मुफ्त तो कुछ भी नहीं है...
संसद में ‘आप’ नेता संजय सिंह ने जब कहा कि केंद्रीय बजट में जेलों का बजट बढ़ना चाहिए था तो उच्च सदन में हंसी के ठहाके गूंजने लगे। अपने तर्क को पुष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान में चल रही गिरफ्तारियों को देखते हुए, जेलों को ठीक करने की जरूरत है इसलिए बजट बढ़ाया जाना चाहिए, ‘आपने केवल 300 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। अभी आपने मुझे जेल भेजा है, कल आपकी बारी होगी। जेल का बजट बढ़ाएं... अगली बार आपकी बारी होगी’, सिंह ने कहा। यहां तक कि इस बात पर सभापति ने भी हामी भरी और सरकार से यह मांग पूरी करने को कहा।
उनकी दलील को भावनात्मक बताते हुए, राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सदन के नेता जेपी नड्डा से सिंह के सुझावों पर विचार करने के लिए कहा ‘आपको इस पर गौर करना चाहिए’ धनखड़ ने कहा। ऐसा होने की कोई सम्भावना नहीं है लेकिन फिर भी सिंह कम से कम विपक्षी नेताओं को जेल में डालने के सरकार के कदम पर ध्यान केंद्रित करने में सफल रहे। जेल में डाले गए लोगों में सिंह भी शामिल थे। यह सर्वविदित है कि विवादास्पद शराब घोटाला मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया, साथ ही बीआरएस की के. कविता सहित कई विपक्षी नेताओं को हिरासत में लिया गया है। अक्टूबर 2023 में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तारी के बाद संजय सिंह खुद जमानत पर हैं। सिंह की दलील और सभापति की प्रतिक्रिया हल्के-फुल्के अंदाज में हो सकती है, लेकिन वे बजट को सुर्खियों में ज़रूर ले आएं हैं।
छोटी-मोटी बातों के अलावा, विपक्ष ने इस तथ्य पर भी निशाना साधा है कि दो राज्यों, बिहार और आंध्र प्रदेश को दूसरों की तुलना में अधिक तरजीह दी गई है। बिहार और आंध्र प्रदेश, दोनों ने केंद्र में सरकार बनाने में भाजपा का समर्थन किया है क्योंकि अपने दम पर तो वह इसमें नाकाम थे। केंद्रीय बजट 2024 में वित्त मंत्री ने आंध्र प्रदेश की राजधानी अमरावती के विकास के लिए 15,000 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी। बिहार को भी सड़कों, हवाई अड्डों, मेडिकल कॉलेजों और खेलों के लिए 26,000 करोड़ रुपये सहित कई विकास परियोजनाओं के लिए धन मिला है।
विपक्ष पूरी तरह से इसका विरोध कर रहा है जबकि सरकार कह रही है कि यह पिछड़े राज्यों के प्रति उनकी ‘राजनीतिक हताशा’ और ‘नकारात्मक रवैया’ को दर्शाता है, जिन्हें विकास के लिए विशेष ध्यान और सहायता की आवश्यकता है। यहां तक की सत्तारूढ़ पार्टी विपक्ष के नेता राहुल गांधी को अपनी टिप्पणियों के लिए दोनों राज्यों, अर्थात् बिहार और आंध्र प्रदेश के लोगों से माफी मांगने की मांग कर रही है, जिसने सरकार पर ‘भेदभावपूर्ण बजट’ पेश करने का आरोप लगाया है।
अपेक्षित रूप से, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस आधार पर इस कदम का बचाव किया कि किसी भी राज्य को अनदेखा नहीं किया गया है ‘राज्यों को पहले की तरह ही आवंटन प्राप्त हो रहा है... और किसी भी चीज़ से इनकार नहीं किया गया है,’ उन्होंने कहा। साथ ही यह भी कहा की आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम को अपनी राजधानी और पिछड़े क्षेत्रों में विकास करने के लिए केंद्र की सहायता की आवश्यकता है।
