धर्मान्तरण पर रोक लिए सबसे सख्त कानून
यह एेतिहासिक तथ्य है कि भारतीय उपमहाद्वीप से लेकर पूरे दक्षिण एशिया व मध्य एशिया में ईसा से 300 वर्षों पूर्व तक बौद्ध धर्म का बोलबाला था। सम्राट अशोक का शासन पाटिलीपुत्र से लेकर ईरान तक था और कई मध्य एशियाई ( सेंट्रल एशिया) देशों जैसे कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान आदि में बैद्ध धर्म का बोलबाला था। सातवीं सदी में इस्लाम के उदय के बाद इन सभी देशों में इस्लाम फैला और बाद में ये इस्लामी राष्ट्र होते चले गये। जहां तक दक्षिण एशियाई देशों का सवाल है तो थाईलैंड, इंडोनेशिया व मलेशिया से लेकर लाओस, कम्बोडिया व वीयतनाम तक में बौद्ध धर्म का प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। भारतीय उपमहाद्वीप के सन्दर्भ में श्रीलंका से लेकर म्यामांर तक बौद्ध धर्म आज भी प्रभावी माना जाता है। मगर अफगानिस्तान में यह पूरी तरह समाप्त हो चुका है। एेसा ही हाल ईरान आदि देश का भी है। ईरान के सन्दर्भ में यहां बौद्ध संस्कृति के बाद पारसी संस्कृति ने पैर फैलाये मगर इसकी तब्दीली बाद की सदियों में इस्लाम में हो गई।
भारत में धर्म परिवर्तन 712 ई. के बाद सिन्ध में अरब से मुहम्मद बिन कासिम के आने के बाद हुआ। तब सिन्ध के हिन्दू राजा दाहिर को कासिम ने परास्त किया और अफगानिस्तान समेत अन्य इलाकों में इस्लाम धर्म फैला। बौद्धों को मुसलमान बनाना बहुत आसान था क्योंकि यह धर्म पूरी तरह अहिंसा व प्रेम पर टिका हुआ है। साथ ही इसमें मठ संस्कृति के चलते धर्म गुरुओं को समाप्त करने के बाद शेष बौद्धों का धर्म परिवर्तन करना सरल था। इतिहासकार मानते हैं कि दक्षिण एशिया व मध्य एशिया में सर्वाधिक परिवर्तन बौद्धों का ही हुआ है। जबकि भारत में परिस्थितियां दूसरी थी। यहां हिन्दू धर्म फैला हुआ था और सम्राट अशोक ने कभी भी जबरन धर्म परिवर्तन नहीं किया। उसने बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार पूरे शान्तिमय तरीके से किया। परन्तु आठवीं सदी के बाद भारत में जैसे-जैसे मुस्लिम आक्रान्ताओं के हमले बढ़ते गये वैसे-वैसे ही भारत में इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार होता गया। 12वीं सदी में जब तैमूरलंग भारत आया तो उसने मेरठ के पास अपनी फौजों का डेरा डाला।
हिन्दू धर्म में जाति प्रथा होने की वजह से भी धर्म परिवर्तन को बढ़ावा मिला। इतिहास के अनुसार मेरठ और आसपास के शूद्र कहे जाने वाले हिन्दू लोगों ने तैमूर लंग से फरियाद की कि वह उन्हें भी वह अपने साथ दिल्ली ले चले क्योंकि दिल्ली और देशी शासक उनसे भारी भेदभाव करते हैं तथा उनका जबर्दस्त शोषण करते हैं। माना जाता है कि दिल्ली पर चढ़ाई करने के बाद जब तैमूर लंग वापस अफगानिस्तान व पंजाब की तरफ लौटा तो वह अपने साथ इन शूद्र कहे जाने वाले लोगों की बड़ी संख्या को भी ले गया और उसने इन्हें पेशावर व आसपास के इलाकों में बसाया तथा इन्हें मुसलमान बनाया। मगर आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं और आज के धर्मनिरपेक्ष भारत में धर्म परिवर्तन किसी भेदभाव की वजह से नहीं हो सकता।
हम जानते हैं कि स्वतन्त्र भारत में सबसे बड़ा धर्म परिवर्तन बाबा साहेब अम्बेडकर ने 1956 में किया जब उनके साथ लाखों अनुसूचित जाति के लोगों ने हिन्दू धर्म छोड़ कर बौद्ध धर्म अपनाया। बाबा साहेब ने धर्मपरिवर्तन तो किया परन्तु भारत की धरती पर ही पनपे बौद्ध धर्म में। इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि भारत की धरती पर जितने भी धर्म उपजे उन सभी में करुणा व दया को प्रमुख माना गया है और इंसानियत को केन्द्र में रखा गया है। चाहे वह सिख धर्म हो या जैन धर्म। इन धर्मों की एक और खासियत है कि इनके सभी प्रतीक व श्रद्धा के केन्द्र वृहद भारतीय भू-भाग में ही हैं। मगर हम 21वीं सदी चलने के बाद भारत के विभिन्न राज्यों में धर्मान्तरण विरोधी कानून बना रहे हैं। इसकी वजह यह मानी जाती है कि कुछ लोगों का धर्म परिवर्तन लालच देकर कराया जाता है जिसकी वजह से उनकी निष्ठाएं भी बदल जाती हैं।
