Delhi water crisis: दिल्ली में जल संकट
गर्मियों के दिनों में हर साल दिल्ली को जल संकट का सामना करना पड़ता है। इस वर्ष तपते सूर्य ने तापमान के रिकॉर्ड कायम किए हैं। पिछले दिनों राजधानी के कई इलाकों में पारा 50 डिग्री को भी पार कर गया। सरकारें हर साल जल संकट से निपटने के लिए योजनाएं लाने का दावा करती हैं और उम्मीद बांधती हैं कि हालात बेहतर होंगे लेकिन समस्या हर साल विकराल हो जाती है। दिल्ली के कई इलाकों में पानी के लिए हाहाकार देखा जा रहा है। पानी के टैंकर पहुंचते ही लोगों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है। पानी को लेकर झगड़े भी सामने आ रहे हैं। तिहाड़ जेल में आत्मसमर्पण करने से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने पंजाब और हरियाणा सरकार से दिल्ली को पानी देने की गुहार लगाई थी। अंततः दिल्ली सरकार इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची। देश की शीर्ष अदालत ने महत्वपूर्ण निर्देश दिया कि हिमाचल सरकार दिल्ली के लिए 7 जून तक 137 क्यूसेक अतिरिक्त पानी प्रदान करे। साथ ही उसने हरियाणा सरकार को भी निर्देश दिया है कि वह हिमाचल द्वारा दिल्ली को जारी किए गए पानी को बिना किसी रोकटोक के दिल्ली के लिए छोड़े।
सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक शब्दों में कहा कि पानी पर कोई राजनीति न की जाए। साथ ही उसने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार को पानी का किसी भी तरह दुरुपयोग रोकना चाहिए। दिल्ली जल बोर्ड ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दिल्ली को रोजाना 129 करोड़ गैलन जल सप्लाई की जरूरत है लेकिन उन्हें केवल 96.9 करोड़ गैलन ही पानी मिल रहा है। दिल्ली की आबादी 2.30 करोड़ है। इतनी बड़ी आबादी को जल सप्लाई उपलब्ध कराना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। दिल्ली एक लैंडलॉक स्टेट है और इसके पास अपने जल स्रोत नहीं हैं। इसे पानी के लिए अन्य राज्यों पर निर्भर होना पड़ता है। राज्यों में जल विवाद कोई नए नहीं हैं। पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में जल विवाद है तो कावेरी नदी के पानी को लेकर दक्षिणी राज्यों में भी उबाल आता रहा है। हरियाणा और दिल्ली के बीच जल विवाद यमुना नदी से पानी के आवंटन को लेकर केंद्रित है। हरियाणा का आरोप है कि दिल्ली विभिन्न समझौतों के तहत आवंटित पानी से ज़्यादा पानी ले रही है। विवादों के कारण कानूनी लड़ाइयां हुईं और समान जल बंटवारे के मुद्दों को हल करने के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया। ऊपरी यमुना नदी बोर्ड भी बेसिन राज्यों के बीच जल वितरण का प्रभावी प्रबंधन न करने के लिए जांच के दायरे में रहा है। दोनों राज्य दिल्ली में आईटीओ बैराज को लेकर भी भिड़े हुए हैं, जो हरियाणा सरकार का है।
हालांकि यह मुद्दा अब दोनों राज्यों के बीच राजनीतिक लड़ाई में बदल गया है, और वजीराबाद, आईटीओ और ओखला में तीन बैराजों के प्रबंधन में केंद्रीय जल आयोग की अक्षम भूमिका दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकारों के बीच खराब समन्वय और पारदर्शिता को दर्शाती है।
दुनिया के 20 सबसे बड़े जल संकट ग्रस्त शहरों में से 5 भारत में हैं और इस सूची में दिल्ली दूसरे स्थान पर है। जल के बिना जीवन नहीं और यह लोगों को मिलना ही चाहिए। बेहतर होता कि राज्य सरकारें आपस में मिलकर जल संकट का कोई हल निकालतीं। क्योंकि पानी के लिए बार-बार सुप्रीम कोर्ट दौड़ना अच्छी बात नहीं है। लोगों को मूलभूत जल सुविधाएं उपलब्ध कराना शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी होती है। अब सवाल यह है कि दिल्ली में जल संकट का समाधान क्यों नहीं हो रहा। यह जग जाहिर है कि दिल्ली जल बोर्ड का पानी चोरी भी होता है और बर्बाद भी होता है। हरियाणा से जिन नहरों में पानी आता है उनमें भी कई जगह रिसाव होता है। दिल्ली के जिन जलाशयों में पानी एकत्र होता है, उनकी सफाई न होने से गाद जमा हो जाती है और पानी की भंडारण क्षमता कम हो गई है। कुछ वर्ष पहले यमुना किनारे तालाब बनाने की योजना शुरू की गई थी। कुछ तालाब बनाए भी जा रहे थे लेकिन बाढ़ आने से यह भी नष्ट हो गए।
दिल्ली में 70 प्रतिशत पानी का उपयोग सिंचाई, वाहनों की सफाई, शौचालय जैसे गैर पेयजल के लिए होता है। वहीं, एसटीपी से मिलने वाला पानी नाले में बहाया जा रहा है। कई स्थानों पर लोग बोरिंग कर सिंचाई और अन्य काम के लिए प्रयोग कर रहे हैं, जिससे भूजल स्तर नीचे गिर रहा है। यदि एसटीपी से मिलने वाले शोधित जल का उपयोग गैर पेयजल कार्यों में किया जाए तो पेयजल की उपलब्धता बढ़ेगी। एसटीपी से मिलने वाले 550 एमजीडी शोधित जल में से सिर्फ 90 एमजीडी का उपयोग हो रहा है। इस पानी का उपयोग सिंचाई, वाहनों को धोने, मेट्रो व रेलवे के कार्य में, सड़कों पर छिड़काव व अन्य कार्यों में होना चाहिए। रिज एरिया में इस पानी को संग्रहित किया जाना चाहिए जिससे भूजल स्तर बढ़ेगा। इन कार्यों के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन और अकुशल प्रबंधन के चलते समस्या विकराल रूप ले रही है। दिल्ली पहले ही कई दशकों से भूजल का दोहन बहुत ज्यादा कर रहा है जिससे भूमिगत जल का स्तर काफी नीचे जाता जा रहा है जल संकट को दूर करने के लिए नीतियों और योजनाओं में निरंतर सुधार, जल बर्बाद करने की लोगों की आदत में सुधार के साथ, जल संचय को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। आवासीय, व्यापारिक और औद्योगिक भवनों में वर्षा जल को आसानी से एकत्र किया जा सकता है। जल संचय के लिए सामुदायिक भागेदारी की जरूरत है। लोगों को भी चाहिए कि वह जल की एक-एक बूंद बचाएं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com