कश्मीर का चुनावी सन्देश
हाल में ही हुए विधानसभा चुनावों में जम्मू-कश्मीर की जनता ने इंडिया गठबन्धन के दलों कांग्रेस व नेशनल काॅन्फ्रेंस को पूर्ण बहुमत देकर साफ कर दिया है कि वह राष्ट्रीय स्तर पर गठित इस विपक्षी राजनैतिक गठबन्धन की धर्मनिरपेक्ष नीतियों का समर्थन करती है। मगर इससे भी ऊपर कश्मीर घाटी की जनता ने क्षेत्र की कुल 47 सीटों में से 42 सीटें नेशनल काॅन्फ्रेंस को व तीन सीटें पीडीपी को देकर साफ कर दिया है कि वह अपने राज्य में न तो इस्लामी कट्टरपंथियों को तरजीह देती है और न ही अलगाववादियों को। कश्मीर वादी की एक भी सीट पर न तो पृथकतावादी इंजीनियर रशीद की नई बनाई गई पार्टी का कोई प्रत्याशी जीता और न ही प्रतिबन्धित जमाते इस्लामी पार्टी के भेष बदल कर खड़े किये गये प्रत्याशियों में से कोई जीत पाया। इन चुनावों में इस बार एक नया नजारा देखने को मिला कि चुनाव आयोग में पंजीकृत विभिन्न अनाम पार्टियों ने अपने उम्मीदवार चुनाव में उतारे। इनका मकसद सिर्फ यह था कि किसी भी तरह राज्य के मुख्य क्षेत्रीय दलों के प्रत्याशियों के वोटों पर डाका डाला जाए और बहुकोणीय मुकाबला बनाकर कुछ अप्रत्याशित कर दिया जाये। मगर कश्मीरी जनता ने एेसे प्रत्याशियों की जमानतें जब्त करवा कर न केवल अपने राजनैतिक रूप से परिपक्व होने का परिचय दिया बल्कि राज्य की राजनीति में अराजकता फैलाने वालों की कोशिशों का भी पर्दाफाश कर दिया। मैं पहले भी कई बार लिख चुका हूं कि कश्मीरी जनता उतनी ही राष्ट्रभक्त है जितने कि भारत के किसी अन्य राज्य के लोग। इसकी असली वजह कश्मीर की वह महान संस्कृति है जिसका मूल मानवतावाद है। यहां पीरों को भी ऋषि कहा जाता है।
हिन्दू-मुसलमान का भेद यहां की संस्कृति में नहीं है क्योंकि सभी सबसे पहले मनुष्य होते हैं। यह बेवजह नहीं है कि 1947 में जब मजहब के आधार पर भारत के दो टुकड़े हुए तो कश्मीरी जनता ने सबसे आगे बढ़कर पाकिस्तान निर्माण का विरोध किया था। यह एेसा इतिहास है जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकता। इसलिए यह भी सनद रहनी चाहिए कि 2024 के चुनावों में कश्मीरी जनता ने उन इस्लामी कट्टरपंथी उम्मीदवारों (जमाते इस्लामी के बहुरूपियों) को पूरी तरह नकार दिया जो इस्लाम के नाम पर उनका वोट मांग रहे थे। कश्मीरी जनता ने भारत के संविधान के साथ जाना पसन्द किया और उन सियासी पार्टियों का इन्तेखाब किया जो संविधान की कसम उठा कर चुनाव लड़ रही थीं और साफ कह रही थीं कि उनके लिए मतदाता न हिन्दू है और न मुसलमान बल्कि वह एक भारत का नागरिक है। इसलिए सर्वप्रथम कश्मीरी नागरिकों का ही इस्तकबाल किया जाना चाहिए और उन्हें लोकतन्त्र का सच्चा सिपाही माना जाना चाहिए। जैसा कि अपेक्षित था कि घाटी की सीटों पर डाॅ. फारुख अब्दुल्ला की कयादत वाली नेशनल काॅन्फ्रेंस पार्टी की विजय होगी क्योंकि यहां भाजपा का अस्तित्व नाम मात्र का है और कांग्रेस का नेशनल काॅन्फ्रेंस से गठबन्धन है। परिणाम भी इसी के अनुरूप आये।
बेशक घाटी की दूसरी प्रमुख पार्टी पीडीपी को भी तीन सीटें मिली जबकि इंडिया गठबन्धन की सदस्य मार्क्सवादी पार्टी के प्रत्याशी श्री तारीगामी भी जीते। तारीगामी की जीत भी कम मायने नहीं रखती क्योंकि उनके विरुद्ध जमाते इस्लामी का बहुरूपिया प्रत्याशी चुनाव लड़ रहा था और खुलकर मजहब के नाम पर वोट मांग रहा था। वह कुलगांव सीट से चुनाव लड़ रहे थे। तारीगामी कश्मीर के अकेले एेसे कम्युनिस्ट नेता माने जाते हैं जो घाटी में राष्ट्रवादी बयार बहाने के माहिर भी समझे जाते हैं क्योंकि वह हमेशा संविधान व इंसानियत की बात कहकर राजनीति से धर्म को दूर रखने के हिमायती रहे हैं। उनके खिलाफ किसी धार्मिक कट्टरपंथी की हार कुछ सन्देश जरूर देती है। यह लगभग तय ही माना जा रहा है कि अब राज्य के मुख्यमन्त्री नेशनल काॅन्फ्रेंस के नेता श्री उमर अब्दुल्ला ही बनेंगे। अब्दुल्ला राजनीति के कुशल खिलाड़ी माने जाते हैं। वह केन्द्र में वाजपेयी सरकार के दौरान विदेश राज्यमन्त्री भी रह चुके हैं और पूर्ण राज्य जम्मू-कश्मीर के मुख्यमन्त्री भी रहे हैं। उन्हें प्रशासन का अच्छा अनुभव है। मगर यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर 5 अगस्त, 2019 के बाद से अब केन्द्र प्रशासित अर्ध राज्य हो गया है। इस राज्य के मुख्यमन्त्री के अधिकार दिल्ली व पुडुचेरी जैसे अर्ध राज्यों के मुख्यमन्त्रियों के समान ही बहुत सीमित होंगे। कानून व्यवस्था व पुलिस आदि प्रशासन का काम केन्द्र के मनोनीत उपराज्यपाल के पास ही होगा।
अतः मुख्यमन्त्री व उपराज्यपाल के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बहुत जरूरी होंगे। उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमन्त्री बनने से पहले ही इस पेंच को समझ लिया है और कहा है कि एक सियासी जमात भाजपा से उनके मतभेद व लड़ाई हो सकती है मगर केन्द्र की सरकार से उनका कोई झगड़ा नहीं है क्योंकि एक राज्य की समस्याओं को सुलझाना केन्द्र की भी जिम्मेदारी होती है। अतः वह केन्द्र के साथ मिलजुल कर काम करेंगे और जम्मू-कश्मीर को जल्द से जल्द पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की तरफ बढें़गे। भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में चुनाव लड़ते हुए खुद वादा किया था कि वह जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा जल्दी से जल्दी देगी।
पूर्ण राज्य का दर्जा देना केन्द्र सरकार के ही अख्तियार में आता है। वैसे भी भाजपा की सरकार संसद के भीतर भी यह एेलान कर चुकी है कि वह जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा यथोचित समय पर देगी। अब उमर अब्दुल्ला जैसे तेज राजनीतिज्ञ को ‘यथोचित समय’ की निशानदेही करनी है।