जम्मू में लौटता आतंक
‘‘मैं केशव का पांचजन्य भी गहन मौन में खोया हूं
उन बेटों की आज कहानी लिखते-लिखते रोया हूं
जिनके माथे की कुमकुम बिन्दी वापिस लौट नहीं पाई
चुटकी, झुमके, पायल ले गई कुर्बानी की अमराई
गीली मेहंदी रोई होगी छुप कर घर के कोने में
ताजा काजल छूटा होगा चुपके-चुपके रोने में
जब बेटे की अर्थी आई होगी सूने आंगन में
शायद दूध उतर आया हो बूढ़ी मां के दामन में
जो सैनिक सीमा रेखा पर ध्रुव तारा बन जाता है
उस कुुुर्बानी के दीपक में सूरज भी शर्माता है।’’
जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में डेसा जंगल में आतंकवादियों के हमले में सेना के कैप्टन समेत 5 जवानों की शहादत पर कविवर हरिओम पंवार की उक्त पंक्तियां याद आ रही हैं। देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दे देने वाले वीर जवानों को हमारा शत् शत् नमन है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हमलों में शहीद जवानों के पार्थिव शरीर जब तिरंगे में लिपटे घर की ड्योढ़ी पर आते हैं तब कारुणिक माहौल को देखकर दिल दहल उठता है क्योंकि देश के लिए अपना सर्वोच्च लुटा देने वाला जवान किसी का बेटा, किसी का पति और किसी का पिता होता है। हर आंख में आंसू होते हैं। किसी की गोद, किसी की मांग सूनी हो जाती है। देशवासी सोचने को विवश हैं कि वे शोक संत्पत परिवार के साथ करुणा आैर पीड़ा को कैसे बांटें।
एक ही सवाल उठता है कि आखिर कब तक हमारे जवान अपनी शहादत देते रहेंगे। पिछले 34 दिनों में डोडा में यह 5वीं मुठभेड़ थी। पहले 26 जून को आतंकी हमला हुआ था फिर 12 जून को 2 आतंकी हमले हुए। 8 जुलाई को कठुआ में आतंकी हमले में उत्तराखंड के 5 जवान शहीद हो गए थे। पहले कहा जाता था कि जम्मू-कश्मीर में पाक समर्थित आतंकवाद घाटी तक सीमित है। पिछले 20 वर्षों में जम्मू संभाग से आतंकवाद का सफाया कर दिया गया था। सुरक्षा बलों का दावा था कि आतंकवाद अब घाटी के दो-तीन जिलों में ही सिमट कर रह गया है लेकिन जिस तरह से हाल ही में जम्मू, कठुआ, डोडा, राजौरी, पुंछ में हमले हुए हैं आैर सेना के काफिलों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है उससे साफ है कि जम्मू संभाग में आतंकवाद फिर से लौट आया है। पिछले साल सबसे अधिक आतंकी हमले राजौरी और पुुंछ में किए गए थे जिनमें 25 आतंकवादी मार गिराए गए थे लेकिन हमारे 20 जवान भी शहीद हुए थे।
हाल ही में हुए हमलों में आतंकवादियों ने अमेरिका की अत्याधुनिक राइफलें इस्तेमाल की हैं, जो पाकिस्तान को अमेरिका ने ही दी थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में फिर से खूनी खेल खेलने के लिए आतंकवादियों की मदद कर रहा है। आतंकवादी हमलों में स्लीपर सैल भी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। स्लीपर सैल के लोग कर्मचारी भी हो सकता है, मजदूर भी हो सकता है और छात्र भी हो सकता है। स्लीपर सैल में वे स्थानीय लोग शामिल किए जाते हैं जो आतंकवादियों की मदद करते हैं और बाद में आम जनता में घुलमिल जाते हैं, इसलिए इन्हें पहचानना बहुत मुश्किल हो जाता है।
आतंकवादियों ने अमरनाथ यात्रियों पर हमले की साजिश कई बार रची। पिछले दिनों कटरा के शिव खोड़ी मंदिर से माता वैष्णो देवी मंदिर तक तीर्थयात्रियों को लेकर जा रही बस पर आतंकियों की फायरिंग के बाद दुर्घटना दुखद भी है और चिंताजनक भी है। लोकसभा चुनावों में जम्मू-कश्मीर में जबरदस्त मतदान के बाद और 9 जून को तीसरी बार मोदी सरकार के शपथ ग्रहण के बाद अचानक हमले बढ़ गए हैं। जब भी जम्मू-कश्मीर में चुनावों की बात होती है आतंकवादी हिंसा तेज कर अपनी मौजूदगी दर्ज करा देते हैं। पाकिस्तान में बैठे आतंकवादियों के आकाओं को जम्मू-कश्मीर का विकास और शांति सहन नहीं हो रही। इसलिए वे एक बार फिर िनर्दोषों का खून बहाने की ताक में हैं। जम्मू संभाग में हो रहे आतंकी हमले केन्द्र सरकार को सीधी चुनौती है। सुरक्षा बलों ने आतंक का सफाया कर शांति का मार्ग निष्कंटक बनाया था। अब उस रास्ते पर फिर जहरीले कांटे उभर आए हैं। जम्मू-कश्मीर का माहौल सुधरने के बाद वहां के बाजार, पर्यटक स्थल गुलजार हुए हैं और राज्य की अर्थव्यवस्था सुधर रही है। इसलिए देशद्रोही नहीं चाहते कि कश्मीर में शांति आए और वहां पर निर्वाचित सरकार काम करे। गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि सुरक्षा बल आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब देगा लेकिन रक्षा िवशेषज्ञों का मानना है कि सुरक्षा बलों को आतंकियों के प्रति अपनी रणनीति बदलनी होगी और आतंकी जिन बिलों में छिपे होंगे उन्हें वहां से िनकालकर ढेर करना होगा। आतंकवाद पर अंतिम प्रहार करने की तैयारी करनी होगी और साथ ही आतंकियों के मददगारों की भी पहचान करनी होगी, तभी आतंकवाद को नेस्तनाबूद किया जा सकता है।