India WorldDelhi NCR Uttar PradeshHaryanaRajasthanPunjabJammu & Kashmir Bihar Other States
Sports | Other GamesCricket
Horoscope Bollywood Kesari Social World CupGadgetsHealth & Lifestyle
Advertisement

जेलों में बंद लोगों की आवाज कौन बनेगा?

01:37 AM Mar 15, 2024 IST
Advertisement

यूनान के महान दार्शनिक सुकरात का शिष्य और अरस्तू का गुरु प्लेटो था। इन तीनों ही विद्वानों ने जो लिखा, जो कहा आज तक पढ़ा और सुना जाता है। इनका समय ईसा पूर्व 2400 के लगभग माना जाता है और यूनान में पैदा हुए थे। जो कुछ प्लेटो ने उस समय लिखा वह आज भी बहुत ही ज्यादा प्रासंगिक है। यूं कहिए शत प्रतिशत है। प्लेटो ने लिखा था कि दुनिया में सबसे बड़ा झूठ यह है कि कानून के सामने सब बराबर हैं। भारत में भी नेताओं के मुख से विश्वविद्यालयों के विद्वतजनों की सभाओं में इसी सत्य को दोहराया जाता है कि कानून के समक्ष सब बराबर हैं। हमारा संविधान भी इसी की पुष्टि करता है, पर वास्तव में वही सत्य दिखाई देता है जो प्लेटो ने कहा था। अपने ही देश में देखें तो धनी और राजनीति दृष्टि से विशिष्ट व्यक्ति वीआईपी के नाम से उन सभी सुविधाओं को सहज प्राप्त कर लेते हैं जो गरीब के लिए या राजनीतिक, आर्थिक अथवा सामाजिक दृष्टि से कमजोर व्यक्ति के लिए दिवा स्वप्न है। हम हर रोज संविधान द्वारा दिए समानता के अधिकार की चर्चा करते हैं। समानता मिलती कहां है? न पुलिस थानों में, न राजनेताओं के दरबार में, न परिवारों में, समाज में तो मिलती ही नहीं। इसलिए नीतिशास्त्र में लिखा है कि जो समाज धन को मान्यता देता है वह हर तरह के पाप और अपराध को मान्यता दे देता है।
सभी जगह भेदभाव है। यह ठीक है कि अब सरकारें प्रयास कर रही हैं कि दवाई और पढ़ाई अथवा शिक्षा और चिकित्सा सबको एक जैसी मिले, पर यह साफ दिखाई दे रहा है कि ऐसा सुखद स्वप्न साकार होने में शायद एक अमृत महोत्सव और मनाना पड़ जाए, पर शिकायत तो उन सत्तापतियों से है जो बड़े अलंकृत भाषा में जनहित में भाषण देते हैं, मंचों पर भावुक होने का नाटक करते हुए कभी-कभी आंखों में आंसू भी ले आते हैं। प्रत्यक्ष ऐसा दिखाई देता है कि वंचित और पीड़ित की दशा से बहुत ही दुखी हैं, पर यह सब कुछ मंचीय दृश्य हैं। केवल एक ही पक्ष गरीब के जीवन का रखा जाए तो वह भी बहुत दयनीय है। जेलों में बंदी व्यक्तियों से उनके परिवार जब मुलाकात करने जाते हैं तो उनके साथ क्या बीतती है अगर सहृदय अधिकारी और राजनेता यह जान लें तभी उन्हें सच्चाई का पता लगेगा, पर वे कागजी निरीक्षण करके कैदियों की कठिनाइयां सुनने का और कभी न पूरे होने वाले भरोसे देकर आ जाते हैं। जेल में सार्वजनिक तौर पर कौन कैदी यह बताने का साहस करेगा कि उनके साथ क्या बीतती है। जरा यह सोचिए जल में रहकर मगरमच्छ से वैर कौन करे। क्या यह सच नहीं कि जेल में सभी को बीमार होने पर इलाज भी नहीं मिलता। क्या यह सच नहीं कि जेल में लोगों की पिटाई भी होती है। क्या यह सच नहीं कि कैदियों के परिजन जो उनके लिए खाने पीने का तथा अन्य सामान लेकर जाते हैं वह कितने