नायडू का दिल्ली आगमन
‘यूं ही नहीं मुझे अपनी शक्ल के साथ तेरी शक्ल भी नज़र आती है
क्या सच नहीं कि मेरे आइने में कहीं पहले से कैद है तेरा ये चेहरा’
सियासत शह-मात का अनोखा खेल है, यहां न तो दोस्त और न ही दुश्मन चिर स्थायी होते हैं, हर बदलते शह के साथ निष्ठाएं बदलती हैं और खेलने का अंदाज भी। सो, जब इस दफे 4 जुलाई को टीडीपी सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू दिल्ली पधारे तो अपने साथ वे लेकर आए थे मांगों की एक लंबी फेहरिस्त। उन्होंने दिल्ली पहुंच कर प्रधानमंत्री मोदी समेत कोई आधा दर्जन केंद्रीय मंत्रियों से भी मुलाकात की। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तो उनकी अगवानी के लिए बाहर गेट पर खड़े थे, अमित शाह ने नायडू को मिलने के लिए अपने घर आमंत्रित किया, नायडू जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मिले तो उन्होंने बकायदा मंत्री जी को अपना लंबा प्रतिवेदन ही सौंप दिया।
नायडू ने जिन अन्य केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात की उनमें नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान, पीयूष गोयल जैसे धुरंधर मंत्री भी शामिल थे। नायडू वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया से भी मिलने पहुंचे। आंध्र प्रदेश की नई राजधानी के तौर पर नायडू ने बहुत पहले ही अमरावती का चुनाव किया था, जिसे वे सिंगापुर की तर्ज पर डेवलप करना चाहते हैं, इस पूरी योजना का बजट एक लाख करोड़ से भी ज्यादा का है। सो, कर्ज में आंकठ डूबे आंध्र के लिए नायडू बतौर पहली किस्त 15 हजार करोड़ रुपयों की केंद्र सरकार से डिमांड कर रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने आंध्र की सिंचाई परियोजनाओं के लिए भी केंद्र के समक्ष अतिरिक्त 11 हजार करोड़ रुपयों की डिमांड रखी है।
मैट्रो समेत कई नई ट्रेनों की डिमांड भी उन्होंने केंद्र के आगे पहले से रखी हुई है। सूत्र बताते हैं कि नायडू ने अपनी मांग पूरी करने के लिए केंद्र को छह महीने का अल्टीमेटम दिया है, चूंकि उन्हें इस बात का बखूबी इल्म है कि मोदी 3-0 सरकार के लिए उनकी बैसाखी कितनी महत्वपूर्ण है।
क्यों एक कांग्रेसी सीएम से मिलना चाहते थे नायडू
तेदेपा प्रमुख चंद्रबाबू नायडू बहुत दिनों तक यूं ही चुप बैठने वालों में नहीं है। उन्होंने स्वयं ही अपने उस पत्र का खुलासा कर दिया जिसमें उन्होंने बताया कि ‘उन्होंने एक पत्र लिख कर तेलंगाना के कांग्रेसी सीएम रेवंत रेड्डी से मिलने का 6 जुलाई को समय तय किया था।’
इस पत्र से यह भी आभास मिल रहा है कि नायडू तेलंगाना के साथ मिल कर कोई नया प्रोजेक्ट शुरू करने वाले हैं। सच पूछिए तो चंद्रबाबू और रेवंत रेड्डी में गुरु-शिष्य का नाता है। रेवंत रेड्डी 2009 और 2014 में टीडीपी के विधायक रहे थे। संयुक्त आंध्र प्रदश के दौर में वे चंद्रबाबू नायडू के जूनियर के रूप में तेलगुदेशम पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष भी रह चुके हैं। आम तौर पर राज्य विभाजन संबंधी पेचीदगियों को सुलझाने के क्रम में दो मुख्यमंत्रियों की बैठक होती है तो उसमें केंद्रीय गृह मंत्री की अनिवार्य उपस्थिति भी देखी जाती है, पर इस बार रेवंत और चंद्रबाबू के दरम्यान जब बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा तो उस बैठक में अमित शाह व्यस्तताओं के चलते नहीं आए। शायद चंद्रबाबू भाजपा व उसके कर्णधारों को यह दो टूक संदेश देना चाहते थे कि कांग्रेस व राहुल गांधी से उनका कोई निजी बैर नहीं, दोस्ती के रास्ते अब भी खुले हुए हैं।
