जम्मू में पाक आतंकवाद
आतंकवाद को रोकने के लिए केन्द्र सरकार जो भी प्रयास जम्मू-कश्मीर राज्य में कर रही है वे सब पूर्णतः इसलिए सफल नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि पाक घुसपैठिये समय-समय पर अपना ठिकाना बदल देते हैं। पिछले कुछ महीनों से जिस तरह जम्मू क्षेत्र में आतंकवाद बढ़ा है उसे देख कर यही कहा जा सकता है। आतंकवादी सेना व सशस्त्र बलों के जवानों को अपना निशाना बना रहे हैं और इस क्षेत्र के घने जंगलों का लाभ उठा रहे हैं। आतंकवादियों की इस रणनीति को फेल करने के लिए केन्द्रीय गृह मन्त्रालय ने नई आतंक विरोधी रणनीति तैयार की है जिसके तहत जम्मू क्षेत्र की ग्राम रक्षा समितियों को अपनी रक्षार्थ पारंपरिक व आटोमैटिक जैसे हथियार दिये जायेंगे और इनके सदस्यों को प्रशिक्षित किया जायेगा। इसके साथ ही सीमावर्ती इलाकों में सीमा सुरक्षा बल के जवानों की संख्या बढ़ाई जायेगी। ये जवान इन इलाकों में बनी सुरंगों पर पैनी निगाह रखेंगे। जम्मू क्षेत्र में घने जंगल होने की वजह से आतंकवादी अपना वार करके छिपने में सफल हो जाते हैं इसलिए जंगल के इलाकों में भी भारतीय सशस्त्र बल विशेष निगरानी रखेंगे। पिछले कुछ महीनों से जिस तरह इस इलाके में आतंकवादी घटनाएं बढ़ी हैं और भारतीय सेना के जवानों ने वीरगति को प्राप्त किया है उसे देखते हुए गृहमन्त्री श्री अमित शाह ने यह नई रणनीति राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार व जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के साथ विचार- विमर्श करके बनाई है। इस रणनीति का सबसे महत्वपूर्ण अंग यह है कि जम्मू के जंगली इलाकों में सशस्त्र बलों व पुलिस के 75 शिविर स्थापित किये जायेंगे। इन शिविरों में विशेष क्रियान्वयन समूह (स्पेशल आपरेशंस ग्रुप) के लड़ाकू भी शामिल किये जायेंगे। भारतीय सेनाओं के पास गुप्तचर खबर है कि जम्मू के जंगलों में 35 से 40 पाकिस्तानी आतंकवादी छिपे हुए हैं। ये सभी जैश-ए-मुहम्मद जैसी दहशतगर्द तंजीम से ताल्लुक रखते हैं। ये जम्मू क्षेत्र के कठुआ, डोडा, साम्बा, ऊधमपुर, किश्तवाड़ के जंगलों में अपनी सैरगाह बनाये हुए हैं। सवाल यह है कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त हो जाने के बाद से राज्य में जिस शान्ति की उम्मीद थी उसे पाक आतंकवादी निष्फल करना चाहते हैं। इसी वजह से जहां कश्मीर घाटी में भारतीय सैनिकों ने इनके नापाक इरादों को जब फेल कर दिया तो इन्होंने अपना लक्ष्य जम्मू क्षेत्र को बना लिया। पिछले दो महीनों में इस इलाके में आतंकवादियों ने सेना के दस्तों पर कई वार किये जिसमें 15 के लगभग जवान शहीद हो गये। इसी वजह से गृह मन्त्रालय ने आतंकवादियों का सफाया करने हेतु बहुआयामी रणनीति तैयार की है परन्तु मुख्य सवाल यह है कि पाकिस्तान जबर्दस्त खस्ता हालत में होते हुए भी आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा क्यों दे रहा है? इसकी वजह यह मानी जा रही है कि अनुच्छेद 370 के समाप्त हो जाने के बाद पाकिस्तान की उम्मीदों पर पानी फिर गया है क्योंकि 370 की आड़ में कश्मीर घाटी में कुछ तंजीमें एेसी पैदा हो गई थीं जो पाकिस्तान के साथ हमदर्दी तक दिखाने से बाज नहीं आती थी। 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर को दो केन्द्र शासित राज्यों में विभक्त करके लद्दाख को अलग कर दिया गया था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर में पाक परस्त सभी तंजीमों पर कड़ा शिकंजा कसा गया और कुछ के नेताओं को जेल तक भेज दिया गया। कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं पर जब काबू कर लिया गया तो पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जम्मू क्षेत्र में अपनी हरकतें तेज की। यह मानना फिजूल होगा कि जैश-ए-मुहम्मद जैसी संस्थाओं का पाकिस्तानी सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। वास्तव में पाकिस्तान में जितने भी आतंकवादी संगठन हैं सभी के तार पाक के सत्ता संस्थानों से जुडे़ हुए हैं। पाकिस्तान की फौज बाकायदा पाक अधिकृत कश्मीर में चल रहे आतंकवादी शिविरों को अपना समर्थन देती है। भारत ने एेसे शिविरों की सूचना पूरी दुनिया को 2008 के मुम्बई हमले के बाद ही दे दी थी। इसके साथ ही पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे जनरल परवेज मुशर्रफ ने सेवानिवृत्त होने के बाद आतंकवादियों को अपना हीरो तक बताया था। यह रहस्य भी अब पूरी दुनिया के सामने खुल चका है कि पाकिस्तान की विदेश नीति में आतंकवाद की भी अपनी भूमिका होती है। इसकी तरफ भी भारत बार-बार इशारा करता रहता है और कहता रहता है कि पाकिस्तान से तब तक वार्ता संभव नहीं है जब तक कि वह आतंकवाद को न त्यागे। यह संयोग नहीं है कि पाकिस्तान की विदेश नीति व रक्षा नीति वहां की फौज तय करती है। फौज की सारी नीतियां भारत को लक्ष्य करके ही बनती हैं। इसका कारण यह माना जाता है कि भारत से दुश्मनी का अन्दाज पाकिस्तान के वजूद का सवाल बना दिया गया है। फौज कभी यह नहीं चाहती कि पाकिस्तान के भारत के साथ अच्छे सम्बन्ध हों। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 1999 का कारगिल युद्ध था जिसकी शौर्यगाथा हमने अभी हाल ही में मनाई है। कारगिल तब हुआ था जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर की बस से यात्रा करके लौट आये थे। कारगिल हमले की पूरी खबर फौज ने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ को भी बाद में दी थी। अतः भारत को पाकिस्तानी आतंकवादियों का मुकाबला करने के लिए बहुआयामी रणनीति बनानी ही पड़ेगी।