प्रतिशत उनके पास पहुंचता है। यह तो वही बता सकते हैं जिन्होंने यह सब सहा है। घायल की गति घायल जानता है, भाषण वीर नहीं। जेल में एक बहुत बड़ी संख्या में वे भी बंदी हैं जो अभी विचाराधीन हैं। उनके परिवार में मृत्यु जैसा भी दुख आ जाए तो वे घर में जाकर रो कर अपने प्रियजन के अंतिम दर्शन करके दुख बांट नहीं सकते। जब उन्हें इस दुखद अवसर पर भी छुट्टी पर भेजना है तो जो सुरक्षा उन्हें दी जाती है उसके लिए भी इन कैदियों के परिवारों को सुरक्षा का खर्च देना पड़ता है। एक कैदी अपनी मां के अंतिम संस्कार में उसके अंतिम दर्शन के लिए भी नहीं जा सका, क्योंकि वह आर्थिक बोझ सुरक्षा का नहीं उठा सकता था। जेलों में जितने कैदियों के रहने की व्यवस्था है उससे कहीं अधिक संख्या में कैदी अंदर रखे गए हैं। बहुत कम जेलें ऐसी हैं जहां मानवता का सम्मान करने वाले अधिकारी हैं। एक बहुत बड़े अधिकारी से भी मिलने का अवसर मिला जिसने यह कहा कि उसका कर्त्तव्य जेल में बंद सभी कैदियों को नियम अनुसार सही ढंग से रखना है। उनके अपराध से उसका कोई संंबंध नहीं है। वह सबको समान सुविधाएं नियम अनुसार देगा ही, लेकिन जेलों में अधिकारियों का अपराध भी यदा कदा सामने आता ही रहता है।
भारत सरकार से निवेदन है कि वे जेल में बंद कैदियों की स्थिति पर स्वयं दृष्टि रखें, स्वयं विचार करें। यह तो सच है कि ऐसे लोग बंद हैं जिन्होंने कोई अपराध किया ही नहीं। सच यह भी है कि जो गरीब हैं वे तो जिला अदालत में भी अपना केस नहीं ले जा सकते। सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचकर न्याय पाना तो उनके परिजनों के लिए असंभव है। जेलों में कैदियों की संख्या कम करने के लिए सरकार के बनाए एक कानून की चर्चा तो सुनी थी, पर अभी तक दिखाई नहीं दिया। जब तक अपराध सिद्ध न हो जाए तब तक आरोपी जमानत पर रहेंगे, जिससे जेलों में संख्या बहुत ज्यादा नहीं होगी। चर्चा यह भी है कि जो अपराधी सजा पूरी तो कर चुके हैं पर जुर्माना राशि नहीं भर सकते उनके आर्थिक दंड की आपूर्ति में भारत सरकार सहायता देगी। यह सब अभी विचाराधीन है। जो काम एक दम सरकारें कर सकती हैं और करना भी चाहिए वे है कि जो भी एलएलबी, एलएलएम के विद्यार्थी हैं उन्हें डिग्री देने से पहले कम से कम अंतिम सेमेस्टर में जेलों में बंदियों के केस जानने, उनके प्रार्थना पत्र अदालतों में पहुंचाने, उनके लिए वकील बनकर खड़े होने का नियम बना दिया जाए, फिर कोई ऐसा व्यक्ति नहीं रहेगा जो हवालाती के रूप में जेलों में बं रहे। कारण यह कि न उसकी कोई जमानत देने वाला है, न उसका प्रार्थना पत्र कहीं आगे जा सकता है।
सरकार को यह भी नियम बनाना ही चाहिए कि जो जेल में बंद कैदियों की उच्च अदालतों में अपीलें विचार करने के लिए वर्षों से पड़ी हैं उनका निपटारा शीघ्र किया जाए। ऐसा भी होता है कि अपील का निपटारा होने तक उनकी सजा पूरी हो जाती है। जो कानून की जकड़ में बेबस और बहुत से बेकसूर हैं उनकी आवाज सरकारी तंत्र को बनना ही चाहिए। यह भी तो सरकारों का कर्तव्य है।

- लक्ष्मीकांता चावला

Advertisement
Next Article