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नरेन्द्र मोदी तीसरी बार

03:53 AM Jun 08, 2024 IST
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श्री नरेन्द्र मोदी को भाजपा संसदीय दल का नेता चुन लिया गया है जिसका समर्थन एनडीए के सभी घटक दलों ने कर दिया है। अतः वह अब राष्ट्रपति से मिलकर नई सरकार बनाने का दावा करेंगे। संभवतः वह आगामी रविवार को प्रधानमन्त्री पद की शपथ लेंगे। वह लगातार तीसरी बार प्रधानमन्त्री बनने वाले दूसरे प्रधानमन्त्री होंगे। इससे पहले पं. जवाहर लाल नेहरू को ही लगातार तीसरी बार शपथ लेने का फख्र हांसिल है। हालांकि पं. जवाहर लाल नेहरू की पार्टी कांग्रेस लगातार तीसरी बार अपने बूते पर पूर्ण बहुमत में आयी थी जबकि श्री मोदी की पार्टी भाजपा इन चुनावों में अपने बूते पर बहुमत में नहीं आयी है और इसके लिए उसे उन बहुत सारे राजनैतिक दलों का समर्थन लेना पड़ा है जिन्हें समायोजित करके एनडीए गठबन्धन बना है। लोकसभा चुनावों के पूरा हो जाने के बाद अब नई लोकसभा का गठन राष्ट्रपति श्री द्रौपदी मुर्मू करेंगी जिसमें पांच साल के लिए श्री मोदी की नई सरकार बनेगी। अभी यह नहीं मालूम है कि इस नई सरकार में कौन-कौन से एनडीए के घटक दल शामिल होंगे परन्तु इतना निश्चित है कि यह एनडीए की ही सरकार होगी।

श्री मोदी ऐसे पहले प्रधानमन्त्री होंगे जो दस वर्ष तक अपनी पार्टी के पूर्ण बहुमत में आने के बावजूद एनडीए की सरकार के प्रधानमन्त्री कहलाये। यह भी महत्वपूर्ण है कि आज की भाजपा संसदीय दल व एनडीए संसदीय दल की संयुक्त बैठक संसद के पुराने ऐ​तिहासिक भवन में हुई। इस भवन के उसी सेंट्रल हाल में यह बैठक हुई जिसमें आजादी के समय हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान लिखा था। श्री मोदी ने बैठक में आने के बाद संविधान को माथे से लगा कर उसे नमन किया। इन चुनावों में संविधान एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ था जिसे विपक्ष ने बनाया था अतः संविधान को नमन करके श्री मोदी ने स्पष्ट किया कि संविधान उनकी नई सरकार के लिए भी परम पवित्र रहेगा। उम्मीद की जा रही है कि सीधे एनडीए को चुनावों में इंडिया गठबन्धन के मुकाबले जो बहुमत प्राप्त हुआ है उसे देखते हुए एनडीए के घटक दलों के सदस्यों को भी सरकार में शामिल करके इस सरकार के स्थायित्व की गारंटी दी जायेगी। गठबन्धन का अपना धर्म होता है जिसमें सभी शामिल दलों के घोषणापत्रों के वादों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

जाहिर है कि एनडीए के लगभग सभी घटक दलों ने जब अपने-अपने घोषणापत्राें पर चुनाव लड़ा है तो उनका एजेंडा भी अलग-अलग होगा मगर जिस सरकार में वे शामिल होने जा रहे हैं उसका केवल एक ही एजेंडा हो सकता है अतः बहुत जल्दी ही हमें एनडीए के न्यूनतम सांझा कार्यक्रम के बारे में भी पता चल सकता है। सभी दलों को साथ लेकर चलने का महारथ श्री मोदी को दिखाना होगा। हालांकि उनसे पहले भाजपा के ही नेता स्व. अटल बिहारी वाजपेयी 1999 से लेकर 2004 तक दो दर्जन दलों की गठबन्धन सरकार सफलतापूर्वक चला चुके हैं। यह नजीर भाजपा के भीतर की ही है। श्री मोदी ने यह स्वीकार किया है कि गठबन्धन सरकारें भारत की विविधता की प्रतिरूप होती हैं। जिस प्रकार भारत की विविधता में हम एकता देखते हैं उसी प्रकार का चरित्र गठबन्धन सरकारों का भी होता है और इनका स्थायित्व भी इस बात पर निर्भर करता है कि उनमें शामिल प्रत्येक दल अपने दल गत स्वार्थ छोड़ कर राष्ट्रहित में काम करें। गठबन्धन सरकारों में कोई भी दल छोटा या बड़ा नहीं होता बल्कि हर दल साझीदार होता है। मोदी की पार्टी भाजपा का आगे बढ़ने का इतिहास भी विभिन्न राजनैतिक दलों के साथ गठजोड़ करके आगे बढ़ने का रहा है अतः इस पार्टी के नेता गठबन्धन के महत्व को समझते हैं। भारत में तो सबसे पहला गठबन्धन प्रयोग देश के उन नौ राज्यों में हुआ था जहां पहली बार कांग्रेस पार्टी हारी थी। हालांकि उससे पहले 1959 में केरल में कम्युनिस्ट सरकार गिरने के बाद भी कांग्रेस ने तत्कालीन प्रजा समाजवादी पार्टी के साथ गठबन्धन सरकार चलाई थी।

1967 में नौ राज्यों में गठबन्धन की संविद सरकारों का प्रयोग असफल हो गया था क्योंकि धुर विरोधी कम्युनिस्ट पार्टी व जन संघ एक साथ शामिल थे। श्री मोदी ने अपनी पार्टी जनसंघ के भारतीय जनता पार्टी बन जाने का सफर देखा है और 1984 में लोकसभा की इसकी केवल दो सीटें भी देखी हैं। अतः उनसे अपेक्षा है कि वह गठबन्धन के धर्म के मर्म भलीभांति समझेंगे। इसका परिचय भी उन्होंने नेता चुने जाने के बाद दे दिया है और प्रत्येक घटक दल के नेता को बराबर का सम्मान दिया है। श्री मोदी जानते हैं कि उनकी पार्टी के केवल 240 सांसद ही जीत कर आये हैं अतः उनकी सरकार गठबन्धन दलों पर निर्भर रहेगी अतः इसकी स्थिरता के लिए जरूरी होगा कि प्रत्येक दल के नेता को समुचित सम्मान देने की विधा को पुनर्जीवित किया जाये। इसलिए इस नई सरकार में संसदीय कार्य मन्त्री की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होने वाली है। स्व. वाजपेयी की सरकार में यह कार्य स्व. प्रमोद महाजन किया करते थे। इसके साथ ही एनडीए के संयोजक पद का सृजन भी करना पड़ेगा। एनडीए पिछले 29 साल से अस्तित्व में है और संयोजक के पद स्व. शरद यादव से लेकर जार्ज फर्नांडीस तक रहे हैं। कुशाग्र बुद्धि श्री मोदी इस पद पर भी किसी योग्य राजनीतिज्ञ को देखना पसन्द करेंगे जिससे सरकार का काम निर्बाध गति से चलता रहे। उनके नेता चुने जाने पर पंजाब केसरी परिवार की ओर से उन्हें बधाई।

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