India and neighboring countries: भारत और पड़ोसी देश
India and neighboring countries: भारत ने हमेशा पड़ोसी प्रथम को प्राथमिकता दी है। वैसे तो पड़ोसी देशों से हमारे संबंध उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं लेकिन बदलती भूराजनीतिक स्थितियों के चलते क्षेत्रीय सहयोग की भावना हमेशा सकारात्मक रही है। 2014 में नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद सम्भालने के बाद से ही पास पड़ोस के देशों को तो प्राथमिकता दी ही लेकिन अमेरिका, फ्रांस समेत कई यूरोपीय देशों और खाड़ी देशों से अपने संबंध मजबूत किए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीसरी बार पीएम पद की शपथ लेने के अवसर पर सात पड़ोसी देशों को आमंत्रित किया। समारोह में मालदीव, श्रीलंका, नेपाल, मॉरिशिस, भूटान और सेशल्स के राष्ट्र अध्यक्ष उपस्थित रहे। देश की युवा पीढ़ी को भारत की विदेश नीति में काफी रुचि है और वह विदेश नीति के मामले में गम्भीरता से चर्चा भी करते हैं।
विदेशी नेताओं में मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू की यात्रा पर सबकी नजरें लगी हुई थीं क्योंकि उनकी यात्रा भारत और मालदीव के बीच जारी तनाव के समय में हुई है। मालदीव के राष्ट्रपति ने पद सम्भालते ही भारत को मालदीव में तैनात अपने सैनिकों को वापिस बुलाने के लिए फरमान जारी कर दिया था और भारत ने अपने सैनिक वापिस भी बुला लिए हैं। मोहम्मद मोइज्जू ने अपने चुनाव में इंडिया आऊट का नारा दिया था। शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किए गए 7 अहम देशों में से 5 हिन्द महासागर क्षेत्र के देश हैं। जबकि नेपाल और भूटान दशकों से भारत के अच्छे पड़ोसी रहे हैं। यद्यपि नेपाल के साथ संबंधों में भी ज्वार भाटा आता रहा है लेकिन दोनों देशों में सांस्कृतिक और सामाजिक संबंध बहुत गहरे हैं। भारत द्वारा चीन और पाकिस्तान को शपथ ग्रहण समारोह में नहीं बुलाना हमारी स्पष्ट विदेश नीति और कूटनीति को प्रदर्शित करता है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी दोबारा विदेश मंत्री का पद सम्भालते ही कहा है कि दुनिया देख चुकी है कि संकट के समय अगर कोई देश ग्लोबल साऊथ के साथ खड़ा रहा तो वो भारत ही है। जी-20 की अध्यक्षता के दौरान जिस तरह हमने अफ्रीकी संघ की सदस्यता के लिए कोशिश की, उससे दुनिया के देशों का विश्वास हम पर बढ़ा है। भारत के जो पड़ोसी देश चीन के प्रभाव के चलते अपनी नीतियों को लेकर दुविधा में रहते हैं उनका प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आना अच्छा संकेत है।
जानकारों की मानें तो पीएम मोदी अपने पड़ोसियों को साधना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि भारत के पड़ोसी देशों का झुकाव चीन की ओर अधिक न हो। जैसा कि बीते कुछ समय में देखा गया है। नेपाल, श्रीलंका और मालदीव बीते कुछ समय से चीन से अधिक प्रभावित हुए हैं। चीन ने श्रीलंका, मालदीव को अपने फायदे के लिए टारगेट किया है। चीन की वजह से ही बीते समय में नेपाल से रिश्तों में खटास आई। ड्रैगन की वजह से ही भारत का मालदीव संग रिश्ता तनाव में आया। हालांकि, अब भारतीय प्रयासों से ये देश अब ट्रैक पर आने लगे हैं। चीन इन देशों को कर्ज के जाल में फंसाकर हिंद महासागर क्षेत्र में अपना दबदबा बनाना चाहता है। अगर चीन अपने मंसूबों में कामयाब होकर भारत को चौतरफा घेरना चाहता है। यही वजह है कि भारत अपने पड़ोसियों से रिश्ते बेहतर कर उन्हें चीन से दूर करने में जुटा है।
अब सवाल उठता है कि आखिर इसके पीछे भारत की क्या मंशा? तो इसका जवाब है समुद्री सुरक्षा। चीन समंदर का सिकंदर बनना चाहता है। वह हिंद महासागर पर अपना एकछत्र राज चाहता है। ऐसा करके वह समुद्री सुरक्षा को मजबूत करना चाहता है। वह हिंद महासागर क्षेत्र में अपना दबदबा बढ़ाकर भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है। यही वजह है कि भारत हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी दखल को रोकना चाहता है। चीन लालच-प्रलोभन देकर भारत के पड़ोसी देशों को अपने पाले में लाना चाहता है। यह भारत के समुद्री सुरक्षा के लिहाज से काफी खतरनाक होगा। यही वजह है कि अब भारत की नजर मालदीव, श्रीलंका, सेशल्स, मॉरिशिस और बांग्लादेश से रिश्ते को और बेहतर करने पर है।
नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल प्रचंड की कोशिश चीन और भारत के साथ संबंधों में संतुुलन साधने की है। उनके पूर्ववर्ती ओली के कार्यकाल में भारत के साथ संबंधों में तल्खी पैदा हो गई थी। सेेशल्स समुद्री सुरक्षा की दृष्टि से बेहद अहम है और उसने हमेशा समुद्री सुरक्षा के मामले में भारत का समर्थन किया है। मॉरिशिस के राष्ट्रपति प्रविद कुमार जगन्नाथ ने ब्लू इकोनमी और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में भारत को काफी सहयोग दिया। भारत और भूटान के संबंध राजनीतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से मजबूत हैं। दोनों देशों में ऊर्जा, जल प्रबंधन और शिक्षा में सहयोग बढ़ा है। प्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यकाल में भारत-बंगलादेश संबंधों में काफी प्रगति हुई है और उसने भारत की समुद्री नीति का हमेशा समर्थन िकया है। इन देशों से बेहतर संबंध के चलते चीन को अहम संदेश पहुंच गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा भविष्य में भारत की भूमिका एक प्रमुख शक्ति बनाने की है। कितना अच्छा होता कि पड़ोसी पाकिस्तान आतंकवाद छोड़कर भारत का मित्र देश बनता तो उसे भी ज्यादा फायदा होता।