India WorldDelhi NCR Uttar PradeshHaryanaRajasthanPunjabJammu & Kashmir Bihar Other States
Sports | Other GamesCricket
Horoscope Bollywood Kesari Social World CupGadgetsHealth & Lifestyle
Advertisement

भागवत का राष्ट्र निर्माण व सामाजिक समरसता पर जोर

06:15 AM Jun 12, 2024 IST
Advertisement

Bhagwat's Emphasis on Nation Building and Social Harmony: समय-समय पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के छठे प्रमुख मोहन भागवत सामाजिक समरसता, सद्भाव, संभाव, सदाचार व सद्बुद्धि को लेकर शिष्टाचार पर अपने बयान देते रहते हैं। इस बार के चुनाव को लेकर भी उन्होंने बड़ा सटीक भाषण दिया। रेशमबाग में डॉ. हेडगेवार स्मृति भवन परिसर में संगठन के “कार्यकर्ता विकास वर्ग-द्वितीय” के समापन कार्यक्रम में आरएसएस प्रशिक्षुओं की एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अब चुनाव खत्म हो चुके हैं। अब सारा ध्यान राष्ट्र निर्माण पर केंद्रित होना चाहिए। आरएसएस के एक कार्यक्रम में बोलते हुए श्री भागवत ने नई सरकार और विपक्ष को भी सलाह दी। इसमें उन्होंने संकेत दिया कि चुनाव और शासन दोनों के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव किया जाना चाहिए। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा मर्यादाओं को लांघना और अहंकार से परे रहने का सबक उन्होंने बखूबी संघ के कार्यकर्ताओं के मध्य दिया। नेताओं द्वारा भड़काने और समाज को बांटने वाले भाषणों से बचने को कहा। दूसरे शब्दों में उनका अर्थ था कि चुनाव अवश्य जीतने के लिए होते हैं मगर उन में भाषा पर संयम रखने की अति आवश्यकता होती है, क्योंकि नेता लोगों के आइडियल होते हैं। भागवत ने जब भी सार्वजनिक तौर पर कोई वक्तव्य दिया है तो उन्होंने विभिन्न धर्मों के बीच पुल बनाने, भाईचारे को हमेशा ही जोड़ने की बात कही, चाहे वह कोई भी धर्म हो अथवा समाज हो। उन्होंने इस्लाम और ईसाई धर्म को लेकर बड़ा बयान दिया कि इस्लाम और ईसाई जैसे धर्मों की अच्छाई और मानवता को अपनाया जाना चाहिए। सभी धर्मों के अनुयायियों को एक-दूसरे का भाई-बहन के रूप में सम्मान करना चाहिए।

मोहन भागवत ने बताया कि हजारों वर्षों से जारी अन्याय के कारण लोगों के बीच दूरियां हैं। उन्होंने आगे कहा कि आक्रमणकारी भारत आए और अपने साथ अपनी विचारधारा लेकर आए जिसका कुछ लोगों ने अनुसरण किया लेकिन यह अच्छी बात है कि देश की संस्कृति इस विचारधारा से प्रभावित नहीं हुई। उन्होंने कहा, “भारतीय समाज विविधतापूर्ण है लेकिन सभी जानते हैं कि यह एक समाज है और वे इसकी विविधता को स्वीकार भी करते हैं। सभी को एकजुट होकर आगे बढ़ना चाहिए और एक-दूसरे की उपासना पद्धति का सम्मान करना चाहिए।” भागवत के अंतरधर्म संभव पर प्रकाश डालते हुए भारत के चीफ इमाम डा. उमैर अहमद इलयसी ने कहा कि वे उनके मदरसे और मस्जिद में भी आए थे और बच्चों को आशीर्वाद देकर गए और यह भी कहा कि सभी को यह मानकर आगे बढ़ना चाहिए कि यह देश हमारा है और इस भूमि पर जन्म लेने वाले सभी लोग हमारे अपने हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अतीत को भूल जाना चाहिए और सभी को अपना मानना चाहिए। किसी भी धर्म में जातिवाद का कोई स्थान नहीं हाेता क्योंकि भगवान की निगाह में सभी बराबर होते हैं। मदरसे के बच्चों के संबंध में इलयासी ने बताया कि एक बार वे अपने मदरसे के बच्चों को एक गुरुकूल ले गए थे, जहां दोनों धर्मों के बच्चों का ऐसा समावेश हुआ कि वापस जाते समय गुरुकूल और मदरसे के बच्चे ज़ार-ओ-क़तार (लगातार) रो रहे थे और जुदाई को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। यही सद्भावना का पाठ गीता, क़ुरान, रामायण, गुरुग्रंथ साहिब, बाइबल आदि भी देते हैं।

