जल का कहर : फैलता जहर
यद्यपि भारत तेजी से आर्थिक प्रगति कर रहा है लेकिन कुछ समस्याएं ऐसी हैं जिनकी ओर तुुरन्त ध्यान बहुत जरूरी है। देश में जलवायु परिवर्तन के चलते कभी सूखे का सामना करना पड़ता है तो कभी बाढ़ का सामना करना पड़ता है। भीषण गर्मी में देशभर में जल संकट का शोर मचा तो अब कई राज्यों में बाढ़ की स्थिति गम्भीर बनी हुई है। केरल, उत्तराखंड और हिमाचल समेत कई शहरों में प्राकृतिक आपदाएं लोगों के जीवन को लील रही हैं। बाढ़ की चुनौती से निपटने के लिए धन भी खर्च हो रहा है क्योंकि हजारों लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था करनी पड़ती है। जान-माल की क्षति भी लगातार हो रही है। पांच वर्ष पहले नीति आयोग ने भारत की जल स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें चेतावनी दी गई थी कि भारत अपने इतिहास के सबसे खराब जल संकट से गुजर रहा है और लाखों लोगों की जान और आजीविका खतरे में है। 600 मिलियन भारतीयों को उच्च से अत्यधिक पानी के तनाव का सामना करना पड़ा और सुरक्षित पानी तक अपर्याप्त पहुंच के कारण हर साल 2,00,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई।
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद सहित 21 शहरों में भूजल खत्म हो जाएगा और जिसका प्रतिकूल असर सीधे-सीधे लाखों लाख लोगों पर पड़ेगा। इसके अलावा यह भी कि भारत की 40 प्रतिशत जल आपूर्ति अस्थिर दर से समाप्त हो रही है जबकि अन्य 70 प्रतिशत प्रदूषित थी। एक तरफ तो भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है तो दूसरी तरफ भूजल लगातार जहरीला होता जा रहा है। भूजल में जहरीली धातुओं और रसायनों की मौजूदगी इस हद तक पहुंच गई है कि लोगों को कैंसर जैसी बीमारियाें का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में आई रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब में भूजल लगातार जहरीला होता जा रहा है।
दरअसल, पंजाब कई दशकों से इस संकट से लगातार पीड़ित है लेकिन एक हालिया चौंकाने वाली रिपोर्ट बताती है कि पंजाब के भूजल में नाइट्रेट, लौह अयस्क, आर्सेनिक, क्रोमियम, मैंगनीज, निकल, कैडमियम, सीसा और यूरेनियम की खतरनाक उपस्थिति की पुष्टि हुई है। दरअसल, पंजाब में व्यावसायिक कृषि के क्रम में लगातार उत्पादन बढ़ाने के मकसद से जिस बड़ी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग हुआ है उसका खमियाजा पंजाब के आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। दरअसल, देश की खाद्य शृंखला को सुनिश्चित करने के क्रम में हरित क्रांति में पंजाब ने जो योगदान दिया उसकी कीमत किसानों और आम नागरिकों को चुकानी पड़ रही है। ऐसी स्थिति कुछ अन्य राज्यों में भी है। जहां-जहां औद्योगिक क्षेत्र हैं वहां उद्योगों के प्रदूषित अवशिष्ट भूमि और पानी में घुल रहे हैं। औद्योगिक कचरे को निपटाने के कोई साधन उपलब्ध नहीं हैं।
दरअसल, इन घातक रासायनिक पदार्थों के हमारे खान-पान में प्रवेश करने से उच्च स्तरीय अवसाद और तंत्रिका तंत्र से जुड़ी बीमारियों का भी जन्म होता है। पेयजल व हमारे खाद्य पदार्थों में मैग्नीशियम व सोडियम की अधिकता से उपजे जानलेवा रोग जीवन पर संकट उत्पन्न कर सकते हैं। इसी तरह सीसा, निकल, यूरेनियम व मैंगनीज से दूषित पानी के उपयोग से कैंसर समेत कई अन्य गंभीर रोगों का खतरा बढ़ जाता है। लगातार गहराते इस संकट को नीति-नियंताओं को गंभीरता से लेना चाहिए। हरियाणा के कुछ हिस्सों में भी पानी में जहरीले पदार्थों का स्तर बढ़ रहा है। यह भी देखा गया है कि जिन इलाकों में डिस्टिलरी लगी हुई है उस क्षेत्र का पानी विषाक्त हो चुका है। ग्रामीण क्षेत्रों के लोग लगातार आंदोलन कर रहे हैं, कुछ जगह कार्रवाई भी हुई लेकिन कोई परिणाम नहीं िनकला। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए आम बजट में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को ट्रेनिंग देने की बात कही गई है लेकिन इस दिशा में कितना काम होगा यह देखना बाकी है। आखिर कब तक हम मानव जीवन को खतरे में डालते रहेंगे।
भारत इस वक्त इतिहास की सबसे ज्यादा गर्म गर्मियों में से एक से जूझ रहा है। वर्षा पूरी तरह से अनियमित हो चुकी है। एक-दो घंटे की बारिश में ही महानगरों का बुरा हाल हो जाता है। मानसून का मौसम जो कभी चार महीने तक चलता था, अब 30 दिन से भी कम भारी बारिश वाला रह गया है लेकिन अधर में लटकी वर्षा जल संचयन योजनाओं के कारण हम यह बहुमूल्य वर्षा भी संरक्षित नहीं कर पाते। उत्तर में भी हालात उतने ज्यादा ही खराब हैं। कृषि प्रधान राज्यों उत्तर प्रदेश और पंजाब में जलस्तर दस साल के औसत से काफी नीचे है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की स्थिति भी बेहतर नहीं है।
हमारे जंगलों की कीमत पर बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ध्यान केन्द्रित करने वाली राज्य सरकारों का ढुलमुल रवैया पहले से खराब हालात को और बदतर बना रहा है। उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक बड़े पैमाने पर वनों की कटाई हुई है। शोध बताते हैं कि बड़े पैमाने पर वनों की कटाई ने हमारे मानसून पर प्रतिकूल असर डाला है, नतीजतन वर्षा का स्तर कम हो गया है। केन्द्रीय जल मंत्रालय, कृषि मंत्रालय आैर सामाजिक संगठनों को मिलकर भूमिगत जल का स्तर कम होने आैर प्रदूषित हो रहे जल को गम्भीरता से लेना होगा। इसके िलए जल संरक्षण को बढ़ावा देना होगा आैर नई तकनीक अपनानी होगी।