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हिन्दू-सिख एकता में दरार, देश के लिए घातक

05:31 AM Jun 20, 2024 IST
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हिन्दू सिख एकता में दरार आना देश के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। इससे पहले भी 80 के दशक में ऐसा देखा गया जब विदेशी एजैन्सियों के इशारों पर कुछ शरारती तत्वों के द्वारा पंजाब में आतंकवाद का भय दिखाकर हिन्दू सिख एकता में दरार डालने के प्रयास किए गए। देश की सरकार उस समय अगर शुरूआत में ही उस पर लगाम लगा देती तो शायद हजारों बेगुनाहों को अपनी जान न गंवानी पड़ती, मगर अफसोस कि उस समय के हुक्मरानों ने उल्टा उस चिंगारी को आग बनने दिया और उसकी आड़ में पंजाब को तबाही की ओर धकेल दिया। इसका असर पंजाब ही नहीं बल्कि समूचे देश पर पड़ा। कहते हैं कि नाखून से मांस कभी अलग नहीं हो सकता। उसी प्रकार जितनी मर्जी कोशिशें कर लें मगर हिन्दू-सिख भाईचारा भी कभी समाप्त नहीं हो सकता।

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी कलयुग के अवतार के रूप में इस धरती पर आए थे। गुरु जी ने अपने जीवन काल में समाज के लोगों को धर्म की आड़ में फैलाई जा रही कुरीतियों से दूर करते हुए उन्हें सही मार्ग दिखाने के लिए हजारों मील की पैदल यात्रा की और ‘‘अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत के सब बन्दे, एक नूर ते सब जग उपजया कौन भले कौन मन्दे’’ का सन्देश दिया भाव धर्म भले ही कोई भी हो लेकिन सभी इन्सान उस परमात्मा के बनाए हुए हैं, सभी एक सामान हैं। दसवें गुरु साहिबान गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सिखों के रूप में एक ऐसी सेना तैयार की जो हजारों की गिनती में दूर से ही पहचान में आ जाए। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ‘‘मानस की जात सबै एकै पहचानबो’’ का सन्देश दिया। उस समय सबसे पहले पांच प्यारों के रूप में देश के अलग-अलग राज्यों से आगे आकर सिख धर्म को अपनाने वाले भी हिन्दू धर्म से ही सम्बन्ध रखते थे। उन्होंने गुरु जी द्वारा तैयार अमृत छका और सिंह सजे जिन्हें पांच प्यारों का नाम दिया गया। उसके बाद उन्होंने गुरु जी से सवाल किया कि गुरु जी आपने हमसे शीश मांगा और हमने दिया जिसके बाद हमें सिखी स्वरूप मिला। आप तो गुरु हैं इसलिए आपको तो सिखी हासिल करने के लिए हमसे कुछ अधिक देना चाहिए। इस पर गुरु जी ने कहा मैं समय आने पर अपने पूरे सरबंस को कौम पर वार दूंगा और ऐसा हुआ भी गुरु जी ने पहले पिता, फिर माता और पुत्रों का बलिदान देकर जुल्म का खात्मा किया। उसके बाद से पंजाब के हर परिवार में से पहले पुत्र को सिख सजाया जाता और आगे चलकर उसके बच्चे फिर सिखी स्वरूप में ही रहते। धीरे-धीरे तकरीबन सभी परिवारों में हिन्दू और सिख दोनों ही धर्मों के लोग दिखने लगे।

आज फिर से कुछ लोग देश को 80 के दशक में ले जाने के मंसूबे बुनने लगे हैं। स्वयं को राजनीति में चमकाने के लिए कुछ एक नौसिखिए नेताओं के द्वारा बेतुकी और बेबुनियाद टिप्पणी करके पंजाब व पंजाबियों को बदनाम किया जाने लगा है। इसकी आग पंजाब और हिमाचल दोनों ही राज्यों में देखने को मिल रही है। हिमाचल में पंजाबियों को निशाना बनाया जा रहा है और पंजाब के लोग हिमाचल वासियों को बुरा भला कहते दिख रहे हैं, जबकि हिमाचल भी पंजाब का ही हिस्सा था जिसे कांग्रेस की सरकार ने पंजाब को छोटा करने के लिए साजिश के तहत हिमाचल बना दिया था, अगर समय रहते केन्द्र और राज्यों की सरकारों के द्वारा इसे रोका न गया तो देशवासियांे को एक बार फिर से 80 के काले दशक जैसा संताप आने वाले समय में भुगतना पड़ सकता है।

