लाहौर के एक लाला हरकिशन लाल
लाहौर व वर्तमान पाक पंजाब की एक-एक इंच भूमि इन चंद हिन्दू लालों की कर्जदार है। इनमें लाला लाजपत राय, सर गंगा राम, दयाल सिंह मजीठिया, लाला लालचंद आदि के साथ लाला हरकिशन लाल का नाम प्रमुखता के साथ जुड़ा हुआ है। स्वाधीनता-संग्राम में जहां एक देश के क्रांतिकारी युवाओं ने इसी लाहौर की धरती पर अंग्रेजों के विरुद्ध तहलका मचा रखा था, वहां एक वर्ग ऐसा भी था जो यह मानता था कि जब तक आर्थिक जगत पर स्वदेशी लोगों का कब्ज़ा नहीं होता, तब तक ब्रिटिश साम्राज्य पर निर्भरता बनी रहेगी।
इसी महत्वपूर्ण चुनौती का सामना करने ये सम्पन्न लोग आगे आए। इन्हीं में एक प्रमुख नाम लाला हरकिशन लाल का था। दयाल सिंह मजीठिया ने मीडिया क्षेत्र में दी ट्रिब्यून-ट्रस्ट स्थापित किया तो लाला जगत नारायण, महाशय कृष्ण और महाशय खुशाल चंद खुर्संद जैसे ‘लालों’ ने उर्दू, हिंदी पत्रकारिता की बुनियाद रखी। मजीठिया, ब्रह्म समाज से जुड़े हुए थे जबकि शेष तीनों का जुड़ाव आर्य समाज से था। सबसे बड़ी चुनौती उन दिनों वित्तीय संस्थानों को लेकर थी। बैंकिंग, बीमा, बिजली कंपनियां व व्यापार पर भी उन दिनों ब्रिटिश साम्राज्यवाद या उसके ऐजेंटों का दबदबा था। इस बारे में पहली औपचारिक बैठक वहां के एक लाले, राय मूलचंद और लाल लाजपत राय ने बुलाई थी। लाला हरिकिशन लाल भी उन्हीं दिनों इंग्लैंड से लौटे थे। उन्हें बैंकिंग व बीमा आदि क्षेत्रों का पूरा-पूरा अनुभव हो चुका था। उन्हेें भी इस अभियान से जोड़ लिया गया और इन परिस्थितियों में पंजाब नेशनल बैंक की बुनियाद रखी गई। तब इसमें शुरुआती रूप में केवल दो लाख की जमा पूंजी का निवेश था।
वर्ष 1913 में भारत का पूरा बैंकिंग उद्योग एक बार चरमरा गया था। कुल 78 बैंक संकट में आ गए थे। उनमें सिर्फ पंजाब नेशनल बैंक ही संकट को झेल पाया। तब पंजाब के तत्कालीन वित्त कमिश्नर जेएच मेनांड ने लाला हरकिशन लाल से कहा था, ‘इस संकट में ज़्यादातर बैंक डूब गए। तुम अपने कुशल प्रबंधन के कारण बचे रहे। इसी बैंक में जलियांवाला बाग कमेटी का भी खाता खुला और जिसका लेन-देन स्वयं महात्मा गांधी व जवाहर लाल नेहरू के हस्ताक्षरों से होता था। इसी मध्य 1917 से 1946 तक एक विलक्षण उछाल आया जिसमें शाखाओं की संख्या 278 तक पहुंच गई और डिपाजिट-संख्या भी 52 करोड़ का आंकड़ा पार कर गई।
विभाजन से पहले ही इसका रजिस्टर्ड कार्यालय दिल्ली चला गया और इसके लिए बाकायदा लाहौर हाईकोर्ट से 20 जून, 1947 को अनुमति भी ली गई थी। मगर यह संस्थान सदा अपने एक प्रमुख संस्थापक लाला हरकिशन लाल का ऋणी रहा। विभाजन के समय पश्चिमी पाकिस्तान की 92 शाखाओं में काम बंद करना पड़ा और उनका जो सामान व रिकार्ड दिल्ली लाया गया उसमें असंख्य फोटो-फ्रेम लाला हरकिशन लाला के थे।
