिखाया परन्तु चम्पई सोरेन को पद छोड़े हुए और हेमन्त सोरेन सरकार में मन्त्री बने हुए अभी एक माह से कुछ ज्यादा ही समय हुआ था कि वह कहने लगे कि झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी में उनके साथ बदसलूकी हुई है और उन्हें प्रताडि़त तक किया गया है।
सवाल यह पैदा होता है कि जब उन्हें मुख्यमन्त्री बनाया गया था तो उनके साथ कैसा व्यवहार किया गया था? जाहिर है कि हेमन्त सोरेन के बाद पार्टी में वह सबसे योग्य व्यक्ति समझे गये थे और पार्टी के वफादार सिपाही भी समझे गये थे तभी उन्हें सत्ता की चाबी सौंपी गई थी। पद से उतरने के बाद ही ये समीकरण किस प्रकार गड़बड़ा गये? स्पष्ट है कि चम्पई सोरेन को पद का लोभ सता रहा है और उन्हें मुख्यमन्त्री पद छोड़ना भा नहीं रहा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी इस राज्य की सबसे लोकप्रिय व शक्तिशाली पार्टी है जिसके 81 सदस्यीय विधानसभा में 30 सदस्य हैं जबकि कांग्रेस के 16 व राजद का एक सदस्य है। यह गठबन्धन ही राज्य में सरकार चला रहा है जिसकी कमान झारखंड मुक्ति मोर्चा के हाथ में है। झारखंड राज्य बनाने में हेमन्त सोरेन के पिताश्री िशबू सोरेन ने कड़ा संघर्ष किया है और पुलिस की लाठियां भी खाई हैं औऱ जेल की सजा भी काटी है। अतः झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी सोरेन परिवार की पर्याय मानी जाती है, परन्तु लोकतन्त्र में यह भी कम दिक्कत की बात नहीं है कि जब भी सत्ता या पार्टी की चाबी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को सौंपी जाती है तो वह सत्ता से हटने पर बगावत करने पर उतर आता है जैसा कि चम्पई सोरेन कर रहे हैं।
इससे पूर्व हमने बिहार में जीतन राम मांझी प्रकरण भी देखा था जिसमें जीतन राम मांझी ने मुख्यमन्त्री पद के लिए अपने राजनीतिक आश्रयदाता नीतीश कुमार से ही बगावत कर दी थी। 2012 के बाद जब नीतीश कुमार ने एनडीए से अपना सम्बन्ध तोड़ा था और ऐलान किया था कि यदि 2014 के लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी जनता दल(यू) बिहार में हारी तो वह मुख्यमन्त्री पद से इस्तीफा दे देंगे। चुनावों में हार जाने पर उन्होंने अपना वचन निभाया और अपनी पार्टी के अति पिछड़े समुदाय के जीतन राम मांझी को मुख्यमन्त्री पद पर बैठा दिया, परन्तु जब राजनीतिक हालात बदलने लगे तो उन्होंने मांझी से पद छोड़ने का आग्रह किया जिसे जीतन राम मांझी ने ठुकरा दिया और अपनी पार्टी से ही विद्रोह करके विपक्षी भाजपा पार्टी के खेमे से हाथ मिलाने की व्यूह रचना की जिसमें उन्हें असफलता हाथ लगी। अब प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या चम्पई सोरेन भी मांझी की राह पर आगे चलना चाहते हैं और एक हाथ और ऊपर जाकर भाजपा में शामिल होना चाहते हैं। भाजपा के पास पहले से ही तीन- तीन पूर्व मुख्यमन्त्री हैं। इनके नाम हैं पूर्व केन्द्रीय मन्त्री अर्जुन मुंडा, वर्तमान भाजपा अध्यक्ष बाबू लाल मरांडी और ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास। इन तीनों को ही भाजपा क्या दे पा रही है जो चौथे पूर्व मुख्यमन्त्री को देगी। इनके अलावा पूर्व मुख्यमन्त्री मधु कोड़ा की धर्म पत्नी गीता कोड़ा भी भाजपा में हैं और िशबू सोरेन की एक पुत्रवधू सीता सोरेन भी भाजपा में हैं। इन सभी नेताओं की भाजपा में स्थिति देखी जा सकती है। इतने नेताओं के होने के बावजूद झारखंड में भाजपा मजबूत नहीं मानी जाती और यह समझा जाता है कि जिधर हेमन्त सोरेन होंगे विजय उधर ही होगी।
राज्य में चुनाव भी इस वर्ष के दिसम्बर महीने तक होने हैं और राज्य में इंडिया गठबन्धन मजबूत समझा जा रहा है। अतः भाजपा को चम्पई सोरेन को लेने से क्या लाभ होगा, यह भी मापा-तोला जा रहा है। भाजपा में जाने की अटकलों के बीच चम्पई सोरेन दिल्ली आ चुके हैं और कहा जा रहा है कि वह दिल्ली आने से पहले कोलकाता भी होकर आए हैं, जहां उन्होेंने भाजपा नेता सुवेन्दु अधिकारी से भेंट की और भाजपा में प्रवेश करने की अपनी संभावनाओं का पता लगाया। चम्पई सोरेन को वैसे जमीनी नेता माना जाता है, क्योंकि उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के साये तले काफी संघर्ष किया है, मगर उनकी छवि िशबू सोरेन की छवि की छाया में ही पनपी है। इस हकीकत को देखते हुए यदि वह भाजपा में प्रवेश करते हैं तो इसे उनकी छवि मंे इजाफा करने वाला कदम नहीं समझा जायेगा, क्योंकि मुख्यमन्त्री हेमन्त सोरेन का उनके हवाले से दिया गया यह बयान आजकल की राजनीति के अवसरवादी पन्ने की पर्तें खोलता है कि ‘धन के लालच में आजकल के राजनीतिज्ञ पाला बदलने में शर्म का अनुभव नहीं करते हैं’। दूसरी तरफ चम्पई सोरेन का दिल्ली पहुंचने पर यह कहना कि उनके सामने सभी विकल्प खुले हुए हैं, उनके अवसरवादी होने का सबूत पेश करता है। अब चम्पई सोरेन को यह चुनना है कि उनकी छवि झारखंड की जनता की निगाहों में किस प्रकार के नेता की बनेगी?