जहां तक मोहन भागवत का मुस्लिमों के संबंध में बयान है कि उनको डरने की कोई ज़रूरत नहीं है, ​बिल्कुल सही तर्क है, क्योंकि यही विपक्षी पिछले 75 वर्षों से मुस्लिमों को भड़काते चले आए हैं कि आरएसएस, जनसंघ और भाजपा मुस्लिमों के जानी दुश्मन हैं और अपना राज आते ही उनका सफाया कर देंगे। लोगों ने मोदी-1 और मोदी-2 में देख लिया कि पिछले 10 वर्ष में जिस सुख-चैन और शांति से मुस्लिम रहते चले आए हैं, वह इस बात का प्रतीक भी है कि हिंदुओं और मुसलमानों का डीएनए एक है, भले ही धार्मिक पंथ भिन्न हों। उन्होंने यह भी कहा था कि हर मस्जिद के नीचे खुदाई की बात नहीं करनी चाहिए। जिस प्रकार से मुस्लिम मोदी दौर में सुख-चैन से रहते चले आए हैं, वह दूसरी सरकारों के 60 वर्षों के राज से कहीं अधिक शांतिपूर्ण व अंतरधर्म समभाव व सद्भाव से प्रेरित था, न कि बीते 60 वर्षों की भांति जहां छोटे-बड़े मिलाकर लगभग दो लाख सांप्रदायिक दंगे हुए जिनमें लाखों मुस्लिम मारे गए। इसकी एक जीती-जागती मिसाल है कि जब भारत में एक ओर 1983 में विश्व नौन अलाएंड समिट चल रही थी तो उसी समय में असम में हजारों की संख्या में मुस्लिम मारे जा रहे थे।

चूंकि मोहन भागवत के बयान पर राजनीतिक बहस छिड़ गई है, उनके विरुद्ध आवाज़ उठाने वालों ने यह नहीं देखा कि विज्ञान भवन में अब से 9 वर्ष पूर्व सरसंघचालक ने यह भी कहा था कि बिना मुस्लिमों के द्वारा किए गए योगदान के भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती, जोकि बिल्कुल सच है। एक संगोष्ठी में भागवत ने यह भी कहा था कि मुस्लिम हिंदुओं से बिल्कुल अलग नहीं हैं क्योंकि उनका डीएनए एक है, भले ही आज पूजा पद्धति भिन्न हो। यही नहीं, इसी विज्ञान भवन में एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल सूफी कॉन्फ्रेंस की बल्कि अल्लाह के 99 नाम भी लिए। एक और सभा में अपने घर पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि वे हर मुस्लिम के एक हाथ में क़ुरान और दूसरे में कम्प्यूटर देखना चाहते हैं,साथ ही यह भी कहा कि वे मुसलमानों को अपनी संतान की भांति समझते हैं और उनके साथ बराबरी का सुलूक करना चाहते हैं। इतना सब होने के बाद भी अगर मुस्लिम आरएसएस और मोदी सरकार पर विश्वास नहीं करना चाहते तो उनको इसकी पूरी आज़ादी है, मगर इस में नुक्सान है, क्योंकि यदि वे शाहीन बाग वाली मानसिकता से ग्रसित रहेंगे तो अपने ही धर्म इस्लाम के इस कथन का उल्लंघन करेंगे, जिस में कहा गया है, “हुब्बुल वतनी, निस्ल ईमान।” इसका अर्थ है अपने वतन से जो कि इस संदर्भ में भारत है, वफादारी निभाना आधा ईमान है, बल्कि लेखक तो कहेगा कि पूरा ईमान है।

Advertisement
Next Article