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आन्ध्र व ओडिशा में ताजपोशी

02:41 AM Jun 13, 2024 IST
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ओडिशा और आन्ध्र प्रदेश में नये मुख्यमन्त्रियों की ताज पोशी हो गई है। दोनों ही राज्यों में शानदार विजय के साथ सत्ता परिवर्तन हुआ है। जहां आन्ध्र प्रदेश में तेलगूदेशम के नेता श्री चन्द्र बाबू नायडू की पार्टी की धमाकेदार जीत हुई है वहीं ओडिशा में पहली बार भाजपा ने पूर्ण बहुमत लेकर सबको चौंका दिया है। लोकसभा चुनावों में भी इन दोनों पार्टियों ने प्रतिपक्षी पार्टियों का सफाया कर दिया है। इन दोनों राज्यों के चुनावों में जो रेखांकित करने वाली घटना हुई है वह यह है कि इन दोनों में ही देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस कहीं बहुत दूर हांशिये पर खिसक गई है और इसके विधायकों की संख्या नामचारे की ही रही है। जबकि एक जमाने में दोनों ही राज्य कांग्रेस के गढ़ माने जाते रहे हैं। हालांकि ओडिशा में पिछले 24 साल से बीजू जनता दल के मुख्यमन्त्री श्री नवीन पटनायक का राज भाजपा के प्रत्यक्ष व परोक्ष सहयोग से चल रहा था मगर इस बार जिस प्रकार भाजपा ने अपने बूते पर ही शानदार विजय प्राप्त की है उससे यह पार्टी अब केवल उत्तर भारत की पार्टी नहीं रही है और पूर्वी राज्य ओडिशा में भी इसका डंका बजने लगा है।

ओडिशा की जनसंख्या में 23 प्रतिशत आदिवासी हैं अतः भाजपा की जीत के विशेष मायने निकाले जा सकते हैं जबकि पड़ोसी राज्य प. बंगाल में पार्टी का लोकसभा चुनावों में प्रदर्शन निराशा से भरा रहा है। पार्टी ने मुख्यमन्त्री पद पर भी एक आदिवासी नेता श्री मोहन चरण मांझी का चुनाव करके स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा का जनाधार केवल शहरों तक सीमित नहीं है। उनके साथ दो उपमुख्यमन्त्री भी चुने गये हैं । एक श्री के.वी. सिंह देव हैं जो साठ के दशक में मुख्यमन्त्री रहे श्री आर.एन. सिंह दे के पौत्र हैं। स्व. सिंह दे का पूरा परिवार अब भाजपा में ही है। कभी यह स्व. राजगोपालाचारी की स्वतन्त्र पार्टी में हुआ करता था। स्वतन्त्र पार्टी का आदिवासी इलाकों में खासा प्रभाव था जिसे अब भाजपा ने पूरी तरह कब्जा लिया लगता है। श्री सिंह दे ओडिशा के प्रभावशाली राजपरिवार के मुखिया थे। इसके साथ ही एक जमाने में इस राज्य में प्रजा समाजवादी पार्टी का भी अच्छा जनाधार हुआ करता था। लगता है यह सब जनाधार अब भाजपा ने बहुत लम्बे प्रयास के बाद कब्जा लिया है। राज्य में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ताओं की मेहनत अब रंग लेकर आयी है।

वहीं दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश में श्री नायडू की पार्टी की विरासत के तार स्व. एन.टी. रामाराव से जुड़े हुए हैं। श्री चन्द्र बाबू नायडू इस विरासत के पक्के हकदार बनकर उभरे नेता पहले से ही हैं। हालांकि एनटीआर की सुपुत्री डी. पुरुन्देशवरी देवी आन्ध्र प्रदेश भाजपा की अध्यक्ष हैं परन्तु इस पार्टी को विधानसभा चुनावों में केवल आठ सीटें ही मिली हैं। पुरुन्देश्वरी तेलगूदेशम से लेकर कांग्रेस तक में रह चुकी हैं और हाल ही में उन्होंने लोकसभा चुनाव भी भाजपा के टिकट पर जीता है मगर राज्य में भाजपा को जो भी सीटें मिली हैं वे तेलगूदेशम के साथ चुनाव पूर्व समझौता होने की वजह से ही मिली हैं। अतः श्री नायडू आन्ध्र प्रदेश का हीरो कहा जा सकता है जिनके नेतृत्व में एनडीए ने प्रभावी जीत वि​धानसभा व लोकसभा दोनों चुनावों में दर्ज की है और केन्द्र में भाजपा की नरेन्द्र मोदी सरकार बनने में भी अपना योगदान दिया है। यही वजह है कि उनकी पार्टी लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए केन्द्र में चौसर बिछाती नजर आ रही है जिसकी काट भाजपा ने डी. पुरुन्देश्वरी को इस पद पर बैठाने की निकाली है। पुरुन्देश्वरी श्री नायडू की साली हैं मगर उनकी राजनीति चन्द्र बाबू नायडू के समानान्तर ही ज्यादा रही है। वह केन्द्र में मन्त्री भी रह चुकी हैं लेकिन जहां तक आंध्र प्रदेश का सवाल है तो श्री नायडू पर इस राज्य में अपनी शर्तों पर राजनीति करने के माहिर माने जाते हैं। उन्होंने मुख्यमन्त्री की शपथ लेने से ही साफ कर दिया था कि राज्य की नई राजधानी अमरावती होगी।

अमरावती परियोजना श्री नायडू की कल्पना की अद्भुत परियोजना मानी जाती है जिस पर वह किसी प्रकार का समझौता नहीं करना चाहते। अतः इसे राजधानी बनाने के लिए अब वह केन्द्र सरकार से विशेष आर्थिक मदद की दरकार अपने पिछले शासन के भांति ही करेंगे। श्री नायडू को आन्ध्र प्रदेश को सूचना टैक्नोलोजी का केन्द्र बनाने वाले नेता के रूप में भी जाना जाता है। उन्हें आधुनिक विचारों वाले कल्पनाशील नेता के रूप में जाना जाना इस बात का द्योतक है कि वह अपने राज्य को विदेशी निवेश का केन्द्र भी बनाना चाहते हैं जिसके लिए राज्य में सर्वत्र सौहार्द व भाईचारे का होना बहुत जरूरी है। इसे लेकर उन्होंने अपने विचार बहुत साफगोई के साथ व्यक्त कर दिये हैं कि राजनीति में कोई वाद मायने नहीं रखते बल्कि केवल मानवता वाद मायने रखता है और इस क्रम में समाज का कोई भी वर्ग विकास में पीछे नहीं रहना चाहिए। इसी वजह से उन्होंने राज्य में चार प्रतिशत आरक्षण मुसलमानों को देने की नीति पर चलने की घोषणा भी की है। मगर इन दोनों राज्यों में कांग्रेस का सफाया होने का भी अपना सन्देश है जिसे इस पार्टी को पढ़ना चाहिए।

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