हेमंत सोरेन पुनः मुख्यमंत्री
श्री हेमंत सोरेन झारखंड के पुनः मुख्यमन्त्री बन गए हैं। उन्होंने शपथ भी ग्रहण कर ली है। देश में वह आदिवासियों का सबसे बड़ा चेहरा हैं। जिस प्रकार से उन्हें कथित भूमि घोटाले में फंसाया गया है उसे उच्च न्यायालय ने अनुचित करार दिया है। इस घोटाले में उन पर धन शोधन के आरोप एजेंसियों ने लगाये थे जबकि उच्च न्यायालय का कहना है कि उन पर इस प्रकार के आरोप लगाने का कोई औचित्य नहीं बनता है। इससे स्पष्ट है कि उनकी छवि को जो दागदार बनाने का प्रयास किया गया था वह असफल रहा। श्री सोरेन आदिवासी बहुल झारखंड के जब मुख्यमन्त्री बनाये गये थे तो उन्होंने अपने पूर्व कार्यकाल में इस समुदाय के लोगों के कल्याण के लिए बहुत सी योजनाएं चलाईं। वे सभी योजनाएं कायदे से चल रही थी कि विगत 31 जुलाई को प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें धन शोधन के मामले में गिरफ्तार कर लिया। अपनी गिरफ्तारी से पहले श्री सोरेन ने मुख्यमन्त्री पद से इस्तीफा देना उचित समझा और अपने स्थान पर अपने दल झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ विधायक श्री चम्पई सोरेन को मुख्यमन्त्री बनवाया। श्री चम्पई सोरेन ने उनकी अनुपस्थिति में राज्य का प्रशासन पूरे दम-खम के साथ चलाया और लोकसभा चुनावों में इंडिया गठबन्धन के सदस्य के रूप में विरोधी पक्ष की विजय के लिए काम किया। झारखंड में इंडिया गठबन्धन के सदस्य दलों को लोकसभा चुनाव में अच्छी सफलता भी मिली। पूरे पांच महीने जेल में रहने के बाद उच्च न्यायालय ने श्री हेमंत सोरेन को जमानत पर रिहा किया है।
राजनैतिक रूप से इसका सीधा मतलब यही निकलता था कि श्री सोरेन ने मुख्यमन्त्री की जो गद्दी खाली की थी उस पर पुनः उनके बैठने में कोई दिक्कत नहीं है। बेशक अदालत में उन पर मुकदमा चलता रहेगा मगर उच्च न्यायालय का यह निष्कर्ष बहुत महत्वपूर्ण है कि उन पर धन शोधन का आरोप लगाने का कोई औचित्य नहीं बनता है। श्री हेमंत सोरेन पर जमीन घोटाले का आरोप डेढ़ दशक पुराना है। इतने पुराने मामले को खोलने के भी राजनीतिक अर्थ लगाये जा रहे हैं। आखिर राजनीति में यह भी देखा गया है कि अनुसूचित जाति व आदिवासी वर्ग के नेता बिना बात ही आलोचना के पात्र बना दिये जाते हैं। समाज के सबसे निचले तबके से आने वाले इन नेताओं को विशेष दृष्टि के साथ देखा जाना चाहिए क्योंकि हजारों साल की गुलामी की जंजीरें तोड़कर वे आगे बढ़ रहे हैं। इस मामले में हमें आदिवासी समाज को विशेष नजरिये से लेना होगा। यह एेतिहासिक तथ्य है कि बाबा साहेब अम्बेडकर अनुसूचित जाति के लोगों को न्याय दिलाने के चक्कर में आदिवासी समाज को भूल गये थे। तब उनका ध्यान इस तरफ संविधान सभा में आदिवासियों के नेता कैप्टन जयपाल सिंह ने दिलाया था और इनके लिए भी आरक्षण की मांग की थी। कैप्टन जयपाल सिंह का कहना था कि आदिवासी ही भारत के मूल निवासी हैं मगर प्रगति की दौड़ में ये सबसे पीछे रह गये हैं। इनकी संस्कृति भारत की मूल संस्कृति मोहनजोदड़ो व हड़प्पा से मेल खाती है।
कैप्टन जयपाल सिंह ने संविधान सभा में जो बहस की थी उसे वर्तमान दौर में पुनः पढे़ जाने की जरूरत है। अतः श्री हेमंत सोरेन का पुनः मुख्यमन्त्री बनना कोई छोटी घटना नहीं कही जा सकती। मुख्यमन्त्री के रूप में श्री सोरेन राज्य के 13वें मुख्यमन्त्री हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि झारखंड को पूर्ण राज्य बने अभी साढ़े 23 साल ही हुए हैं। नवम्बर 2000 में यह राज्य बिहार से कट कर अलग राज्य बना था। इससे स्पष्ट है कि इस राज्य में राजनैतिक अस्थिरता का दौर भी रहा है। छोटे और आदिवासी बहुल राज्य झारखंड के लिए यह शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता। यह राज्य ऐसा है जो खनिज सम्पदा से बहुत भरपूर है, इसलिए कार्पोरेट क्षेत्र की निगाहें इस राज्य पर गड़ी रहती हैं। झारखंड को ‘गरीब लोगों की अमीर धरती’ कहा जाता है।
यही वजह है कि इस राज्य की राजनीति को धन शक्ति से भी प्रभावित करने के प्रयास होते रहते हैं। मगर इस राज्य में विकास की असीम संभावनाएं छिपी हुई हैं। अमीर धरती होने के बावजूद इस राज्य के लोगों की प्रति व्यक्ति आय में औसत ही वृद्धि हो रही है। राज्य में नक्सली समस्या भी है। हालांकि यह अभी बहुत कम हो चुकी है। इस मामले में श्री सोरेन ने मुख्यमन्त्री बनने के बाद बहुत गंभीर प्रयास किये थे। श्री सोरेन देश के युवा मुख्यमन्त्रियों में से एक हैं। आदिवासी समाज के तो वह सबसे युवा मुख्यमन्त्री हैं। हालांकि उन पर परिवारवाद के आरोप लगाये जाते हैं क्योंकि वह श्री शिबू सोरेन के सुपुत्र हैं। श्री शिबू सोरेन उर्फ गुरु जी को झारखंड का पितामह कहा जाता है। झारखंड राज्य को बनवाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यदि वह अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हैं तो इसे परिवारवाद के घेरे में कैद करना अनुचित होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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