बिहार में पुल गिरने का रिकार्ड
बिहार भारत का ऐसा अनूठा राज्य है जो गरीब होते हुए भी संस्कृति व विरासत का सबसे धनी है। अंग्रेजों के समय में बंगाल से काटकर बने इस राज्य की स्वतन्त्र भारत में भी राजनैतिक महत्ता किसी भी दौर में कम करके नहीं देखी गई। क्या आज की पीढि़यों को विश्वास आयेगा कि आजादी के बाद भारत में 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर जितने भी 15 राज्य बने उन सब में शासन व्यवस्था के मामले में बिहार अव्वल रहता था। आज इसके ठीक विपरीत स्थिति है कि भारत के सभी 28 राज्यों में सबसे खराब प्रशासन व्यवस्था बिहार की मानी जाती है। बिहार को सर्वश्रेष्ठ शासन देने वाले श्री कृष्ण बाबू से लेकर नीतीश कुमार तक आया यह परिवर्तन बताता है कि राजनैतिक दलों ने आम बिहारी के साथ छल किया है। यह छल उस बिहारी के साथ किया गया है जो आज भी पूरे देश के नवनिर्माण में हर राज्य में लगा हुआ है। अपने ही घर में ‘विदेसिया’ बना हुआ बिहारी अपने राज्य की अर्थव्यवस्था में कितना महत्वपूर्ण स्थान रखता है इसका पता हमें राज्य के आय स्रोतों के आंकड़ों को देख कर लग सकता है।
सवाल यह है कि जिस राज्य की महान विरासत रही हो, इसकी पाटिलीपुत्र नगरी से मौर्य काल से लेकर गुप्त काल तक पूरे भारत का ही नहीं बल्कि अर्थ अशिया खंड का शासन चलता हो वहां आज शासन व्यवस्था के नाम पर पूरा कुशासन है जबकि राज करने वाले नीतीश कुमार को सुशासन बाबू कहा जाता है। कहने को कहा जा सकता है कि नीतीश बाबू सुशासन पर तब ध्यान दें जब उन्हें राजनैतिक बाजियां पलटने से फुर्सत मिले। अपने इसी अन्दाज की वजह से ‘पलटूराम’ के रूप में प्रसिद्ध हुए नीतीश बाबू के पास अब इतना समय कहां है कि वह राज्य में नदियों व सड़कों के पुलों की व्यवस्था को कस सकें। क्या गजब है कि 18 जून से लेकर अब तक बिहार में दस पुल व पुलिया ढह चुके हैं। क्या कयामत है कि बिहार पुल ढहने के मामले में पूरे भारत में नया रिकार्ड बना रहा है और राजनैतिक नेता एक-दूसरे पर छींटाकशी करने से बाज नहीं आ रहे। वर्तमान नीतीश कुमार के भवन निर्माण मन्त्री अशोक कुमार चौधरी पुलों के ढहने की वजह यह बता रहे हैं कि पिछली सरकार (वह भी नीतीश सरकार ही थी) के उप मुख्यमन्त्री तेजस्वी यादव ने पुलों के रखरखाव के लिए कोई ठोस नीति ही नहीं बनाई जिसकी वजह से पुल अब बरसात में धड़ाधड़ गिर रहे हैं। इस सादगी पर कौन न मर मिट जाये कि उल्टा चोर कोतवाल को डांट रहा है और पूछ रहा कि मैं तो मौजूदा ढांचे को देख भर रहा हूं जबकि मुझसे पिछले वाले कारगुजारियां कर रहे थे। ऐसा सिर्फ बिहार में ही संभव है क्योंकि यहां ट्रेन भी पुल से नीचे नहीं गिरती बल्कि पुल ही ट्रेन पर आ गिरता है। कुदरत ने जिस बिहार को अपनी नैसर्गिक खूबसूरती से इस कदर नवाजा हो कि इसके पास न नदियों की कमी है, न पहाडि़यों की, न ऐतिहासिक स्थलों की कमी है, न पर्यटक स्थालों की मगर राजनीतिज्ञों को सिर्फ एक- दूसरे की खाट खड़ी करने में ही रास आता है। यह इस राज्य का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा।
पिछले पचास सालों में इस राज्य ने सिवाये कर्पूरी ठाकुर के कोई ऐसा शासक पैदा नहीं किया जिसका सम्मान समाज के सभी वर्गों के लोग एक समान तरीके से करें। बल्कि हकीकत तो यह भी है कि इस राज्य की आपसी लाग-डांट की राजनीति ने भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर को भी नहीं छोड़ा था और 1979 में उन्हें मुख्यमन्त्री पद आरोप-प्रत्यारोप के चलते छोड़ना पड़ा था। अब बिहार सरकार ने पुल गिरने की सजा के तौर पर जल संसाधन मन्त्रालय व ग्रामीण कार्य विभाग के 15 इंजीनियरों को अस्थायी तौर पर सेवा मुक्त किया है। सरकार ने दो निर्माण कम्पनियों को भी कारण बताओ नोटिस जरी करते हुए पूछा है कि उन्हें क्यों न काली प्रतिबन्धित सूची में डाल दिया जाये।
बिहार के किशनगंज, अररिया, मधुबनी, पूर्वी चम्पारण, सीवान व सारन जिलों में कुल दस पुल व पुलिया गिरे। इसके साथ कुछ भवन निर्माण के ठेकेदारों को भी नोटिस देकर उनकी भुगतान राशि रोकने की चेतावनी दी गई है। मगर इस सबसे क्या होगा सिवाय लकीर पीटते रहने के। तथ्य बिल्कुल स्पष्ट है कि भवन निर्माण के क्षेत्र में भ्रष्टाचार सिर चढ़ कर बोलता है। क्या इसका कोई उपाय नीतीश बाबू के पास है। मजेदार बात तो यह है कि पुराने पुल तो गिरे ही मगर वे पुल भी गिर गये जो निर्माणाधीन थे। इस त्रासदी का जवाब अशोक कुमार चौधरी क्या देंगे।
राजनीतिज्ञों को अपने सिर का बोझ दूसरे के सिर पर फेंकने में बड़ा मजा आता है। उन्हें यह आदत छोड़नी पड़ेगी तभी हम लोकतन्त्र में पारदर्शिता को घटते देख सकते हैं। लोकतन्त्र में शासन सीधे जनता के प्रति जवाबदेह होता है। इस हकीकत को आम बिहारी से बेहतर कोई दूसरा नहीं जान सकता क्योंकि बिहार का मतदाता सबसे अधिक चतुर व सुजान समझा जाता है। असल में ऐसी घटनाएं हादसे नहीं होती बल्कि मनुष्य निर्मित दुर्घटनाएं होती हैं। बिहार ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है हालांकि सूखे से लेकर बाढ़ तक की प्राकृतिक आपदाओं को भी झेलता आ रहा है। प्राकृतिक आपदाओं के सम्बन्ध में निकटवर्ती देश नेपाल के साथ न जाने कितनी बार गंभीर चर्चाओं का सिलसिला चला मगर नतीजा अभी तक क्या निकला? जबकि इस राज्य की प्रमुख नदियां नेपाल से ही आती हैं।