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खोल दो बार्डर

06:54 AM Jul 12, 2024 IST
खोल दो बार्डर

इस देश में शांतिपूर्ण अहिंसक आंदोलन का अधिकार सभी को है। शांतिपूर्ण आंदोलन की राह भारतीयों को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ही दिखाई है लेकिन आंदोलनों के चलते सड़कें अवरुद्ध हो जाएं, राज्यों के बार्डर सील कर दिए जाएं जिससे समाज के हर वर्ग को परेशानी का सामना करना पड़े लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं हो सकता। चाहे राजनीतिक रूप से, प्रशासनिक रूप से या न्यायिक रूप से कई मुद्दे नहीं सुलझते तो भी सड़काें को अवरुद्ध किया जाना प्रगति के लिए घातक है। सड़कों को अनिश्चितकाल के लिए अवरुद्ध नहीं किया जा सकता और न ही राज्यों की सीमाओं को सील किया जा सकता है। यह देश बड़े-बड़े आंदोलनों का चश्मदीद रहा है लेकिन जितनी परेशानी आम लोगों को किसान आंदोलनों के चलते हुई है उतनी पहले कभी नहीं हुई। आंदोलन के जरिये कई बार अराजक वातावरण भी बना और सद्भाव भी खंडित हुआ। सड़कें अवरुद्ध होने से विकास की गति प्रभावित हुई है। साथ ही सामाजिक असहजता का वातावरण भी बना। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले पांच महीनों से अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे किसानों के कारण शंभू बार्डर पर सात लेयर की बैरीकेटिंग एक हफ्ते में हटाने के निर्देश पंजाब और हरियाणा सरकार को दिए हैं। इस फैसले से लाखों लोगों को राहत मिलेगी। यह बैरीकेटिंग हरियाणा सरकार ने किसानों को हरियाणा में आने से रोकने के लिए की है।

हाईकोर्ट ने आदेश में यह भी कहा ​कि जब शंभू बार्डर पर ​स्थिति शांतिपूर्ण है तो किसानों को आगे बढ़ने से रोकने का कोई मतलब नहीं है। किसान केन्द्र सरकार से मांग कर रहे हैं कि उन्हें जाने देना चाहिए। यद्यपि हरियाणा सरकार ने कोर्ट में तर्क दिया कि बैरिकेटिंग हटाने से किसानों केलिए राज्य में प्रवेश करना और सरकारी कार्यालयों का घेराव करना आसान हो जाएगा। इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि विरोध करना लोकतांत्रिक अधिकार है और किसानों को हरियाणा में प्रवेश करने से नहीं रोका जा सकता। पीठ ने यह टिप्पणी भी की कि वर्दीधारी लोग उनसे नहीं डर सकते। हम लोकतंत्र में रह रहे हैं। किसानों को घेराव करने दीजिए। पंजाब के विभिन्न हिस्सों से करीब 400 किसान शंभू बार्डर पर डटे हुए हैं। कड़ाके की ठंड और चिलचिलाती धूप में विरोध-प्रदर्शन के दौरान लगभग 2 दर्जन किसानों की मौत भी हो चुकी है। शंभू बार्डर पर बैरीकेटिंग के चलते दिल्ली से चंडीगढ़ और पंजाब जाने वाले हजारों लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। शंभू बार्डर सील किए जाने से कई ट्रेनें रद्द करनी पड़ी और कई के रूट बदलने पड़े जिससे समय की बर्बादी हुई। हाईवे बंद करके जो रूट बनाया गया उससे बसों, कारों का मुक्त प्रवाह अवरुद्ध हुआ। दिल्ली से जाने वाले लोगों को चंडीगढ़ भी घूम कर जाना पड़ता है जिससे डेढ़-दो घंटे ज्यादा लगते हैं और पैट्रोल भी ज्यादा खर्च होता है।

हरियाणा की ओर से हाईवे बंद करने से आसपास के लोगों और व्यापारियों को भी काफी नुक्सान उठाना पड़ रहा है। व्यापारियों ने भी किसानों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया था और बार्डर की बैरीकेटिंग हटाने को लेकर हाईकोर्ट का द्वार खटखटाया था। इसी वर्ष फरवरी माह में किसान आंदोलन 2.0 का गुब्बार शुरू होते ही न केवल दिल्ली बार्डर पर बल्कि हरियाणा के प्रवेश द्वार शंभू बार्डर पर कटीले तार, कीलें, सीमेंट से बने बड़े स्लैब लगा दिए गए थे। दिल्ली में दाखिल होने का दंगल छिड़ गया था जिससे देश को करोड़ों रुपए का नुक्सान हुआ। तीन कृषि कानूनों के विरोध में एक साल से भी ज्यादा चले किसान आंदोलन से दिल्लीवासियों को भी बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा था। दिल्ली-हरियाणा की सीमा पर स्थित सिंधु बार्डर सील ​किए जाने से आसपास के कारखाने, उनमें कामकाज करने वाले श्रमिकों और रोजाना आने-जाने वाले ग्रामीणों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा था। हाईवे बंद होने के कारण परिवहन प्रभावित हुआ और इलाके के बहुत सारे कारखाने बंद हो गए। कारखाने बंद होने से श्रमिक बेरोजगार हुए और उन्हें नियमित पगार मिलनी भी बंद हो गई थी।

आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग रोजाना बार्डर क्रोस कर दिल्ली आते थे। उन्हें कई किलोमीटर चलकर आना पड़ता था क्योंकि उन्हें कोई बस या ग्रामीण सेवा नहीं मिलती थी। ऑटो वालों ने अपने किराये डबल कर दिए थे क्योंकि उन्हें गांव के अन्दर से घूमकर आना पड़ता था आैर रास्ता भी ऐसा था कि वाहन चलाते-चलाते शरीर की आंतड़ियां बाहर आ जाती थीं। तब यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा था। शंभू बार्डर पर बैठे किसानाें से बातचीत के बावजूद मसला सुलझ नहीं सका। इसकी जिम्मेदारी प्रशासन आैर सत्ता की है। दूसरी तरफ ​किसानों ने भी आंदोलन के लिए आसाधारण तैयारी कर रखी थी। बेहतर यही होगा कि पंजाब और हरियाणा की सरकारें सियासी युद्ध खत्म कर इस मसले को सु​लझाएं और बॉर्डर खोलकर लोगों के जीवन को सहज बनाने का उपाय करें। किसानों को भी वार्ता का रास्ता अपना कर लोगों को राहत पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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Shivam Kumar Jha

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