राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा
भारत का पूरा लोकतन्त्र इसके नागरिकों को मिले एक वोट के आधार पर टिका हुआ है। इस वोट के अधिकार का संरक्षक संविधान में चुनाव आयोग को बनाया गया है। अतः वाजिब तौर पर चुनाव आयोग एेसी संस्था है जो लोकतन्त्र की आधारभूत जमीन तैयार करती है। संविधान यह भी कहता है कि हमारे लोकतन्त्र में चुनावी हार-जीत का फैसला अन्तिम वोट गिने जाने पर ही किया जा सकता है। भारत की व्यवस्था राजनीतिक दलों के आधार पर ही चलती है। अतः चुनाव आयोग को ही इन राजनैतिक दलों का रखवाला बनाया गया है। चुनाव आयोग ही उन सभी राजनैतिक दलों का पंजीकरण करता है जिनका भारत के संविधान में विश्वास होता है। यह विश्वास यह होता है कि हर राजनैतिक दल केवल अहिंसक विचारधारा व तरीकों से ही चुनावों में भाग लेगा और जनता का समर्थन मांगेगा।
भारत में कोई भी राजनैतिक दल सत्ता परिवर्तन के लिए केवल और केवल वैध अहिंसक चुनावी रास्ते को ही अपनायेगा और एक वोट के अधिकार से सम्पन्न भारत के मतदाता का मन मोहने का प्रयास करेगा। भारत के लोगों को मिली वैचारिक स्वतन्त्रता का मापदंड भी यही अहिंसा का सिद्धान्त होगा। दरअसल आजादी के बाद राजनीति में केवल अहिंसा को ही स्थापित करने के लिए भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने संविधान के अनुच्छेद 19 में संशोधन तब किया था जब संविधान निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर उनकी ही सरकार में कानून मन्त्री थे।
स्वतन्त्र भारत में नागरिकों को मौलिक अधिकार देते हुए बाबा साहेब यह भूल गये थे कि वह नागरिकों को जो अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार दे रहे हैं वह तब बेलगाम हो जायेगी जब कोई दल या व्यक्ति हिंसक विचारों का प्रतिपादन करने लगे। उस समय भारत की कम्युनिस्ट पार्टी खुलेआम हिंसक विचारों जैसे वर्गीय संघर्ष की वकालत करती थी। उसकी राजनीति में सत्ता पलटने का एक रास्ता हिंसक संघर्ष भी था अतः आजादी मिलते ही पं. नेहरू ने कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। यह प्रतिबन्ध 1952 से पहले तब हटा जब कम्युनिस्टों ने भारत की संसदीय प्रणाली और चुनाव व्यवस्था में अपना विश्वास प्रकट करने की कसम खाई और भारतीय संविधान में निष्ठा प्रकट की। अतः अहिंसा भारतीय राजनीति का एक अभिन्न अंग बनी। वर्तमान दौर में जितने भी राजनैतिक दल हैं वे सभी अिहंसा में विश्वास रखते हैं और अपने विचारों व सिद्धान्तों को इसी दायरे में बांधते हैं। इन सबकी दरकार होती है कि चुनावों के समय जनता को मिला एक वोट के अधिकार का प्रयोग उनके पक्ष में किया जाये जिससे वे बहुमत हासिल करके केन्द्र व राज्यों की सरकार बना सकें।
इस प्रकार राजनैतिक दलों का भी यह कर्त्तव्य बनता है कि वे हर दौर में जनता के बीच वयस्क होते लोगों को अपना वोट बनवाने के लिए प्रेरित करें। इस नजरिये से देखें तो भारत के हर 18 वर्षीय नागरिक का वोट बनना चाहिए जिसे चुनाव आयोग करता है। राजनैतिक दल लोगों को अपना वोट बनवाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं क्योंकि यह कार्य चुनाव आयोग का होता है कि वह 18 वर्ष के व्यक्ति का बिना किसी भेदभाव के मतदाता सूची में नाम डाले। मगर बिहार में, जहां कि नवम्बर महीने की 22 तारीख तक हर हाल में चुनाव होने हैं, विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी वोटर अधिकार यात्रा निकाल रहे हैं। उनके साथ विरोधी इंडिया गठबन्धन के अन्य नेता भी हैं जिनमें लालू जी की पार्टी राजद के नेता श्री तेजस्वी यादव प्रमुख हैं।
