डॉक्टर हड़ताल की हद
कोलकाता में प्रशिक्षु महिला डॉक्टर से बलात्कार और उसकी हत्या के बाद से ही पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल 40 दिन से जारी है। हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उनकी तीन मांगें मान ली थीं और जूनियर डॉक्टरों से काम पर लौटने की अपील की थी। पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा कोलकाता के पुलिस आयुक्त डीसी नॉर्थ समेत दो वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारियों को पद से हटा दिया गया है। इसके बावजूद जूनियर डॉक्टरों ने अस्पताल में सुरक्षा और स्वास्थ्य सचिव को हटाने सहित कुछ अनसुलझे मुद्दों पर बातचीत के लिए मुख्यमंत्री के साथ एक आैर बैठक की मांग की थी। इसके बाद जूनियर डॉक्टरों और राज्य सरकार के बीच बैठक हुई लेकिन बात नहीं बनी। जूनियर डॉक्टरों द्वारा हड़ताल खत्म न करना चिंता की बात है। पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि डॉक्टरों की हड़ताल के चलते राज्य में 23 लोगों को जान जा चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सुनवाई के दौरान डॉक्टरों से काम पर लौटने की अपील की थी और आश्वस्त किया था कि काम पर लौटने पर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।
देशभर में डॉक्टरों ने हड़ताल वापिस ले ली थी लेकिन पश्चिम बंगाल के जूनियर डॉक्टरों ने हड़ताल जारी रखी। काफी समय तक तो जूनियर डॉक्टर बातचीत की मेज पर ही नहीं आए जिससे राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा कर रह गई हैं। जिसका असर सबसे ज्यादा गरीब मरीजों पर पड़ रहा है। उपनगरों आैर जिलों से लोग कोलकाता के सरकारी अस्पतालों में बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। न तो उन्हें कोई देखने वाला है, न ही उनका उपचार हो रहा है। मरीजों के सर्जरी आॅपरेशन टाल दिए गए हैं। ऐसा भी नहीं है कि हड़ताली डॉक्टरों को स्थिति का अनुमान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के स्वतः संज्ञान लेने के बाद रेप और मर्डर की जांच सीबीआई कर रही है और वह सीबीआई जांच से संतुष्ट भी हैं। न्याय की कोई भी मांग नैतिकता विहीन नहीं होनी चाहिए। आखिर दर्द से कराहते मरीजों के प्रति भी डॉक्टरों का कोई दायित्व होना चाहिए। यह सही है कि रेप और मर्डर मामले में आर.जी.कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल प्रशासन तथा पुलिस द्वारा अपनाए गए असंवेदनशील रवैये के चलते जन आंदोलन इसलिए खड़ा हो गया था कि डॉक्टर और आम जनता यह महसूस करने लगी थी कि पीड़िता को न्याय नहीं मिल सकेगा। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरकार का रवैया भी ढीला-ढाला ही दिखाई दिया। अब जबकि बातचीत के दौर के बाद डॉक्टरों की कई मांगों का निवारण हो चुका है तो फिर डॉक्टरों का काम पर नहीं लौटने का कारण नजर नहीं आ रहा।
दोनों पक्षों के बीच भरोसे की भारी कमी है और सीबीआई के मामला अपने हाथ में लेने से पहले बलात्कार और हत्या की जांच को शुरूआती चरण में जिस तरह संभाला गया, खासकर अस्पताल प्रशासन और सरकार द्वारा भी लीपापोती देखी गयी, उसने डॉक्टरों को और भी ज्यादा विमुख कर दिया। आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के पूर्व प्राचार्य संदीप घोष को गिरफ्तार किया जा चुका है लेकिन सरकार अगर दूसरी मांगों को गंभीरता के साथ पूरा करना चाहती है तो उसे बहुत काम करना होगा। डॉक्टरों की निरापदता व सुरक्षा बढ़ाने और सरकारी अस्पतालों में व्याप्त "धमकी की संस्कृति" खत्म करने के लिए समय, धन और इच्छाशक्ति की जरूरत होगी। इस मामले का स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रहा सुप्रीम कोर्ट सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में अनुबंधित सुरक्षा कार्मिकों की तैनाती को लेकर संशय में था और उसने सीसीटीवी कैमरे धीमी गति से लगाये जाने पर प्रशासन की खिंचाई की है। इस मामले में राज्य सरकार ने डॉक्टरों को बताया है और शीर्ष अदालत को भी सूचित किया है कि वह अस्पतालों के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए 100 करोड़ रुपये अलग रख रही है और डॉक्टरों के प्रतिनिधियों के साथ मुद्दों को सुलझाने के लिए मुख्य सचिव की अगुवाई में एक कार्य बल बनायेगी।
प्रशासन को जहां तेजी से कदम उठाने की जरूरत है वहीं डॉक्टरों को यह नहीं भूलना चाहिए िक वे हड़ताल को केवल ममता सरकार को नीचा िदखाने के लिए एक हथियार न बनाएं। डॉक्टरों को भगवान माना जाता है। वह मरीजों को नया जीवन देते हैं। मरीजों की िजन्दगियों से खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए। किसी भी आंदोलन को राजनीतिक रंग दिए जाने से उसकी गरिमा और प्रतिष्ठा को चोट पहुंचती है। बेहतर यही होगा कि डॉक्टर हद पार न करते हुए अपने पेशे के सम्मान को बरकरार रखते हुए सरकार के साथ सहयोग करें और स्वयं डॉक्टरों के लिए सुरक्षा तंत्र कायम करने के लिए भागीदार बनें।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com