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चुनावों का इंतजार खत्म

03:14 AM Mar 16, 2024 IST
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लोकसभा चुनावों का इन्तजार खत्म होने को है। चुनाव आयोग आज इनके विस्तृत ब्यौरे की घोषणा कर देगा। लोकसभा के साथ ही चार राज्यों आंध्र प्रदेश, अरुणाचल, ओडिशा व सिक्किम के भी चुनाव होंगे। वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल 24 मई तक है अतः चुनाव आयोग की जिम्मेदारी होगी कि इससे पहले वह देशभर में चुनाव सम्पन्न करा कर नई लोकसभा के गठन का मार्ग प्रशस्त करे। निष्पक्ष व स्वतन्त्र चुनाव कराना चुनाव आयोग की प्राथमिक जिम्मेदारी है इसके साथ ही उसका यह भी दायित्व है कि देश का प्रत्येक जायज मतदाता अपने मत का प्रयोग कर सके। इस कार्य में हालांकि हर बार ही आयोग मुस्तैद नजर आता है और वह मतदाताओं से अधिकाधिक संख्या में वोट करने का अभियान भी चलाता है परन्तु फिर भी देशभर से ऐसे हजारों मामले सामने आ जाते हैं जिनमें मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से गायब पाये जाते हैं जबकि उनके पास मतदाता कार्ड भी होता है। इस विसंगति को दूर करना भी आयोग का ही काम है।
इस बार 2024 के चुनावों में देशभर में जायज मतदातों की संख्या 96 करोड़ से अधिक रहने की संभावना है। यह संख्या यूरोपीय महाद्वीप के विभिन्न देशों की जनसंख्या से भी ज्यादा है। इसी वजह से भारत के चुनावों को दुनिया बहुत हैरत से भी देखती है और इसे विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र भी बताती है लेकिन भारत के सबसे बड़ा लोकतन्त्र होने का एकमात्र यही कारण नहीं है बल्कि सबसे बड़ा कारण इसका स्वतन्त्र चुनाव आयोग माना जाता है जिसकी कार्यप्रणाली का अध्ययन करने दुनिया के कई देश आते रहते हैं। भारत के चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा पूरी दुनिया में ऊंचे पायदान पर रखकर इसी वजह से देखी जाती है क्योंकि हमारे संविधान में इसकी स्थिति एक ऐसे स्वायत्तशासी संस्थान की है जो अपना कार्य सीधे संविधान से शक्ति व अधिकार लेकर करता है और किसी भी सरकार से निरपेक्ष रहते हुए अपना दायित्व निभाता है। हकीकत तो यह है कि भारत में लोकतन्त्र की उर्वरा जमीन तैयार करने की जिम्मेदारी इसी की है क्योंकि यह भारत के आम आदमी को दिये गये एक वोट के संवैधानिक अधिकार का सबसे बड़ा संरक्षक है। हमारी व्यवस्था में मतदाता व चुनाव आयोग के बीच में कोई तीसरी शक्ति भी नहीं आ सकती। यही वजह है कि ईवीएम मशीनों को लेकर जो विवाद समय-समय पर पैदा होता रहता है उसका सीधा सम्बन्ध मतदाता व चुनाव आयोग के बीच ही रहता है। इसकी वजह यह है कि चुनाव आयोग संविधान की इस शर्त से बंधा हुआ होता है कि मतदान के समय प्रत्येक मतदाता बिना किसी भय या लालच के अपने वोट का इस्तेमाल करेगा और उसके व वोट पाने वाले प्रत्याशी के बीच में कोई प्रकट या अदृश्य तीसरी शक्ति नहीं रहेगी। इसके अलावा चुनाव आयोग देश के राजनीतिक दलों की भी नियामक संस्था होती है। यह जिम्मेदारी भी उसी की होती है कि उसके द्वारा पंजीकृत प्रत्येक राजनैतिक दल भारतीय संविधान के दायरे में रह कर ही काम करे और सत्ता के लिए चुनावों में जद्दोजहद करे। सभी राजनैतिक दलों को एक नजर से देखना भी उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी होती है। अतः जब भी लोकसभा के चुनाव आते हैं तो पूरे देश में वह आदर्श आचार संहिता लागू करके सरकार के काबिज रहने के बावजूद पूरी प्रशासन प्रणाली को अपनी निगरानी में ले लेता है।
आचार संहिता लागू होने से चुनाव पूरे होने तक यह व्यवस्था लागू रहती है हालांकि सरकार अपना जरूरी कामकाज करती रहती है मगर उसे कोई नीतिगत फैसला करने का अधिकार नहीं होता। अतः चुनाव आयोग के रुतबे का अंदाजा हम आसानी से लगा सकते हैं। इसी वजह से जब भी चुनाव आयोग को किसी भी सरकार द्वारा प्रभावित करने की अफवाहें या खबरें गर्म होती हैं तो देश के राजनैतिक माहौल में जलजला जैसा आ जाता है। क्योंकि चुनाव के मौके पर सत्ता व विपक्ष के सभी दलों के लिए एक समान परिस्थितियां उपलब्ध कराना भी इसका काम होता है जिसे ‘लेवल प्लयिंग फील्ड’ कहा जाता है। जहां तक राज्यों के चुनावों का सवाल है तो राज्य स्तर पर भी चुनाव आयोग वे सभी काम करता है जो लोकसभा चुनाव के मौके पर राष्ट्रीय स्तर पर। स्वतन्त्र भारत में नब्बे के दशक तक चुनाव आयोग के अधिकारों को लेकर बहुत भ्रम की स्थिति बनी हुई थी जिसे स्व. टी.एन शेषन ने मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के बाद काफी हद तक छांटा था और बताया था कि बाबा साहेब अम्बेडकर जो चुनाव आयोग भारत को देकर गये थे उसके पास चुनावों के दौरान वे सभी ताकतें हैं जो किसी स्वतन्त्र व खुद मुख्तार संस्था के पास होती हैं। उसकी निगरानी में हर सरकारी महकमा खुद ब खुद आ जाता है और इस प्रकार आता है कि स्वतन्त्र न्यायपालिका भी इस दौरान बीच में कोई दखलन्दाजी नहीं करती। दरअसल चुनाव आयोग को भारतीय लोकतन्त्र की रीढ़ भी कहा जा सकता है क्योंकि यही संस्था लोगों के एक वोट के अधिकार की मार्फत लोकतान्त्रिक प्रशासन की इमारत खड़ी करती है।

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