खालिस्तान की आड़ में सिखों पर नस्ली हमलों में तेजी : खालिस्तान की आड़ में सिखों को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए। इसमें कोई शक की गुंजाइश ही नहीं है कि सिखों से बड़ा देशभक्त और कोई नहीं हो सकता। सिख समुदाय चाहता तो देश के बंटवारे के समय 1947 में ही अलग राष्ट्र ले सकता था, मगर उन्होंने ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं किया क्योंकि सिख अपने को हिन्दू समाज से अलग कतई नहीं समझते। दोनों समुदायों में फर्क केवल राजनेताओं के द्वारा राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए डाला जाता है। मुठ्ठीभर लोगों को छोड़ दें तो कोई भी सिख खालिस्तान के समर्थन में न कभी था और न कभी हो सकता है, अगर सिखों ने भी हिन्दुओं और मुसलमानों की तरह अलग राष्ट्र स्वीकार कर लिया होता तो पंजाब सिख राष्ट्र को दिए जाने के बाद पाकिस्तान का अधिकार क्षेत्र उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात होता। इसलिए देश के लोगों को सिखों का शुक्रगुजार होना चाहिए था, मगर इसके विपरीत वह लोग सिखों को संदेह की नजरों से देखते आए हैं। सिखों की देशभक्ति पर शक किया जाता है जो कि सरासर गलत है। हरियाणा के कैथल में कुछ अज्ञात लोगों के द्वारा एक सिख युवक को खालिस्तानी कहकर उसे बेरहमी से पीटा गया। इसके बाद बिहार के बक्सर में भी इसी तरह की घटना सामने आई जिसका सिख संस्थाओं के द्वारा सख्त नोटिस भी लिया गया। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी द्वारा हरियाणा के मुख्यमंत्री और पुलिस अधिकारियों को पत्र लिखकर घटना की जांच की मांग की गई। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा ने स्वयं कैथल जाकर सिख समुदाय के लोगों के साथ-साथ प्रशासनिक अधिकारियों से मुलाकात की, वहीं तख्त पटना साहिब कमेटी के अध्यक्ष जगजोत सिंह सोही के द्वारा एक कमेटी गठित कर बक्सर भेजी गई, जिन्होंने पीड़ित सिख परिवार से मुलाकात के बाद पुलिस अधिकारियों से मुलाकात कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। धर्म प्रचार के चेयरमैन लखविन्दर सिंह लख्खा, उपाध्यक्ष गुरविन्दर सिंह और सिख गुरुद्वारा कमेटी के सूरज सिंह नलवा के द्वारा भी प्रशासनिक अधिकारियों संे निरन्तर सम्पर्क बनाकर दोषियों को पकड़ने की गुहार लगाई जा रही है।

देश के प्रधानमंत्री सिखों को उनका बनता सम्मान देने के हर संभव प्रयास करते दिख रहे हैं। सिख गुरुओं की शहादतों की जानकारी देशवासियांे को दी जा रही है। उसके बावजूद इस तरह की घटनाओं में बढ़ौतरी होना अपने आप में कई सवालों को जन्म देता दिखाई दे रहा है, अगर वास्तव में ही प्रधानमंत्री, गृहमंत्री की सोच सिख समुदाय के प्रति सम्मानजनक है तो उन्हें इन घटनाओं के दोषियों को पकड़कर उनके खिलाफ सख्त कार्यवाई के निर्देश देने चाहिए और इसके साथ साथ अपनी पार्टी के उन नेताओं को भी जुबान पर लगाम लगाने की नसीहत देनी चाहिए, जिनकी अभद्र टिप्पण्यिों के चलते देश का माहौल बिगड़ रहा है।

अकाली नेताओं पर कार्रवाई : शिरोमणि अकाली दल बादल जो कि लम्बे समय तक भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन करता आया और बादल परिवार के सदस्यों ने मंत्री पद का खूब मजा लिया, मगर जब गठबंधन नहीं रहा तो उन्हंे भाजपा और संघ से एलर्जी होने लगी है। इतना ही नहीं दिल्ली में अकाली दल के कुछ नेताओं को भाजपा के समर्थन की सजा देते हुए उन पर कार्रवाई की गई है, जिसमें वरिष्ठ नेता कुलदीप सिंह भोगल हैं जिन्होंने प्रकाश सिंह बादल के कहने पर बाला साहिब अस्पताल मामले में सरना भाइयों पर केस किया और पूरी वफादारी से पार्टी की सेवाएं निभाते रहे। दूसरे तेजवंत सिंह जो कि पार्टी फण्ड में निरन्तर सहयोग देकर पार्टी को चलाते रहे। उनके साथ रविन्दर सिंह खुराना और गुरदेव सिंह भोला भी शामिल हैं। कुलदीप सिंह भोगल ने एक प्रैस कान्फ्रेंस कर साफ किया कि उन्होंने चुनावों में अकाली दल का कहीं नाम तक नहीं लिया। उन्होंने अखिल भारतीय दंगा पीड़ित राहत कमेटी के बैनर तले भाजपा उम्मीदवारों का समर्थन किया था। वह भी इसलिए क्योंकि भाजपा के सिवाए दिल्ली में कोई और पार्टी ऐसी नहीं थी जिसे वह समर्थन करते। कांग्रेस को सिख कभी भी वोट नहीं कर सकता और दूसरी ओर आम आदमी पार्टी जिसने कांग्रेस से ही गठबंधन किया था ऐसे में केवल भाजपा ही विकल्प बचता था।

भोगल ने परमजीत सिंह सरना को कांग्रेसी समर्थक बताते हुए उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बनाने का विरोध भी सुखबीर सिंह बादल के पास किया है, वहीं परमजीत सिंह सरना के समर्थकों का मानना है कि कुलदीप सिंह भोगल पर जब पार्टी ने विरोधी गतिविधियों के चलते कार्रवाई की तभी उनके ऐसे बयान निकल कर आए हैं। परमजीत सिंह सरना को तो कई माह पूर्व ही दिल्ली की कमान सौंपी गई थी और सुखबीर सिंह बादल के निवास पर कुलदीप सिंह भोगल को पार्टी का सैक्रेटरी जनरल बनाए जाने का पत्र भी परमजीत सिंह सरना के द्वारा ही सौंपा गया था तब उन्होंने विरोध क्यों नहीं किया? इतने माह तक परमजीत सिंह सरना के साथ मीटिंगों में मंच क्यों साझा करते रहे।

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