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शहीदी पर्व पर छबील का क्या है इतिहास

02:33 AM Jun 13, 2024 IST
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History of Chhabeel on Martyrdom Festival: सिख पंथ में शहादतों का दौर पांचवें गुरु अर्जुन देव जी से शुरू होता है जिन्हंे समय के मुगल बादशाह जहांगीर के कहने पर अनेक तरह के कष्ट दिए गए। उबलते हुए गर्म पानी में उन्हें बिठाया गया, वहां से निकालकर गर्म तवे पर बिठाकर ऊपर से गर्म रेत गुरु जी के सिर पर डाली गई पर गुरु जी के मुख पर कोई शिकन नहीं आई बल्कि उन्होंने चुपचाप सारी यातनाओं को अकाल पुरख का हुकम समझकर माना। गुरु जी ने उस समय कहा था ‘‘तेरा कीया मीठा लागै, हर नाम पदार्थ नानक मांगे’’। इतिहास बतलाता है बादशाह अकबर की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र जहांगीर बादशाह बना तो उसने केवल इस्लाम की ही बात की। वह कट्टरपंथ में अधिक विश्वास रखता था।

जहांगीर का पुत्र अमीर खुसरो अपने पिता के विचारों से सहमत नहीं था और बागी होकर घर छोड़ने के पश्चात जब गुरु दरबार में पहुंचा तो गुरु जी ने उसे शरण दी। यह गुरु घर की परंपरा है कि जो भी गुरुघर आये उसे पनाह अवश्य दी जाती है पर यह बात जहांगीर को रास नहीं आई और उसने गुरु अर्जुन देव जी को बुलाकर उन्हें सख्त से सख्त सज़ा देने का आदेश जारी कर स्वयं कश्मीर रवाना हो गया। जहांगीर के आदेश पर उसके सेनापति चंदू ने गुरु जी को अपनी हवेली पर कैद करके उन्हें यातनाएं देनी आरंभ कर दीं। दूसरी ओर चंदू की पत्नी, उसकी पुत्रवधू और साईं मियांमीर फकीर गुरु जी को यातनाएं देने के पक्ष में नहीं थे उन्होंने इसका पुरज़ोर विरोध भी किया पर चंदू ने किसी की एक ना सुनी। चंदू की पत्नी और पुत्रवधू गुरु जी से मिलने जेल में पहुंची और ठण्डे मीठे जल का गिलास गुरु जी को दिया तो गुरु जी ने चंदू के घर का पानी भी पीने से मना कर दिया पर एक वरदान उसे दिया कि समय आने पर संगत मीठा जल पिया करेगी। गुरु जी ने स्वंय इससे पहले प्लेग फैलने पर ठंडे मीठे जल की छबीलें संगत के लिए लगा दी थीं इसलिए हर वर्ष जब भी गुरु जी का शहीदी पर्व आता है तो संगतों द्वारा खासकर स्त्री सतसंग जत्थों के द्वारा 2 माह पूर्व से ही सुखमनी साहिब की बाणी के पाठ की लडी़ चलाई जाती है और शहीदी दिवस पर ठण्डे मीठे जल की छबील लगाई जाती है। गर्मी के मौसम में छबील लगाकर मानवता को ठण्डा जल पिलाना पुण्य का कार्य है मगर सभी लोग एक ही दिन छबील लगाने के बजाए अगर गर्मी के पूरे मौसम में अलग-अलग दिन छबील लगाएं तो बेहतर होगा। अब तो शहीदी पर्व पर छबील के साथ तरह-तरह के पकवानों के लंगर भी लगाने लगे हैं। एक एक ऐरिया में अनेकों स्थानों पर लंगर व छबील लगाई जाती है जो कि पूरी तरह से सिख परम्परा के विपरीत जाकर पैसे की बर्बादी है इससे सिख समाज को बचना चाहिए।

ऑपरेशन ब्लू स्टार देश के इतिहास पर काला धब्बा
सिख इतिहास का वह काला अध्याय जिसे आपरेशन ब्लू स्टार के नाम से जाना जाता है। भारतीय फौज ने दरबार साहिब पर टैंकों तोपों से हमला कर गुरु ग्रंथ साहिब के पावन स्वरूप को भी गोलियों से छलनी किया। पवित्र सरोवर बेगुनाहों के खून से भर गया। सूत्र इस बात की गवाही भरते हैं कि दरबार साहिब पर हमला उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सोची समझी साजिश थी। इस आपरेशन को अंजाम देने के लिए इन्दिरा गांधी ने उस ब्रिटिश हकूमत की मदद ली जिसने सालों भारत को अपना गुलाम बनाकर रखा। आपरेशन से कुछ दिन पूर्व ब्रिटिश अधिकारी दरबार साहिब परिसर में रेकी करते भी पाए गये थे। अगर सरकार की मंशा केवल जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके साथियों को पकड़ने तक सीमित होती तो वह सरकार के लिए कोई मुश्किल काम नहीं था। उन्हें फौज की एक-दो टुकड़ियों की मदद से ही बाहर निकाला जा सकता था उसके लिए सैंकड़ों बेकसूर सिखों और भारतीय फौज के जाबांज़ सिपाहियों का खून बहाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। एजेंसियों के द्वारा सिखों को बदनाम करने हेतु तरह-तरह के हथकंडे अपनाये जा रहे थे। सरकार की नियत अगर सही होती तोे आम संगत को पहले ही दरबार साहिब जाने से रोका जा सकता था पर इसके विपरीत प्रशासन ने कर्फ्यू में कुछ समय की राहत देकर श्रद्धालुओं को पहले अंदर जाने दिया और उसके बाद घेराबंदी कर गोलीबारी शुरु कर दी। उस समय सोशल मीडिया भी नहीं था अगर वह भी होता तो शायद इसे रोकने में मदद मिल जाती। मगर अब कांग्रेस के बड़े नेता समझने लगे हैं और अपनी भूल का पछतावा करने ही बीते दिनों राहुल गांधी स्वयं श्री दरबार साहिब नतमस्तक होकर आए हैं।

