बांग्लादेश में हिंसा क्यों ?
भारत-बांग्लादेश के बीच जो सम्बन्ध हैं उनकी तुलना आंशिक रूप से भारत-नेपाल सम्बन्धों से ही की जा सकती है क्योंकि बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में भारत ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के लोगों की मानवता के आधार पर मदद की थी और पूरी दुनिया को यह समझाया था कि पाकिस्तान की इस्लामाबाद स्थित सरकार अपनी फौज की मार्फत पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर जुल्मो-गारत कर रही है। भारत के योगदान से ही पूर्वी पाकिस्तान एक स्वतन्त्र राष्ट्र बांग्लादेश बना। यह एेतिहासिक तथ्य है कि मार्च 1971 में ही बांग्लादेश की अपनी आरजी सरकार बन गई थी मगर 16 दिसम्बर, 1971 को बाकायदा पाकिस्तानी फौजों से आत्मसमर्पण करा कर भारत ने बांग्लादेश के लोगों को उनके मानवीय अधिकार दिलाये और मुक्ति संग्राम के महायोद्धा शेख मुजीबुर्रहमान को इस देश का सर्वेसर्वा स्वीकार किया। इस देश की वर्तमान प्रधानमन्त्री श्रीमती शेख हसीना वाजेद बांग्लादेश में राष्ट्रपिता का दर्जा प्राप्त शेख मुजीबुर्रहमान की ही सुपुत्री हैं।
1971 में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने पाकिस्तान से अलग होने के लिए जो महान संघर्ष किया था और मुक्ति वाहिनी का गठन करके पाकिस्तानी फौजों का मुकाबला किया था वह इस देश के लोगों के लिए मुक्ति संग्राम था। मुक्ति संग्राम में योगदान करने वाले लोगों को शेख हसीना सरकार ने सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण देने की नीति बनाई। अब इसी आरक्षण के विरुद्ध बांग्लादेश के युवा आन्दोलन कर रहे हैं और इसे समाप्त करने की आवाज उठा रहे हैं। इस मांग के पीछे तथ्य यह है कि 2024 के आते-आते बांग्लादेश की दो-तिहाई आबादी से 1971 के बाद जन्मी है जिन्हें मुक्ति संग्राम के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों की हालत यह है कि साल भर में इन नौकरियों की केवल दो से तीन हजार संख्या ही रहती है जिसके लिए हर साल चार लाख से ज्यादा युवा प्रार्थना भेजते हैं। आरक्षित कोटे में 30 प्रतिशत स्वतन्त्रता सेनानियों के वारिसों के लिए आरक्षित हैं। बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों के लिए 56 प्रतिशत पद आरक्षित रहते हैं। मुक्ति संग्राम के स्वतन्त्रता सेनानियों के अलावा 10 प्रतिशत पद महिलाओं के लिए,10 प्रतिशत पद देश के अविकसित जिलों के लोगों के लिए, पांच प्रतिशत पद इस देश के मूल आदिवासी तबकों के लिए व एक प्रतिशत विकलांगों के लिए आरक्षण का प्रावधान है। आन्दोलनकारी मांग कर रहे हैं कि मुक्ति संग्राम के वारिसान के लिए आरक्षण खत्म होना चाहिए। जिसके चलते आन्दोलनकारी युवा वर्ग व पुलिस के बीच हिंसक झड़पें भी हो रही हैं जिसमें अभी तक 150 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है।
बांग्लादेश की राजधानी में इन हिंसक वारदातों की वजह से कर्फ्यू लगा दिया गया है तथा इंटरनेट सेवा पूरी तरह बन्द कर दिया गया। इस मामले में देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना का मन्तव्य पूरी तरह साफ है कि मुक्ति संग्राम के वारिसों को भी स्वतन्त्रता सेनानियों का दर्जा मिलना चाहिए और उनके लिए नौकरियों में आरक्षण होना चाहिए। हालांकि इनके लिए 30 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है मगर हर साल केवल 10 प्रतिशत पद ही इस कोटे से भरे जाते हैं और शेष रिक्तियां अन्य सामान्य वर्ग के प्रत्याशियों से भरी जाती हैं। समझा जा रहा है कि इस आन्दोलन को बांग्लादेश की विपक्षी पार्टी बांग्लादेश राष्ट्रीय पार्टी (बीएनपी) का समर्थन प्राप्त है और प्रतिबन्धित जमाते इस्लामी पार्टी भी समर्थन दे रही है। बांग्लादेश की जमाते इस्लामी वह पार्टी है जिसने 1971 के मुक्ति संग्राम में पाकिस्तानी फौजों का साथ दिया था। एेसे लोगों को यहां रजाकार कहा जाता है। इस आन्दोलन के उग्र होने का कारण भी यही माना जा रहा है। मगर इस बीच बांग्लादेश सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया है जिसमें निर्देश दिया गया है सरकारी नौकरियों में केवल सात प्रतिशत आरक्षण होना चाहिए और बाकी के 93 प्रतिशत पद योग्यता के आधार पर भरे जाने चाहिए। यह फैसला आने के बाद उम्मीद की जा रही है कि आन्दोलन समाप्त हो जायेगा और बांग्लादेश में शान्ति स्थापित हो सकेगी। मगर एक तथ्य स्पष्ट है कि बांग्लादेश को अपने 1971 के स्वतन्त्रता आन्दोलन पर जबर्दस्त गर्व है और यह देश अपने मुक्ति संग्राम की विरासत को संजोए रखना चाहता है। बेशक यह बांग्लादेश का अन्दरूनी मामला है परन्तु इस देश के भविष्य के बारे में भारत के देश भक्त लोग भी चिन्तित रहते हैं क्योंकि बांग्लादेश एेसा देश है जिसका राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की अमर रचना ही है। इस देश में 80 प्रतिशत मुस्लिम आबादी होने के बावजूद सर्वधर्म समन्वय की भावना मुखर होकर बोलती है।
पिछले 53 साल में इस देश में लोकतन्त्र बर्खास्तगी तक फौजी शासकों ने की परन्तु इसके लोगों ने अपनी मूल बांग्ला संस्कृति को कस कर पकड़े रखा। फौजी शासकों के समय इस देश को इस्लामी देश घोषित तो किया गया परन्तु इसके अधिसंख्य लोग धार्मिक मतांध नहीं हैं और खुद को पहले बंगाली समझते हैं तथा इसी संस्कृति के अनुसार अपने तीज-त्यौहार तक मनाते हैं हालांकि 1971 में जब यह स्वतन्त्र देश बना था तो शेख मुजीबुर्रहमान ने इसके धर्मनिरपेक्ष होने की घोषणा की थी। इस देश में 15 हजार भारतीय युवा पढ़ाई के लिए भी जाते हैं जिनमें से एक हजार के लगभग को भारत सरकार ने सुरक्षित रूप से स्वदेश बुला लिया है।