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ट्रेन यात्री भगवान भरोसे

04:13 AM Jul 20, 2024 IST
ट्रेन यात्री भगवान भरोसे

क्या रेल हादसे महज एक हादसा होता है? मानवीय भूल होती है? मशीनों की बेवफाई है या फिर कोई गहरी साजिश। आखिर ट्रेन हादसे रुक क्यों नहीं रहे। न तो हम पूर्व में हुई ट्रेन दुर्घटनाओं से सबक ले रहे हैं और न ही कोई उपाय ढूंढ पा रहे हैं। पिछले साल ओडिशा के बालासोर में भयंकर हादसा हुआ था जिसने सबको हिलाकर रख दिया था। इस ट्रेन हादसे में 288 लोगों की जान चली गई थी। इसी वर्ष जून महीने में भी पश्चिम बंगाल में हुई ट्रेन दुर्घटना में 10 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। गुरुवार को उत्तर प्रदेश के गोंडा के निकट चंडीगढ़ से डिब्रूगढ़ जा रही एक्सप्रैस ट्रेन के डिब्बे पलट जाने से तीन लोगों की मौत और 29 लोगों के घायल होने की खबर आने के बाद हर कोई सोचने को विवश है कि रेल यात्रा कब सुरक्षित होगी। पटरियों पर दौड़ती ट्रेनों के सफर को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के बनाने के दावे किए जाते हैं। बुलेट ट्रेन प्रोजैक्ट पर काम किया जा रहा है। हर हादसे के बाद यही कहा जाता है कि ट्रेन हादसे रोकने के लिए आधुनिक तकनीक अपनाई जा रही है। कवच प्रणाली के जरिये ट्रेनों की आपस में टक्कर को पूरी तरह रोकने का काम जारी है। इन दावों के बावजूद थोड़े-थोड़े समय के बाद हादसे हो जाते हैं।
भारत का रेल नेटवर्क दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। देश के करीब एक करोड़ तीस लाख लोग रोजाना ट्रेनों में सफर करते हैं। क्या ट्रेन यात्रियों की सुरक्षा भगवान भरोसे है। पिछले तीन दशक में डेटा के ​िहसाब से देखा जाए तो रेल हादसों में मानवीय चूक सबसे बड़ी वजह के रूप में सामने आई है। मानवीय त्रुटियों के उदाहरण में ओवर स्पीडिंग, खतरे के सिग्नल पार करना, पटरियों का रखरखाव करना और उपकरणों का खराब होना शामिल है। वर्ष 2020-21 की सरकारी रेलवे रिपोर्ट में बताया गया था कि 70 फीसदी रेल हादसे ट्रेन के पटरी से उतरने की वजह से हुए। अधिकांश ट्रेनें ट्रैक में गड़बड़ी की वजह से पटरी से उतरीं। इसकी वजह पटरियों में दरारें आना और पटरियों का धंसना भी है। रिपोर्ट के कुछ निष्कर्ष बहुत परेशान कर देने वाले थे।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पटरियों की ज्यामितीय आकृति और संरचनात्मक स्थितियों का ट्रैक रिकॉर्ड करने में काफी चूक नजर आई। इसमें बताया कि निरीक्षण में चूक 30 फीसदी से 100 फीसदी तक की कमी थी। पटरी से उतरने की दुर्घटनाओं की 1129 जांच रिपोर्टों के अध्ययन करने पर पाया गया कि ट्रेन के पटरी से उतरने के हादसों के लिए 24 कारक जिम्मेदार थे। इस रिपोर्ट में ये बात भी सामने आई कि ट्रेनों के पटरी से उतरने की एक बड़ी वजह पटरियों का रखरखाव भी था। 171 मामलों में ये देखा गया। रिपोर्ट में बताया गया कि 180 से अधिक टेक्निकल कारणों की वजह से ट्रेनें पटरी से उतरी। उनमें से एक-तिहाई से अधिक कोचों और मालगाड़ी में खराबी की वजह से ट्रेन हादसे हुए। खराब ड्राइविंग और ओवर स्पीड भी ट्रेनों के पटरी से उतरने की मुख्य वजह थी।
'भारतीय रेलवे का पटरी से उतरना' पर कैग की 2022 की रिपोर्ट रेलवे पर संसदीय स्थायी समिति को संदर्भित करती है। इसमें बताया गया कि सिग्नल की संख्या में "काफी वृद्धि" हुई है। लोको-पायलट लगभग हर किलोमीटर पर एक सिग्नल का सामना करता है।" सिग्नल रनिंग और लगभग हर मिनट उसे एक संकेत देखना पड़ता है। इसके अनुसार ट्रेन की स्पीड को कंट्रोल करना पड़ता है। हालांकि, लोको-पायलटों के लिए कोई तकनीकी सहायता उपलब्ध नहीं है। उन्हें ट्रेन को कंट्रोल करने के लिए सिग्नल की अलर्ट मॉनिटरिंग पर निर्भर रहना पड़ता है। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि रेल मंत्रालय रेलवे कर्मचारियों की तरफ से लगातार और संभावित बार-बार होने वाली चूक के मूल कारण का आकलन करने में विफल रहा है। इसलिए ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने में पूरी तरह से विफल रहा है। रेलवे के सुरक्षा निदेशालय का कहना है कि "इष्टतम क्षेत्र परिस्थितियों और अच्छे इरादों के साथ भी, एक इंसान से समय-समय पर गलती होने की संभावना होती है।
लगभग 50 वर्ष पहले अपनी शुरूआत के बाद जापान की बुलेट ट्रेनों ने 10 अरब यात्रियों को ढोया है। इनके पटरी से उतरने या टक्करों से कोई हताहत नहीं हुआ है। वे आटोमैटिक ट्रेन नियंत्रण प्रणाली का उपयोग करते हैं। नियमित रूप से 350 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की गति से यात्रा करने वाली ट्रेनों में भी सैंसर लगे होते हैं। टॉप स्पीड से चलने वाली ट्रेनों में ऑटोमै​िटक ब्रेक लगते हैं। भारत में ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाने और उन्हें सुविधाओं से लैस तो ​िकया जा रहा है लेकिन पटरियों की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। रेल विभाग में कितने पद खाली हैं, उन्हें भरने की कोई योजना भी सामने नहीं आ रही। ऐसा लगता है ​िक रेलवे विभाग एक तरह से लावारिस होकर रह गया है। रेल मंत्री हादसों के स्थल पर जाते हैं। मृतकों और घायलों के परिजनों के लिए मुआवजे की घोषणा करते हैं लेकिन हादसों को रोकने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए जा रहे। रेल हादसे क्यों होते हैं। क्या इसके ​िलए जवाबदेही तय नहीं की जानी चाहिए। नई ट्रेनों को चलाकर राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिशें तो बहुत होती हैं। ऐसे में ट्रेन यात्रियों की सुरक्षा का मुद्दा कहीं पीछे छूट जाता है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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Aditya Chopra

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