भारत-यूएई संबंध नई ऊंचाइयों पर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता सम्भालने के बाद खाड़ी देशों से भारत के रिश्ते अब तक के ऊंचे मुकाम पर हैं। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), बहरीन, ओमान, कुवैत, कतर से लेकर सऊदी अरब तक सबके साथ गहरी दोस्ती नजर आ रही है। प्रधानमंत्री मोदी सात बार यूएई का दौरा कर चुके हैं। दो बार सऊदी अरब और कतर भी जा चुके हैं। ओमान और बहरीन की भी यात्रा कर चुके हैं। जब 2015 में प्रधानमंत्री यूएई गए थे तो 34 वर्ष बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री यूएई गया था। इस वर्ष फरवरी में मोदी यूएई गए थे। वहां भव्य मंदिर की आधारशिला रखी थी। जिसके लिए जमीन स्वयं यूएई के क्राउन प्रिंस शेख खालिद बिन मोहम्मद जायद अल नाहयान ने लीज पर दी थी। पिछले कुछ वर्षों में यूएई अरब देशों में भारत का मजबूत आैर भरोसेमंद साथी बन गया है। आर्थिक नजरिए से अरब देशों में सऊदी अरब, यूएई, ईरान, इराक जैसे देश काफी प्रभावशाली माने जाते हैं, जिनकी वैश्विक मंच पर आर्थिक गतिविधियों को आकार देने में बड़ी भूमिका है। इनमें से यूएई ही ऐसा देश है जिसकी भारत के साथ साझेदारी पिछले कुछ सालों में बेहद मजबूत हुई है। कूटनीति के साथ ही यूएई के साथ दोस्ती का सबसे प्रमुख सतम्भ द्विपक्षीय व्यापार है। भारत के व्यापारिक साझेदार के मामले में यूएई तीसरे नम्बर पर है। अमेरिका और चीन के बाद यूएई ही भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। इतना ही नहीं यूएई भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य भी है। निर्यात गंतव्य के मामले में अमेरिका पहले नम्बर पर है। इसके अलावा भारत के आयात के मामले में भी चीन के बाद यूएई दूसरे नम्बर पर है।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की अहमियत बढ़ने के साथ-साथ इसकी अर्थव्यवस्था भी तेजी से बढ़ी है। जो खाड़ी देश पाकिस्तान के भरोसेमंद मित्र थे अब उनका झुकाव भारत की तरफ है। खाड़ी देश भारत में निवेश कर अच्छी-खासी कमाई करने के इच्छुक हैं। इससे भारत को काफी फायदा हो रहा है। यूएई के क्राउन प्रिंस शेख खालिद बिन मोहम्मद तीन दिवसीय भारत दौरे पर आए हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से द्विपक्षीय वार्ता के दौरान ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े चार महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर भी हुए हैं। इन समझौतों के तहत यूएई के साथ भारत को एलएनजी आपूर्ति का रास्ता साफ ही नहीं हुआ बल्कि दोनों देशों के बीच परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में संभावनाओं को तलाशने के लिए समझौता हुआ है। रणनीतिक उद्देश्य से पैट्रोलियम भंडार बनाने और अबूधाबी की कम्पनियों के बीच सहमति बनी है। दोनों देशों के बीच स्थानीय मुद्रा में कारोबार की शुरूआत पहले ही हो चुकी है। भारत उससे कच्चा तेल भारतीय मुद्रा में खरीद रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खाड़ी देशों को प्राथमिकता देने के पीछे भारत के अपने हित भी जुड़े हुए हैं।
सबसे बड़ी बात भारत से बाहर जितने भी भारतीय रहते हैं उनमें से एक चौथाई से ज्यादा खाड़ी देशों में रहते हैं। खाड़ी देशों में लगभग 90 लाख भारतीय हैं, इनमें से 34.3 लाख अकेले यूएई में और 25.9 लाख सऊदी अरब में रहते हैं। 10.3 लाख भारतीय कुवैत, 7.8 लाख ओमान, 7.5 लाख कतर और 3.3 लाख भारतीय बहरीन में रहते हैं। विदेश में रहने वाले भारतीय जितना पैसा भेजते हैं उसका आधा हिस्सा इन्हीं देशों में रहने वाले भारतीयों से आता है। तेल और गैस चाहिए तो खाड़ी देशों से ही आता है, भारत की जरूरतों का लगभग 65 फीसदी तेल इन्हीं देशों से आता है। कतर से एलएनजी आती है तो सऊदी अरब, ओमान से कच्चा तेल जो भारत की जरूरतों को पूरा करते हैं। यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। अरबों डॉलर का निवेश खाड़ी देशों से आता है। सबसे महत्वपूर्ण बात पाकिस्तान के भारत विरोधी एजेंडे का मुकाबला करने में खाड़ी देश हमेशा मदद करते हैं।
भारतीय कम्पनियों ने भी यूएई में 85 अरब डालर का निवेश किया हुआ है। भारत के लिए यूएई त्रिपक्षीय ढांचे के तहत सहयोग के नजरिए से भी कूटनीतिक महत्व रखता है। भारत प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक रुख के चलते त्रिपक्षीय ढांचे के तहत यूएई भारत, फ्रांस का दोस्त बन चुका है। यूएई एक तेल आधारित अर्थव्यवस्था है। पिछले कुछ सालों से यूएई की कोशिश है कि तेल आधारित अर्थव्यवस्था पर उसकी निर्भरता कम हो। इस मकसद से भारत उसके लिए सबसे पसंदीदा देश बन चुका है। भारत की ऊर्जा जरूरत को पूरा करने के लिए यूएई निर्णायक साबित हो सकता है। अब तो सऊदी अरब भी भारत में जमकर निवेश कर रहा है। उम्मीद है कि भारत और यूएई संबंध आने वाले दिनों में नए आयाम स्थापित करेंगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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