इधर चन्द्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार दोनों न केवल सरकार का हिस्सा बने बल्कि उनका ठोस समर्थन भी किया और प्रधानमंत्री मोदी के लिए तीसरी बार शपथ लेने का मार्ग प्रशस्त किया, तो और कुछ हो न हो, इसी बात की वजह से भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी दोनों ही नायडू और कुमार के बहुत आभारी होंगे। बेशक, यह सब बदले में कुछ मांगे बिना तो नहीं हुआ होगा। आख़िरकार, मुफ्त कुछ भी नहीं है। राजनीतिक और वित्तीय दोनों तरह की मांगों की सूची काफी लंबी है। फिर भी ऐसा लगता है कि भाजपा ने इस परिस्थिति को संभालने की अच्छी कोशिश की है। शुरुआत के लिए, उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान की मांग की जिसे भाजपा ने पूरा किया। साथ ही दोनों राज्यों के लिए विशेष पैकेज की भी मांग थी, नायडू विशेष राज्य का दर्जा चाहते थे, बिहार भी।
एक विशेष श्रेणी का दर्जा, राज्यों के विकास और उनकी भौगोलिक और आर्थिक चुनौतियों को दूर करने में, उन्हें कर-लाभ और क्षेत्र के विकास के लिए वित्तीय सहायता में विशेष मदद करता है। अब तक, तेलंगाना सहित ग्यारह राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया है। भाजपा के गठबंधन सहयोगी अपने राज्यों के लिए विशेष श्रेणी का दर्जा मांग रहे हैं : यह एक लंबे समय से चला आ रहा मुद्दा है।
2014 में अपने विभाजन के बाद, आंध्र प्रदेश लगातार इस तथ्य के लिए लड़ रहा है कि राज्य के विभाजन की वजह से सामने आई चुनौतियों के कारण राज्य विशेष श्रेणी का हकदार है। आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देना भानुमती का पिटारा खोलने से कम नहीं है। अगर केंद्र सरकार उस रास्ते पर चलती तो वह अपने दूसरे सहयोगी जदयू को नजरअंदाज नहीं कर पाती। इसके अलावा, उड़ीसा जैसे अन्य राज्यों ने भी अपनी विशेष दर्जे की मांग दोहराई होती। इसलिए केंद्र सरकार ने विशेष दर्जा शब्द का जिक्र किए बगैर अपने सहयोगियों का खजाना भरने का विवेकपूर्ण कदम उठाया। तथ्य यह है कि दोनों सहयोगियों ने धन वितरण के लिए केंद्र सरकार को बहुत धन्यवाद दिया। नायडू ने ‘विश्वास बढ़ाने वाले बजट’ की बात की तो जदयू ने कहा कि राज्य की घोषणाएं ‘सिर्फ शुरुआत’ है।
दोनों ने बिल्कुल ठीक बात करी, एक शुरुआत हो चुकी है सहयोगी दलों की मांगों की सूची एक-एक कर पूरी हो रही है और पैसों से शुरुआत करने से बेहतर और क्या हो सकता है। यह सौदा दोनों के लिए फायदे का सौदा है। फार्मूला विशेष दर्जे जैसे विवादास्पद शब्दों का उल्लेख किए बिना खजाने में सेंध लगाओ और राज्य को नकदी से समृद्ध बनाओ। भूखे सहयोगियों की मांगें मानते हुए मोदी सरकार ने बिल्कुल यही किया। जहां तक राजनीति की बात है तो यह धीरे-धीरे सामने आएगी। पहला कदम पैसा इकट्ठा करना और अपने-अपने राज्यों का विकास करना है, ऐसा करने पर, सत्ता में बड़ा हिस्सा पाने की कोशिश के साथ राजनीित की वास्तविकता सभी को नजर आ ही जायेगी। एक तरफ से आरएसएस और दूसरी तरफ से सहयोगियों के हट से दिन-ब-दिन मुश्किलें बढ़ती जाएंगी।
नीतीश कुमार की उम्र भले ही काफी ज़्यादा हो लेकिन अब से कुछ साल बाद, खुद को शीर्ष पद के लिए उम्मीदवार बनाने की महत्वाकांक्षाओं को पालने से नायडू को कोई नहीं रोक सकता। तब तक, अपने-अपने राज्यों के लिए अधिकतम लाभ प्राप्त करना और फिर असली राजनीित दिखाकर अपना फायदा निकलना ही समझदारी होगी।
- कुमकुम चड्ढा