योगी से क्यों नहीं मिले भागवत
ताजा लोकसभा चुनाव के परिणामों ने दिल्ली शीर्ष व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दरम्यान तल्खियां थोड़ी उजागर कर दी हैं। लगे हाथ भाजपा के सहयोगी दल भी यूपी में अपने लचर प्रदर्शन का ठीकरा भी योगी के सिर ही फोड़ रहे हैं, योगी जानते हैं कि सत्ता के किस शीर्ष के कंगूरे से इन्हें इशारा प्राप्त है। पिछले दिनों जब संघ प्रमुख मोहन भागवत ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग’ कार्यक्रम में हिस्सा लेने योगी नगरी गोरखपुर पहुंचे तो कयासों के बाजार गर्म थे कि वे विशेष तौर पर योगी से मिलने ही गोरखपुर पधारे हैं। कुछ उत्साही समाचार पत्रों व डिजिटल मीडिया ने तो भागवत व योगी की मुलाकात की खबरें भी चला दीं। पर कुछ कारणों से ये मुलाकात संभव नहीं हो पाई।
दरअसल ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग’ के आयोजकों ने योगी से पहले से कह रखा था कि जब भागवत यहां पधारेंगे तो वे योगी से अवश्य ही मिलना चाहेंगे। सो, उस दिन दोपहर व शाम में कोई दो बार गोरखपुर में सीएम का रूट लगा, पर योगी आए नहीं शायद योगी व भागवत की मुलाकात का संयोग बना ही नहीं। इस बाबत संघ द्वारा जारी प्रेस रिलीज में खुलासा किया गया कि ‘कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यक्रम’ के दौरान सर संघचालक किसी राजनैतिक व्यक्ति से नहीं मिलते हैं। पर जब इस मामले ने इतना तूल पकड़ लिया तो फिर भागवत व योगी की फोन पर एक लंबी बातचीत हुई ताकि हर तरह के कयासों पर कोई विराम लगाया जा सके।
डिप्टी स्पीकर के लिए अवधेश प्रसाद
इंडिया गठबंधन लोकसभा में डिप्टी स्पीकर पद के लिए चुनाव में जा सकता है, क्योंकि स्पीकर पद के चुनाव में विपक्ष ने मत विभाजन की मांग नहीं की थी, सो बतौर स्पीकर ओम बिरला का चुनाव इतनी सहजता से हो सका। सूत्र बताते हैं कि डिप्टी स्पीकर पद के लिए विपक्ष अयोध्या के सपा सांसद अवधेश प्रसाद का नाम आगे कर सकता है, वे पुराने खाटी समाजवादी नेता हैं, जाति से दलित हैं और अयोध्या यानी कि फैजाबाद जैसी महत्वपूर्ण सीट से भाजपा को हरा कर संसद में पहुंचे हैं। कहते हैं अवधेश प्रसाद के नाम को लेकर जहां राहुल व अखिलेश में सहमति बन चुकी हैं, वहीं तृणमूल कांग्रेस ने इस बारे में अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। सूत्रों की मानें तो एक प्रमुख औद्योगिक घराने के दबाव पर ममता बनर्जी स्पीकर के चुनाव में खुल कर विपक्ष के साथ नहीं आ पाई थी, यही थैलीशाह जो अक्सर राहुल के निशाने पर रहते हैं डिप्टी स्पीकर के चुनाव में भाजपा के कहने पर दीदी का रुख मोड़ सकते हैं।
...और अंत में
इस दफे 18वीं लोकसभा में दिलचस्प नज़ारों के दीदार हुए। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी एक अलग अंदाज में सदन में बोलते नज़र आए। अपनी रौ में बह कर कुछ ऐसा बोले जो शब्दों के खंजर सत्ता पक्ष को सीधे चुभा गए, नेता प्रतिपक्ष के भाषण के दौरान कई केन्द्रीय मंत्रियों को लोकसभा स्पीकर से संरक्षण मांगना पड़ा। नेता प्रतिपक्ष के भाषण के विरोध व गतिरोध स्वरूप 8 केंद्रीय मंत्रियों को अपनी सीटों से उठना पड़ा। अगले दिन जब नेता सदन पीएम की बोलने की बारी आई तो उन्होंने भी राहुल पर हमले में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। यानी अब विपक्ष ने भी शर्तिया ऐलान कर दिया है कि ‘वह सिर्फ सुनेगा नहीं बल्कि अब सुनाएगा भी और सत्ता पक्ष भी सुनने की आदत डाल लें।’