धर्म परिवर्तन करना भारतीय संविधान में वैध है मगर वह किसी लालच या खौफ में नहीं होना चाहिए बल्कि अपनी प्रेरणा से अभिभूत होना चाहिए। अक्सर यह सुनने को मिल जाता है कि मुस्लिम समुदाय के युवा अपना नाम बदल कर हिन्दू कन्याओं को अपने प्रेम जाल मे फंसा लेते हैं और फिर शादी करके उनका धर्म परिवर्तन करा देते हैं। इसे भारत में लव जेहाद का नाम दिया गया। मगर धर्म परिवर्तन का यह एकमात्र कारण नहीं है। बहुत से हिन्दू दूसरी शादी करने के लिए भी अपना धर्म परिवर्तन कर लेते हैं और इस्लाम इसलिए कबूल करते हैं कि इसमें चार शादियां करने का विधान है। हालांकि भारत में जिन- जिन राज्यों में भी भाजपा की सरकारें हैं वहां धर्मान्तरण विरोधी कानून बन चुके हैं परन्तु राजस्थान एेसा अकेला प्रदेश है जहां की भाजपा सरकार अपने द्वारा लाये गये पुराने कानून को नये कानून से बदल रही है।
राज्य विधानसभा में पिछले फरवरी महीने में भाजपा सरकार एक धर्मान्तरण विरोधी विधेयक लाई थी जिसे इस महीने नये विधेयक से बदल दिया गया है। नये विधेयक में बहुत कठोर नियम बनाये गये हैं जिससे कोई भी व्यक्ति केवल निजी नाजायज लाभ के लिए अपना धर्म परिवर्तन न कर सके। इस नये विधेयक को लाने की मंशा यह बताई जा रही है कि पिछले दिनों राज्य में बहुत से लोगों ने दबाव, लालच, झूठे प्रचार में आकर अपना धर्म बदला जिसे देखते हुए नया विधेयक जरूरी था। अब नये विधेयक में यह जिम्मेदारी धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति की होगी कि वह स्वयं को अपराध मुक्त साबित करे। विधेयक में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति केवल शादी करने के लिए अपना धर्म परिवर्तन करता है तो उसके विवाह को गैरकानूनी घोषित कर दिया जायेगा। धर्म परिवर्तन यदि किसी दबाव या लालच में किया गया है तो यह अपराध संज्ञेय होगा और गैर जमानती होगा।
नये विधेयक में न केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन अपराध होगा बल्कि शादी के बहाने धर्म परिवर्तन करना भी गंभीर अपराध होगा। अगर किसी धर्म को किसी दूसरे धर्म से बेहतर बताये जाने के उद्देश्य से धर्मान्तरण होता है तो इसे भी अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया है और हर अपराध की सजा बहुत कड़ी कर दी गई है। परन्तु यदि कोई व्यक्ति अपनी प्रेरणा से अपने पुराने धर्म (घर वापसी) में वापस लौटता है तो उस पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होगी। जाहिर है कि राजस्थान सरकार राज्य के जनजातीय लोगों को धर्म परिवर्तन करने से रोकने के लिए एेसे उपाय कर रही है क्योंकि राज्य में अनुसूचित जनजातीय लोगों की बहुत बड़ी संख्या रहती है और ये लोग गरीब भी होते हैं। इनमें धर्म परिवर्तन करने में घाघ लोग सफल भी हो जाते हैं। लेकिन नये कानून में 50 लाख रुपए व आजन्म कैद तक के प्रावधान कर दिये गये हैं। ये प्रावधान अपराध को देख कर ही तय किये गये हैं। आगमी 9 सितम्बर को यह नया विधेयक विधानसभा में चर्चा के लिए आयेगा जिस पर विरोधी दलों की प्रतिक्रिया देखने लायक होगी। राज्य में मुख्य विरोधी दल कांग्रेस पार्टी ही है। नये कानून या विधेयक में अपराधी की सम्पत्ति जब्त कर लेने व उसे ढहा देने तक की व्यवस्था है। उम्मीद की जा रही है कि इस विधेयक की चर्चा देश के अन्य राज्यों में भी होगी।