बेगानी शादी में दुनिया क्यों दीवानी..?
एक फिल्मी गाना आप सबने सुना होगा...बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना...! फिल्म थी ‘जिस देश में गंगा बहती है’ आप कहेंगे कि इस गाने की याद मैं आपको क्यों दिला रहा हूं? दरअसल जब से अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोर रहा है तब से इस गाने की धुन पर कुछ पंक्तियां मेरे जेहन में बार-बार कौंध रही हैं...बेगानी शादी में दुनिया क्यों दीवानी...?
यूं तो दुनिया के किसी भी देश में चुनाव हो, दूसरे देशों की नजर उस पर बनी रहती है, खासकर उन देशों की नजर ज्यादा होती है जिनके आपसी रिश्ते ज्यादा जुड़े हुए या ज्यादा जटिल होते हैं। हर देश यह अंदाजा लगाता है कि उसके लिए किस व्यक्ति का सत्ता में आना फायदेमंद रहेगा लेकिन जब बात अमेरिका की होती है तो पूरी दुनिया की नजर उस पर होती है क्योंकि अमेरिका एक ऐसा देश है जो हर देश को प्रभावित करता है। उसके प्रभाव की जड़ें पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तरी ध्रुव से लेकर दक्षिणी ध्रुव तक फैली हुई हैं, वहां राष्ट्रपति कौन होने वाला है इससे दुनिया की राजनीति के बदलने के अनुमान लगाया जाना स्वाभाविक है। आपको याद ही होगा कि ट्रम्प अफगानिस्तान में लड़ाई लड़ रहे थे लेकिन बाइडेन ने सत्ता में आते ही अफगानिस्तान को उसकी किस्मत पर छोड़ कर अपनी फौज को अचानक वापस बुला लिया था। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं।यही कारण है कि इस बार भी पूरी दुनिया इस चर्चा में मशगूल है कि रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प जीतेंगे या डेमोक्रेटिक कमला हैरिस? हालांकि कमला हैरिस अभी तक अधिकृत तौर पर उम्मीदवार नहीं बनी हैं लेकिन वो बनेंगी, यह तय है। और यदि वे राष्ट्रपति चुनी गईं तो पढ़े-लिखे और सबसे विकसित कहे जाने वाले अमेरिका की वे पहली महिला राष्ट्रपति होंगी।
मैं खासतौर पर भारत के संदर्भ में बात करूंगा कि किसकी जीत हमारे अनुकूूल होगी। चूंकि हम भारतीय रिश्तों को लेकर भावनाओं से भरे होते हैं इसलिए जब ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने तो हम खुश हो गए और जब बाइडेन की जगह कमला हैरिस का नाम आया तो चेन्नई से 300 किलोमीटर दूर थुलासेंद्रापुरम गांव में जश्न मनाया जाने लगा क्योंकि कमला की मां श्यामला इसी गांव से निकल कर अमेरिका पहुंची थीं। तो क्या कमला हैरिस के दिल में भारत के लिए कोई खास जगह है? मुझे तो ऐसा नहीं लगता है। उनकी मां भारतीय थीं तथा पिता जमैका से थे लेकिन वह अपने मूल को लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिखाती हैं, बल्कि कई मौकों पर उन्होंने भारत विरोधी तेवर ही अपनाया है।
2019 में जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 का खात्मा किया गया था तब उन्होंने इसका विरोध किया था। उन्होंने यहां तक कहा था कि ‘हम कश्मीरियों को याद दिलाना चाहते हैं कि वो अकेले नहीं हैं, हम हालात पर नजर बनाए हुए हैं।’ दोस्ती का भाव रखने वाला कोई व्यक्ति ऐसा कभी नहीं कह सकता। एक बात और याद दिलाना चाहूंगा कि 2021 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका गए थे तो उन्होंने कमला को भारत आने का न्यौता दिया था लेकिन बदले में उन्होंने लोकतंत्र पर खतरे का राग छेड़ दिया था।
2023 में अमेरिका यात्रा के दौरान पीएम ने कमला की काफी तारीफ की थी लेकिन उपराष्ट्रपति बनने के बाद कमला ने भारत की ओर कभी रुख किया ही नहीं। सच तो यह है कि भारत और अमेरिका के रिश्तों को और बेहतर बनाने में उन्होंने अब तक कोई रुचि ही नहीं दिखाई है।
अब चलिए जरा इस बात पर ध्यान दें कि यदि ट्रम्प जीते तो भारत से रिश्तों का क्या होगा? आमतौर पर धारणा यही रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प के निजी रिश्ते काफी मजबूत हैं। फरवरी 2020 में ट्रम्प जब भारत आए थे तब गुजरात में उनके लिए शानदार आयोजन किया गया था और उसके पहले अमेरिका में हाउडी मोदी कार्यक्रम की याद तो आपको होगी ही। अभी ट्रम्प पर हमला हुआ तो तत्काल उसकी आलोचना करने वालों में नरेंद्र मोदी भी शामिल थे।इधर ट्रम्प इस बात को जानते हैं कि चीन को लेकर उनका जो नजरिया है, उसमें भारत बड़ी भूमिका निभाने की ताकत रखता है। दुनिया में भारत एक बढ़ती हुई शक्ति है इसलिए जाहिर सी बात है कि वे भारत को हर हाल में तरजीह देंगे। लेकिन क्या ट्रम्प खुले रूप से भारत के लिए फायदेमंद हैं? मुझे इसमें भी शंका है क्योंकि जब भी अमेरिकी हितों की बात आएगी तो स्वाभाविक रूप से कमला हों या ट्रम्प, वे अमेरिका के बारे में ही सोचेंगे और ट्रम्प तो ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति के घनघोर समर्थक भी हैं। इस चुनाव प्रचार के दौरान ट्रम्प ने हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल पर ज्यादा टैक्स लगाने के मामले को लेकर भारत को निशाने पर लिया लेकिन उनका स्वर बहुत कठोर नहीं था।
वैसे एक बात और बता दूं कि ट्रम्प ने उपराष्ट्रपति पद के लिए जेडी वेंस को मैदान में उतारा है और उनकी पत्नी ऊषा भारतीय मूल की हैं, यानी रिपब्लिकन हों या डेमोक्रेटिक, दोनों तरफ भारतीय रिश्ता जुड़ा है लेकिन एक पहलू यह भी है कि अमेरिकी कांग्रेस के 535 सदस्यों में से केवल 5 ही भारतीय मूल के हैं इसलिए ज्यादा खुशफहमी पालने की जरूरत नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति की कुर्सी पर 78 वर्षीय ट्रम्प बैठें या फिर 59 वर्षीय कमला हैरिस, स्वाभाविक तौर पर वे भारत नहीं अमेरिका के हितों के बारे में ज्यादा सोचेंगे, दूसरे की शादी में दीवाना होकर हमें नाचने की जरूरत नहीं है बल्कि हमें यह सोचने की जरूरत है कि हम अमेरिका को अपनी राह पर कैसे लाएं ...और इसके लिए हमारे पास एस. जयशंकर जैसा प्रखर विदेश मंत्री मौजूद है...!