राहुल पिछले 13 दिनों से यह यात्रा इसलिए निकाल रहे हैं जिससे चुनाव आयोग की वोट काटो मुिहम को रोका जा सके। चुनाव आयोग बिहार में मतदाता सूची का सघन पुनर्रीक्षण कर रहा है। विगत 25 जून से यह प्रक्रिया शुरू हुई है और पहले पुनर्मूल्यांकन में चुनाव आयोग ने मतदाता सूची से 65 लाख लोगों के नाम बाहर कर दिये। चुनाव आयोग के अनुसार इनमें से 22 लाख मतदाता मर चुके हैं, 32 लाख मतदाता अन्य स्थानों पर पलायन कर चुके हैं और 7 लाख मतदाता एेसे हैं जिनके नाम कई विधानसभा मतदाता सूचियों में पाये जाते हैं। बेशक चुनाव आयोग को यह अधिकार है कि वह समय-समय पर मतदाता सूची में संशोधन कर सकता है मगर यह कार्य पूरी पारदर्शिता व जवाबदेही के साथ किया जाना चाहिए। मगर बिहार में कुल 8 करोड़ के लगभग मतदाता हैं जबकि राज्य की कुल जनसंख्या 13 करोड़ के करीब है।
दरअसल हकीकत यह है कि चुनाव आयोग को भारत में मतदाताओं के नाम जोड़ने के लिए जाना जाता है न कि वोट काटने के लिए। इसके लिए चुनाव आयोग हर वर्ष जनवरी महीने में संशोधन का काम करता है जिससे अवैध हुए मतदाताओं के नाम कट जाता है। मगर चुनाव आयोग ने अपनी सघन जांच में पाया कि 65 लाख बिहारी मतदाता वैध नहीं हैं। राहुल गांधी कह रहे हैं कि चुनाव आयोग जिस तरीके से वोट काट कर मतदाता सूची में संशोधन कर रहा है वह तर्क संगत इसलिए नहीं है क्योंकि केवल एक महीने के भीतर 8 करोड़ मतदाताओं की जांच नहीं हो सकती जिसकी वजह से लाखों मतदाताओं के नाम केवल लापरवाही से काटे जा सकते हैं। उनका चुनाव आयोग पर शक इसलिए गया कि उनके साथ कुछ एसे लोगों ने चाय पी जिन्हें चुनाव आयोग ने मृत घोषित कर दिया था।
इसके अलावा मतदाता सूची में एक ही मकान के पते पर नौ सौ से अधिक मतदाता पंजीकृत किये जा रहे हैं। चुनाव आयोग पर शक की अंगुली इसलिए भी उठी क्योंकि पहले उसने उन 65 लाख लोगों की सूची सार्वजनिक करने से मना कर दिया जिनके नाम काटे गये हैं। जब सर्वोच्च न्यायालय ने उसे आदेश दिया तो उसने 65 लाख लोगों की सूची जारी की और कारण भी बताया। एेसा करके चुनाव आयोग ने अपनी स्थिति को खुद ही सन्देहास्पद बना लिया। इससे सरकार का कोई वास्ता नहीं है। राहुल गांधी इससे पूर्व कर्नाटक की महादेवपुरा विधानसभा सीट की मतदाता सूची की जांच कर यह भी कह चुके हैं कि इस सीट पर मतदाता सूची में एक लाख से अधिक मतदाताओं के फर्जी नाम जोड़े गये। इसका मतलब साफ है कि विपक्षी नेता चुनाव आयोग से कह रहे हैं कि वह अपनी प्रतिष्ठा में आयी इस कमी को मतदाता सूचियों को सही बना कर करे। इसके लिए चुनाव आयोग तैयार नहीं दिखता है जिससे पूरे देश में उसकी विश्वसनीयता को धक्का पहुंच रहा है।
राहुल गांधी को अपनी यात्रा के दौरान जबर्दस्त समर्थन भी मिल रहा है और लोग उनसे जुड़ते जा रहे हैं। इससे देश की राजनीति भी गरमाई हुई है। राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप सामान्य घटना होती है मगर इसी राजनीति में जब चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर आरोप लगने शुरू हो जाते हैं, तो लोकतन्त्र जख्मी हुए बिना नहीं रहता। वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त श्री ज्ञानेश कुमार के लिए मुख्य प्रश्न यही है कि वह इस विवाद से साफ-सुथरे होकर निकलें क्योंकि वह कोई राजनैतिक दल नहीं हैं बल्कि संविधान निर्माताओं ने उन्हें भी लोकतन्त्र का एक संरक्षक ही बनाया है।
राहुल गांधी वोटर अधिकार यात्रा को एक जन आन्दोलन में तब्दील कर देना चाहते हैं जिसकी तरफ वह तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। इसकी वजह यह है कि भारत के आम लोगों को एक वोट का अधिकार लम्बे संघर्ष के बाद मिला है क्योंकि 1947 तक अंग्रेजों के भारत में केवल 11 प्रतिशत अभिजात्य समझे जाने वाले नागरिकों को ही वोट देने का अधिकार प्राप्त था। मगर गांधी बाबा ने कड़ा संघर्ष करके गरीब से गरीब व्यक्ति को भी वोट का अधिकार दिलाया था। गांधी के भारत में टाटा या बिड़ला के वोट का भी वही मूल्य है जो किसी मजदूर के वोट का। चुनाव आयोग स्वतन्त्र भारत की इस वोट क्रान्ति से ही उपजी सन्तान है।