रवनीत बिट्टू हार कर भी जीत गए
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पौत्र रवनीत सिंह बिट्टू जो कि लम्बे समय तक कांग्रेस के सांसद रहे और इस बार चुनाव से पहले उन्होंने पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने भी उन पर दाव खेलते हुए लुधियाना से टिकट दे दिया। जनता ने भले उन्हें जीत ना दी हो पर भाजपा ने पंजाब में 2027 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए रवनीत सिंह बिट्टू को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में शामिल कर उन्हें फूड प्रोसैसिंग मंत्रालय का कार्यभार सौंपा जो कभी हरसिमरत कौर बादल संभाला करती थी। हालांकि कयास लगाए जा रहे थे कि इस बार भाजपा की सरकार बनने पर अमृतसर से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े तरनजीत सिंह सन्धु जो कि तेजा सिंह समुन्द्री के परिवार से सम्बन्ध रखते हैं उन्हें मंत्रिमण्डल में स्थान दिया जायेगा क्योंकि पिछली बार भी अमृतसर से चुनाव हारने के बावजूद हरदीप सिंह पुरी को मंत्री बनाया गया था। मगर ऐसा नहीं हुआ क्योंकि गृहमंत्री अमितशाह लुधियाना की जनता से वायदा करके आए थे कि आप रवनीत सिंह बिट्टू को जितवाकर भेजिए उसे बड़ा आदमी हम बनाएंगे। दूसरा शायद इसलिए भी भाजपा ने ऐसा दाव खेला है क्यांेकि रवनीत बिट्टू की किसानों में भी अच्छी पकड़ है। वह किसानों के संघर्ष में निरन्तर उनके साथ धरनों पर बैठते रहे हैं। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में वह सरकार और किसानों के बीच की कड़ी बनकर किसानी समस्याओं का हल करवाने में अहम रोल अदा करेंगे। वहीं जिस प्रकार अकाली दल से अलग होकर भाजपा ने अच्छी पकड़ पंजाब में बनाई है बिट्टू के सहारे 2027 विधान सभा चुनावों से पहले इसे और मजबूत किया जा सकता है।

सिख सुरक्षा​कर्मियों को संयम रखने की आवश्यकता
देश की आजादी से लेकर आज तक सिख फौजी देश की रक्षा करते आए हैं और करते रहेंगे मगर उन्हें अपनी ड्यूटी के समय संयम बरतने की आवश्यकता है। बीते दिनों चण्डीगढ़ के मौहाली हवाई अड्डे पर जिस तरह से सुरक्षा अधिकारी के द्वारा एक सांसद को थप्पड़ मारने की घटना सामने आई उसके बाद से देश भर से अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देखने को मिली जिसमें ज्यादातर लोगों के द्वारा सांसद कंगना रनौत को ही दोषी माना जा रहा है। इस घटना के बाद कंगना ने अपनी टिप्पणी में समूचे पंजाब में उग्रवाद के बढ़ने की बात कही क्योंकि थप्पड़ मारने वाली सुरक्षा अधिकारी किसानी परिवार से सम्बन्धित थी और दूसरा सिख थी। ऐसा शायद पहली बार नहीं हुआ है इससे पहले भी कंगना रनौत के द्वारा कई तरह की अभद्र टिप्प​िणयां पंजाब के किसानों के खिलाफ की जा चुकी हैं। यहां गलती सुरक्षा अधिकारी कुलविन्दर कौर की भी है, माना जा सकता है कि उसके मन में कंगना रनौत की अभद्र टिप्पणियों के चलते उसके प्रति गुस्सा था मगर ड्यूटी करते समय उसका फर्ज बनता था कि बिना किसी भेदभाव के सभी नागरिकों की हिफाजत करे पर उसने तो इसके विपरीत जाकर स्वयं ही हिंसा का रुख अख्तियार कर लिया। ऐसा करके उसके मन को भले ही शान्ति मिल गई हो मगर जहां एक ओर उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ गया वहीं सुरक्षा एजेन्सियां भी अब सिख और किसान परिवारों से सम्बिन्धित व्यक्तियों को कहीं ना कहीं नागरिकांे यां फिर विशिष्ट लोगों की सुरक्षा की जिम्मेवारी देने में संकोच कर सकती हैं। हालांकि कुलविन्दर कौर का पिछला रिकार्ड बताता है कि वह पूरी जिम्मेवारी के साथ अपनी ड्यूटी निभा रही थी। और ऐसा नहीं है कि कंगना इससे पहले कभी मोहाली हवाई अड्डे पर ना आई हो, अगर उसने जानबूझ कर कंगना से अपनी माताओं पर की गई टिप्पणी का बदला लेना होता तो वह पहले भी ले सकती थी फिर एकाएक ऐसा क्या हुआ होगा उस समय जब उसने एक दम से थप्पड़ की घटना को अन्जाम दिया। इसकी गहन जांच की आवश्यकता है, उसके बाद ही स्थिति साफ हो पाएगी।

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