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पेपर लीक के बढ़ते मामले चिंता का विषय

07:00 AM Jun 26, 2024 IST
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बीते कुछ महीनों में देश में विभिन्न प्रतियोगी और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक होने और संदेह के घेरे में आने के मामले लगातार उजागर होते रहे हैं। निश्चित रूप से सुनहरे भविष्य की आस में रात-दिन एक करने वाले प्रतिभागियों के सपने चकनाचूर होने के समान तो है ही। वहीं इस तरह के मामलों से प्रतिभागियों का विश्वास व्यवस्था से उठ जाता है। मेडिकल परीक्षा की पुरानी प्रक्रिया में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने के लिये लाई गई नई व्यवस्था भी अब सवालों के घेरे में है। राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) और नीट के तहत परीक्षाओं की जो पवित्रता भंग की गई है, लाखों युवाओं के करियर और भविष्य अधर में लटके हैं जिससे युवाओं और अभिभावकों में नाराजगी का माहौल है। नीट पेपर लीक मामले की पृष्ठभूमि में परीक्षा-माफिया सक्रिय हैं। सिर्फ पेपर लीक और सॉल्वर गैंग की ही साजिशें नहीं हैं, बल्कि ‘बड़ी मछलियां’ भी हैं।

परीक्षाएं आयोजित करने वाली संस्थाओं से जुड़े लूप होल्स के कारण ही परीक्षाओं पर सवालिया निशान लगते रहते हैं। जैसे एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है वही कहावत यहां पर चरितार्थ होती है। धनबल से पेपर, परीक्षा केंद्र, पेपरसेटर आदि खरीदे जा सकते हैं। धनबल के इस खेल में सबसे ज्यादा नुक्सान उन बच्चों का होता है जो ईमानदारी एवं एकाग्रतापूर्वक अपनी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। सरकार ने राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षाओं में पारदर्शिता लाने के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए की स्थापना की थी। संसद के कानून से बनी इस स्वायत्त संस्था के जिम्मे राष्ट्रीय स्तर पर उच्च शिक्षा के संस्थानों मसलन इंजीनियरिंग कॉलेजों, मेडिकल कॉलेजों, केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए दाखिला परीक्षा आयोजित करना और उनके नतीजे देना है। इस संस्था को जिम्मेदारी दी गई कि वह पूरी पारदर्शिता के साथ अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के लिहाज से परीक्षाएं आयोजित करेगी लेकिन नीट परीक्षा के नतीजों पर उठे सवालों ने इस संस्था और उसके कार्यों को संदेह के दायरे में ला दिया है। विवाद होने के बाद कुछ बच्चों और उनके अभिभावकों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करके नीट की परीक्षा फिर से कराने और दाखिले के लिए काउंसलिंग कराने पर रोक लगाने की मांग की। नीट की डॉक्टरी प्रवेश परीक्षा की धांधलियां सामने आ रही हैं। सवाल है कि जो माता-पिता अपने बच्चे की परीक्षा पास कराने के लिए 40 लाख रुपए प्रश्न-पत्र के लिए खर्च कर सकते हैं, क्या वे देश में ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ पैदा करना चाहते हैं? यह घोर दंडनीय अपराध है।

नीट प्रकरण के अलावा, यूजीसी नेट, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और नीट-पीजी परीक्षाएं भी रद्द या स्थगित की गई हैं। इस तरह 37 लाख से अधिक युवाओं का भविष्य घोर अनिश्चित हो गया है। यह कोई सामान्य बात नहीं है। आखिर वे युवा कब तक परीक्षाएं देते रहेंगे? छात्रों के सामने उम्र निकल जाने का खतरा भी है। इन बर्बादियों का सवाल और आरोप एनटीए पर ही क्यों है? यह केंद्र सरकार को भी सोचना चाहिए और एनटीए को खंगालना चाहिए। एनटीए की प्रक्रिया, परीक्षा-प्रणाली, आउटसोर्स की मजबूरी, विशेषज्ञता के अभाव और मूल में भ्रष्टाचार आदि ऐसे बुनियादी कारण हैं कि इस संस्थान को ही समाप्त करने की मांगें की जा रही हैं। युवाओं के विरोध-प्रदर्शन इतने उग्र और व्यापक हो गए हैं कि एनटीए के महानिदेशक सुबोध कुमार सिंह को हटा कर एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी प्रदीप सिंह खरोला को इस पद का दायित्व सौंपना पड़ा है।

पेपर लीक होने पर कठिन परिश्रम करने वाले विद्यार्थी नियुक्ति से दूर रह जाते हैं। दूसरी तरफ नकल प्रवृत्ति के कारण अयोग्य विद्यार्थी नियुक्ति पा जाते हैं। ऐसे में परीक्षाओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। पेपर लीक पर सरकार को सख्ती से कदम उठाने होंगे तभी परीक्षाओं की विश्वसनीयता बन पाएगी। जानकारों के मुताबिक परीक्षाओं में विश्वसनीयता बनाने के लिए पारदर्शी और मजबूत सुरक्षा प्रणाली बनाने की जरूरत है। एक ही एजेंसी से बार-बार परीक्षा नहीं करवानी चाहिए। इसके लिए नियम बनाए जाने चाहिए। दरअसल, देश के विभिन्न राज्य भी इस परीक्षा प्रणाली को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। खासकर कोचिंग सैंटरों के खेल व अंग्रेजी के वर्चस्व के चलते आरोप लगाये जाते हैं। आरोप है कि इस परीक्षा में हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में परीक्षा देने वाले छात्रों को न्याय नहीं मिलता। तमिलनाडु समेत दक्षिण भारत के कई राज्य आरोप लगाते रहे हैं कि राज्य की भाषा के छात्रों को नई परीक्षा प्रणाली से नुक्सान उठाना पड़ रहा है। सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज कर पेपर लीक और उनके पीछे के नेटवर्क की जांच शुरू कर दी है। कुछ गिरफ्तारियां भी की गई हैं। सीबीआई जांच का निष्कर्ष क्या होगा और कब आएगा, वह भी अनिश्चित है। केंद्र सरकार ने एक कानून भी लागू किया है।

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