चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति
रिटायर्ड आईएएस अधिकारी ज्ञानेश कुमार और सुखवीर सिंह संधू ने नए चुनाव आयुक्त का पदभार सम्भाल लिया है। दोनों की नियुक्ति आम चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा से कुछ समय पहले ही की गई है। पिछले साल चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर ऐसा कानून बनाया गया जिसके तहत चयन समिति में देश के प्रधान न्यायाधीश की कोई भूमिका नहीं रही है और उनकी जगह एक केन्द्रीय मंत्री को दे दी गई है। चयन समिति में प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्री और विपक्ष के नेता को शामिल किया गया। इस कानून का विरोध विपक्ष ने जमकर किया था क्योंकि इसमें सरकार का पलड़ा भारी हो गया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष में कानून बनने के बाद भी आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने इसके जरिये चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था को कमजोर बना दिया है। पिछले सप्ताह ही निर्वाचन आयुक्त अरुण गोयल ने चुनाव आयुक्त पद से इस्तीफा दे दिया था। इससे पहले अनुप चन्द्र पांडे 15 फरवरी को चुनाव आयुक्त पद से रिटायर हुए थे। इस तरह तीन सदस्यीय चुनाव आयोग में केवल मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ही बच गए थे, इसलिए दोनों पदों का भरा जाना जरूरी था। इसलिए दोनों पदों को भरने की अनिवार्यता को पूरा कर लिया गया है।
लोकसभा में विपक्ष के नेता और चयन समिति के सदस्य अधीर रंजन चौधरी ने सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि उन्हें बैठक होने से एक रात पहले ही 212 नामों की सूची दी गई और बैठक शुरू होने के 10 मिनट पहले ही सरकार की ओर से 6 नामों का पैनल दिया गया। इतने कम समय में लोगों की ईमानदारी और अनुभव की जांच करना मुश्किल है। विपक्ष के नेता ने इस प्रक्रिया का विरोध करते हुए समिति में प्रधान न्यायाधीश को भी रखने की बात कही। संविधान के लागू होने से लेकर 15 अक्टूबर 1989 तक निर्वाचन आयोग एक सदस्यीय संवैधानिक निकाय था. यानी सिर्फ मुख्य चुनाव आयुक्त होते थे। 16 अक्टूबर 1989 से इस आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ ही दो और चुनाव आयुक्तों की व्यवस्था की गई। हालांकि 1990 में फिर से आयोग को एक सदस्यीय ही बना दिया गया और बाकी दो चुनाव आयुक्तों की व्यवस्था खत्म कर दी गई लेकिन अक्टूबर 1993 में मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ बाकी दो चुनाव आयुक्तों की व्यवस्था को फिर से बहाल कर दिया गया और यही व्यवस्था अभी भी जारी है।
अब सवाल उठता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और बाकी दोनों चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अब तक कैसे होते रही है। चूंकि नियुक्ति का संवैधानिक अधिकार राष्ट्रपति को है और इसके लिए पहले कोई सेलेक्शन कमेटी की व्यवस्था नहीं थी। हां, ये बात है कि सर्च कमेटी होती थी जो नामों की सूची तैयार करके देती और उस सूची से सरकार चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करती रही है। इस सर्च कमेटी के सदस्य कार्यकारी का ही हिस्सा माने जाने वाले अधिकारी होते थे।
फिलहाल नए कानून के तहत नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कर दी गई है। ज्ञानेश कुमार रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं। उन्हें अनुच्छेद 370 हटाने के दौरान जम्मू-कश्मीर की जिम्मेदारी दी गई थी और उन्हें सुप्रीम कोर्ट की ओर से अयाेध्या राम मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाकर 90 दिनों में लागू करने का दायित्व भी दिया गया था। उन्हें संसदीय मामलों के मंत्रालय में भी काम करने का व्यापक अनुभव रहा है। दूसरे चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू उत्तराखंड कैडर के रिटायर्ड अधिकारी हैं और मूल रूप से पंजाब से आते हैं। संधू उत्तराखंड के मुख्य सचिव भी रह चुके हैं। वह नैशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के चेयरमैन और मानव संसाधन मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग में अतिरिक्त सचिव पद पर भी रह चुके हैं। वह पंजाब के लुधियाना शहर के नगर निगम आयुक्त भी रहे हैं और उल्लेखनीय प्रदर्शन के लिए उन्हें राष्ट्रपति पदक से भी नवाजा जा चुका है।
चुनाव आयुक्त बने दोनों ही अधिकारियों के अनुभव को लेकर किसी तरह का कोई िववाद नहीं है। अतः इनकी नियुक्ति की सराहना ही की जानी चाहिए। ऐसे में विपक्ष की शिकायत का कोई आधार नहीं रह जाता। यद्यपि चुनाव आयुक्तों की िनयुक्ति की प्रक्रिया पर आपत्ति जताने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर है जिस पर आज भी सुुनवाई हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल नई नियुक्तियों पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला देता है। इस पर तो बाद में देखा जाएगा फिलहाल नए चुनाव आयुक्तों ने मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ आम चुनावों के कार्यक्रम को लेकर बैठक भी कर ली है। चुनाव आयोग पर हमेशा ही सत्ता के पक्ष में काम करने का आरोप लगाया जाता रहा है। लोग आज भी चुनाव आयुक्त रहे स्वर्गीय टी.एन. शेषन को याद करते हैं, जिन्होंने अपने फैसलों से सत्ता और विपक्ष को चुनावी खामियां दूर करने को विवश किया और अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए चुनाव प्रक्रिया में अनेक सुधार किए। अब क्योंकि आम चुनावों का ऐलान होने वाला है, तो सबकी नजरें इस बात पर हैं कि चुनाव आयाेग निष्पक्ष और स्वतंत्र ढंग से चुनाव कराएं और सारा कामकाज इतनी पारदर्शिता से हो कि देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया स्वस्थ रूप से कायम रह सके। नए चुनाव आयुक्तों को भी कामकाज को लेकर सतर्कता से काम करना होगा ताकि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर कोई आंच न आ सके।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com