शिक्षा मंत्रालय का एक्शन
स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर नीट लागू होने तक देश में पहले भी मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन होते थे। इन मेडिकल कॉलेजों ने भारत को ही नहीं बल्कि दुनिया को बेहतरीन डॉक्टर दिए हैं। विदेशों में भी चिकित्सा क्षेत्र में भारतीय डॉक्टर छाए हुए हैं। देश के हर राज्य में मेडिकल कॉलेज राज्य सरकारों के खर्चे से बनवाए गए हैं। कौन नहीं जानता कि मेडिकल कॉलेजों की सीटें लाखों में बिकती रही हैं। एनटीए बनाए जाने के बाद पूरे सिस्टम में एक के बाद एक छिद्र होते गए। ऐसे आरोप भी लगाए जा रहे हैं कि केन्द्रीय संस्थानों में एक ही विचारधारा के लोगों को काबिज कराने की कोशिश की जा रही है। अक्सर यही कहा जाता है कि सक्षम लोगों को केन्द्रीय संस्थानों में जगह नहीं मिल रही। अब जबकि 10 दिन में चौथी परीक्षा नीट पीजी भी स्थगित कर दी गई है और देशभर में युवा आक्रोशित होकर सड़कों पर हैं। ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकार ने रात ही रात में युवाओं के आक्रोश को शांत करने के लिए तीन बड़े फैसले लिए हैं जिससे स्पष्ट है कि मोदी सरकार ने परीक्षाओं में धांधली को गम्भीरता से लिया है।
सरकार ने अपने पहले फैसले में सुबोध कुमार सिंह को एनटीए के महानिदेशक पद से हटा दिया है। उनकी जगह पर प्रदीप सिंह खरोला को एनटीए की कमान सौंपी गई है। शिक्षा मंत्रालय ने एनटीए की परीक्षाओं में गड़बड़ी रोकने और पारदर्शिता लाने के लिए सात सदस्यीय टीम का गठन किया है, जिसका नेतृत्व इसरो के पूर्व चेयरमैन और आईआईटी कानपुर के पूर्व निदेशक के. राधाकृष्णन करेंगे। इस कमेटी में एम्स के निदेशक रहे डॉक्टर रणदीप गुलेरिया, प्रोफेसर राममूर्ति, प्रोफेसर बी.जे. राव आदि शामिल हैं। कमेटी बनाने की घोषणा शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने पहले ही कर दी थी। तीसरे बड़े फैसले में सरकार ने नीट यूजी में हुई धांधली की जांच सीबीआई को सौंप दी है। जांच करने वाली सात सदस्यीय कमेटी 2 माह में शिक्षा मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट देगी।
अब सवाल यह है कि क्या केन्द्र सरकार द्वारा उठाए गए कदम परीक्षाओं में धांधली को रोक पाएंगे। एक महत्वपूर्ण सवाल फिर से उठ रहा है वह यह है कि संविधान की सातवीं अनुसूचि कहती है कि सारी शिक्षा व्यवस्था राज्य सरकार के हाथ में रहेगी। शिक्षा के कुछ पहलू केन्द्र सरकार अपने हाथ में रख सकती है। सातवीं अनुसूची भारत के संविधान की आत्मा है तो बिना राज्य सरकारों की अनुमति के नीट लागू ही क्यों किया गया। शिक्षाविदों का यह भी कहना है कि भारत इस समय युवाओं का देश है। नीट के कारण अनेक युवाओं के डॉक्टर बनने के अधिकार पर कहीं न कहीं चोट कर रहा है। भारत में शिक्षा प्रणाली अमीर और गरीब में बंटी हुई है। स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा में कहीं भी समता का धरातल नजर नहीं आता। ऐसी स्थिति में छात्रों को बराबरी का मौका कैसे मिल सकता है।
केन्द्र सरकार ने एनटीए के निदेशक को हटाकर संस्थान की अक्षमता को स्वीकार कर लिया है। अब देखना यह है कि सीबीआई जांच और दोषियों को दंडित करने की कार्रवाई तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचती है या नहीं। हालांकि परीक्षाओं में कदाचार रोकने के लिए सरकार ने सख्त कानून भी बनाया है लेकिन हमारी न्याय व्यवस्था इतनी शिथिल है कि मामले अदालतों में लटकते रहते हैं और छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले आरोपी मुकदमों में बच निकलते हैं।
जो माफिया परीक्षा के प्रश्न पत्रों को लीक करने में पकड़े जा रहे हैं वे वर्षों पहले से ही ऐसी गतिविधियों में शामिल रहे। इसका अर्थ यही है कि धांधली में शामिल लोगों को कानून आज तक सजा नहीं दे पाया। संस्थानों में बैठे लोगों के आचरण पर बहुत कम संदेह किया जाता है लेकिन इस बार इन लोगों की नैतिकता को भी परखा जाना चाहिए। परीक्षाओं में धांधली के चलते लाखों छात्रों के भविष्य को दाव पर लगाना अस्वीकार्य है। इस मामले को गम्भीरता से लेना ही होगा। अब साफ हो चुका है कि माफिया तभी ऐसी धांधली को अंजाम देता है जब या तो संस्थान इनके साथ मिला हुआ है या फिर उसकी व्यवस्था में छिद्र है। परीक्षाओं में धांधली रोकने के लिए देशभर के शिक्षाविदों से राय लेनी होगी और संस्थानों में ऐसे लोगों को पद देने चाहिएं जिसकी प्रतिष्ठा इतनी अच्छी हो कि हर युवा को यह िवश्वास हो कि उसके साथ अन्याय नहीं होगा। शिक्षा व्यवस्था में मूल्यों को स्थापित करके ही युवाओं में नई उम्मीदों का संचार किया जा सकता है।