बात सिर्फ पंजाब नेशनल बैंक की नहीं है। यह गाथा उस काल की है जब अविभाजित पंजाब के कुछ लालों एवं समाजशास्त्रियों ने मिल कर वित्तीय खेत्र में स्वदेशी लहर को चलाया था। इस टोली की दलील थी, जब तक वित्तीय क्षेत्र व उद्योग- धंधों में स्वदेशी पहलकदमी नहीं होगी, तब तक स्वाधीनता आंदोलन को भी ठोस आधार देना असंभव बना रहेगी। इसी संकल्प को लेकर 19 मई, 1894 को देश का सबसे बड़ा स्वदेशी बैंक ‘पंजाब नेशनल बैंक’ स्थापित किया था। इनमें लाला लाजपत राय, सरदार दयाल सिंह मजीठिया, लाला लालचंद आदि के साथ प्रमुख भूमिका लाला हरकिशन लाल की थी। वह पहले स्वदेशी बैंक पंजाब नेशनल बैंक के संस्थापक सैक्रेटरी थे। तब दयाल सिंह मजीठिया को इसका पहला अध्यक्ष बनाया गया था और तब के निदेशक मंडल में पारसी समुदाय के ईसी जरीवाला, मुल्तान के एक प्रमुख रईस लाला प्रभुदयाल, एक प्रमुख एडवोकेट बख्शी जयशी राम और अमृतसर के लाला ढोलन दास भी शामिल थे।
सिर्फ सात माह की अवधि में ही पहला मुनाफा 4 प्रतिशत घोषित किया गया और जब आर्यसमाज मंदिर अनारकली लाहौर में इसकी पहली शाखा खुली, तब लाला लाजपतराय ने इसमें पहला खाता खोला था। उनके छोटे भाई ने भी अपनी नौकरी बैंक मैनेजर के रूप में शुरू की थी। तब उस बैंक में कुल सात कर्मचारी थे और कुल वेतन बिल 320 रुपए प्रतिमाह ही था। वर्ष 1926 से 1936 की अवधि में ही महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू आदि ने भी बैंक में अपने बचत खाते खोले। अब थोड़ा लाला हरकिशन लाल की शुरुआती जि़ंदगी पर नज़र डाल लें। वर्तमान पाक-पंजाब के चर्चित शहर डेरा गाज़ीखान के समीप एक कस्बे लैय्या में एक साधारण हिन्दू अरोड़ा परिवार में हुआ था। स्कूली शिक्षा और बाद में गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर में छात्रवृत्तियों पर पढ़ने के बाद वह ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज में उच्च शिक्षा के लिए चले गए। इसके लिए भी उन्हें एक छात्रवृत्ति की परीक्षा में उत्तीर्ण होना पड़ा था। वापसी पर उन्हें गणित के प्राध्यापक की नौकरी मिल गई।
उसी मध्य सरदार दयाल सिंह मजीठिया की प्रेरणा से उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक का पहला अवैतनिक सेक्रेटरी बनना स्वीकार किया और उसी वर्ष ‘लाला’ ने अपने निजी स्तर पर लाहौर में ‘भारत इंश्योरेंस कंपनी’ स्थापित की। अपने ही स्तर पर वर्ष 1913 में लाहौर इलेक्ट्रॉनिक सप्लाई कंपनी बनाई। वर्ष 1919 में लाला को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध जंग छेड़ने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। उस पर बैंकिंग क्षेत्र में भी अनियमितताओं के बेबुनियाद आरोप चस्पां हुए। बाद में उनके बेटे एवं अपने समय के स्थापित एडवोकेट केएल गाबा ने ‘सर डगलस यंत्र ज़ मैग्ना कार्टा’ नामक एक पुस्तक भी लिखी। मगर उसे भी तत्कालीन सरकार ने अदालती मानहानि के आरोप में जेल में डाल दिया। ‘लाला’ का पूरा जीवन संघर्षों में बीता और अखिर 1937 में उन्होंने अंतिम सांस ली।