कर्नाटक में ‘हेट’ क्राइम
भारत में नफरती बयानों या घृणामूलक वक्तव्यों को लेकर लम्बी बहस चलती रही है और समय–समय पर इसकी संवैधानिक व कानूनी समीक्षा भी होती रही है परन्तु इसके बावजूद बीमारी बदस्तूर जारी है। वास्तव में नफरती बयान जब दिया जाता है तो वह दो समुदायों या सम्प्रदायों के बीच घृणा पैदा करने की गरज से दिया जाता है जिससे सामाजिक एकता का ताना-बाना छिन्न- भिन्न होता है और इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचता है। किन्हीं भी दो समुदायों के बीच वैमनस्य पैदा करने की कार्रवाई राजद्रोह जैसे गंभीर अपराध की श्रेणी में आती है। भारतीय दंड संहिता या इसके नये प्रारूप भारतीय न्याय संहिता में इस बावत विविध प्रावधान भी किये गये हैं। सामुदायिक या साम्प्रदायिक कलह बढ़ाने की किसी भी गतिविधि को तभी गति मिलती है जब इसके पीछे इन समुदायों में नफरत फैलाने की कार्रवाई की जाये। इस नफरत से ही हिंसा का वातावरण बनने की संभावना पैदा होती है अतः नफरती बयानों पर नियन्त्रण किया जाना न केवल सामाजिक भाई-चारे के लिए जरूरी हो जाता है बल्कि राष्ट्रीय एकता के लिए भी आवश्यक हो जाता है।
वैसे तो हर राज्य में नफरती बयानों को लेकर कुछ न कुछ विशिष्ट कानून हैं और इनमें सबसे ऊपर भारतीय न्याय संहिता का कानून है परन्तु फिर भी कुछ राज्य अपने प्रदेश में सामाजिक शान्ति बनाये रखने के लिए विशेष कानून बनाते हैं। संभवतः 2023 में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिये थे कि वे नफरती बयानों पर काबू रखने के लिए अपने–अपने राज्यों में इनका संज्ञान लेते हुए जरूरी कानूनी कार्रवाई करें। सर्वोच्च न्यायालय ने जिलों की पुलिस को भी अधिकृत किया था कि वह स्वयं ही एेसी गतिविधियों का संज्ञान ले और कड़ी कार्रवाई करे। इसके बावजूद कुछ राज्य सरकारों ने यह जरूरत महसूस की कि उनके राज्य में इस बीमारी से निपटने के लिए अलग से सख्त कानून होना चाहिए। इसी क्रम में कर्नाटक की कांग्रेसी सरकार ने नफरती बयान या हेट स्पीच के विरुद्ध एक कानून बनाये जाने के लिए अपनी विधानसभा में विधेयक पेश किया है।
पूरे देश में यह अपनी तरह का अलग विधेयक है जिसमें हेट स्पीच के लिए दस वर्ष तक की कैद और एक लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इस विधेयक में हेट स्पीच के विविध आयामों को छुआ गया है और सुनिश्चित किया गया है कि व्यक्तिगत या सामूहिक तौर पर हेट स्पीच का निशाना बनाने वाले किसी भी व्यक्ति या समूह अथवा संस्था को बख्शा न जाये। कर्नाटक हेट स्पीच एंड हेट क्राइम्स ( रोकथाम) विधेयक-2025 कहता है कि हेट स्पीच से ही हेट क्राइम या नफरती अपराध का जन्म होता है। यदि किसी नफरती बयान को प्रकाशित या लिखित या शब्दों में बोलकर जारी किया जाता है अथवा उसका आभास अन्य रूप में कराया जाता है अथवा इलैक्ट्राॅनिक माध्यम से एेसा किया जाता है, जिससे किसी व्यक्ति (जिन्दा या मुर्दा) या व्यक्तियों के समूह अथवा समुदाय के खिलाफ दुश्मनी या रंजिश का वातावरण बने तथा उसकी भावनाओं को चोट पहुंचे और यह अपने स्वार्थवश दुर्भावना पूर्ण हो तो आवश्यक कार्रवाई की जायेगी। विधेयक में स्वार्थवश दुर्भावना या पूर्वाग्रह को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि एेसा धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय, लिंग, जन्मस्थान, निवास, कबीले, अपंगता मूलक पक्षपात पूर्ण नजरिये से जाहिर होगा। परन्तु इस मामले में सृजनात्मक कलात्मक कृतियों को छूट दी गई है। साथ ही वैज्ञानिक अध्ययन व विश्लेषण भी इस दायरे में भी नहीं आयेंगे। विधेयक में प्रावधान है कि हेट क्राइम के लिए कम से कम एक वर्ष की सजा का प्रावधान होगा जो सात साल की सजा तक बढ़ सकता है और 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लग सकता है। मगर यदि कोई एेसा अपराध पुनः करता है तो उसकी सजा दस वर्ष की होगी और एक लाख रुपए का जुर्माना भी होगा।
विधेयक में साफ किया गया है कि नया कानून पुराने कानूनों के साथ ही चलेगा और उनका इस पर कोई असर नहीं पड़ेगा। विधेयक में स्पष्ट किया गया है कि यदि कोई समूह, संगठन या संस्था भी हेट क्राइम में संलिप्त पाई जायेगी तो उसे भी कानून सामूहिक रूप से दंडित करेगा। किसी संगठन या समूह अथवा संस्था के मुखिया से लेकर हर जिम्मेदार व्यक्ति को अपराध के लिए दंडित किया जा सकता है बशर्ते जब अपराध किया गया है तब वह संस्था को चला रहा हो। इस विधेयक की विशेषता यह है कि इसमें नफरती बयान को स्पष्टता के साथ परिभाषित किया गया है और हेट क्राइम के लिए किसी संस्था को भी नहीं बख्शा गया है। बेशक भारत में नफरत पैदा करने वालों से निपटने के लिए कानून तो हैं मगर इनमें नफरती बयानों की स्पष्ट व्याख्या नहीं की गई है। कर्नाटक का कानून यह काम करता है। प्रायः धार्मिक द्वेष फैलाने के विरुद्ध इन कानूनों का इस्तेमाल किया जाता है। जाहिर है कि धार्मिक घृणा फैलाने से ही समाज में हिंसक वातावरण भी बनता है। मगर व्यक्तिगत आधार पर भी विद्वेष फैलाने को रोकने को लेकर कर्नाटक सरकार जो कानून बनाने जा रही है उसके कई आयाम होंगे।

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