For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

क्या सभापति के खिलाफ महाभियोग आएगा

03:49 AM Sep 08, 2024 IST
क्या सभापति के खिलाफ महाभियोग आएगा

‘हद से ज्यादा तेरा खुद पर
यकीं बेहद लाजिमी है
बातें करता खुदा सी पर
तू एक अदना सा आदमी है’

विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक ने राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ की नींदें उड़ा रखी हैं, सियासी हलकों में यक्ष प्रश्न अब भी एक अनसुलझे रहस्य के मानिंद है कि क्या सचमुच विपक्षी खेमा धनखड़ साहब के रवैये से इतना आहत है कि वह अनुच्छेद 67 (बी) के तहत राज्यसभा के सभापति के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारियों में जुटा है? भले ही ऐसा करने के लिए विपक्ष के पास पर्याप्त संख्या बल न हो पर अब तक 87 सांसद इस नोटिस पर अपने दस्तखत कर चुके हैं।
विपक्ष की रणनीति बेहद साफ है कि ‘चाहे सदन में यह प्रस्ताव गिर जाए पर जब इस मुद्दे पर सदन में बहस होगी तो पूरा देश उसे देखेगा और मामले का दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।’ सत्ता पक्ष के समक्ष भी नैतिक जवाबदेही बलवती होगी और धनखड़ साहब को भी अपने किए पर अफसोस होगा। सनद रहे कि अनुच्छेद 67 (बी) के तहत अगर महाभियोग का प्रस्ताव राज्यसभा के तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित होता है और लोकसभा से इसे सहमति हासिल होती है तो फिर उपराष्ट्रपति को उनके पद से हटाया जा सकता है। हालांकि इस प्रस्ताव को सदन में पेश करने के लिए 14 दिनों का नोटिस देना भी अनिवार्य है। पर मौजूदा दोनों सदनों में सत्ता पक्ष के गिनती बल को देखते हुए ऐसे किसी प्रस्ताव का पारित होना संभव नहीं लगता, फिर भी विपक्ष इस पूरे मामले की प्रासंगिकता को बनाए रखना चाहता है, क्योंकि विपक्षी दलों को सभापति का सदन में रवैया पक्षपातपूर्ण लगता है।
सूत्र बताते हैं कि मामले की नजाकत को भांपते हुए उपराष्ट्रपति की ओर से भी बड़े विपक्षी नेताओं से संपर्क साधा जा रहा है और उन्हें मनाने की भरसक कोशिश हो रही है। वैसे तो भाजपा शीर्ष के लिए भी यह पूरा मामला गले की हड्डी बन गया है, जगदीप धनखड़ साहब को बंगाल से यह सोच कर दिल्ली लाया गया था कि उनके आने से पश्चिमी यूपी, राजस्थान व हरियाणा के जाटों में भाजपा की धाक बढ़ेगी, पर हालिया चुनावों में जिस तरह भाजपा व जाटों के बीच छत्तीस का आंकड़ा दिखा है उससे तो कम से कम यही लगता है कि धनखड़ को लाने से भाजपा षीर्श की उम्मीदें बस धराशयी ही हुई हैं।
कांग्रेस के विभीषण
हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अब तक 67 टिकट ही घोषित किए हैं, पर अनुशासित माने जाने वाली व चाल चरित्र चेहरा का खटराग गाने वाली पार्टी का असली चेहरा सड़कों पर उतर आया है। टिकटों के बंटवारे से पार्टी में भयंकर असंतोष है और रोज-ब-रोज थोकभाव में भगवा नेता अपनी पार्टी को अलविदा कह अन्यत्र जा रहे हैं।
भगवा पार्टी को अपने चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में ही इस बात का इल्म हो गया था कि शायद इस बार जीत की तिकड़ी उनके नसीब में नहीं। सो, कायदे से पार्टी रणनीतिकारों ने प्रदेश कांग्रेस के दो बड़े नेताओं पर डोरे डाले, इनमें से एक चर्चित महिला नेत्री भी हैं, जो हरियाणा की भी होकर दिल्ली में हमेशा अपना सिक्का चलाती रहीं हैं। इन दोनों नेताओं को प्रलोभन भी दिया गया था कि ‘अगर हरियाणा में तीसरी बार भाजपा की सरकार आती है तो सीएम पद पर इन दोनों का भी दावा हो सकता है।’ कहते हैं इन दोनों नेताओं से खुल कर लक्ष्मी दर्शन का भी वादा था।
इस डील की भनक कांग्रेस नेतृत्व को भी लग गई थी, सो आनन-फानन में कांग्रेस शीर्ष ने इन दोनों नेताओं की टिकट वितरण में भूमिका एकदम से समेट दी, पार्टी ने कुछ कड़े फैसले लेते हुए कह दिया ‘दो बार के हारे उम्मीदवारों को टिकट नहीं दी जाएगी, सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिलेगा और जिन नेताओं पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं उन्हें भी टिकट नहीं दिया जाएगा।’ लेकिन भाजपा को अंत तक इन दोनों नेताओं के भगवा रंग में रंग जाने की उम्मीद थी, भले ही चुनाव आयोग ने बिश्नोई समाज के त्यौहार का हवाला देकर हरियाणा चुनाव की तारीख आगे बढ़ा दी हो, पर भाजपा को अंत समय तक इन दोनों नेताओं के ‘हां’ का इंतजार था।
क्यों छटपटा रहे हैं नीतीश
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने सियासी कैरियर की सबसे मुश्किल जंग लड़ रहे हैं, इस बार दगा का खतरा बाहर से ज्यादा घर से है, दुश्मनों से कहीं ज्यादा दोस्तों से है।
सूत्र बताते हैं कि नीतीश को इस बात का बखूबी इल्म हो चुका है कि उनकी गठबंधन साथी भाजपा उनकी पूरी पार्टी को ही गड़प करना चाहती है। यह भी मुमकिन है कि आने वाले दिनों में उन्हें सीएम पद भी छोड़ना पड़ जाए, क्योंकि 25 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा राज्य में अपनी पार्टी का सीएम चाहती है। यह भी कहा जा रहा है कि नीतीश के सभी दर्जन भर सांसद भाजपा रणनीतिकारों के निरंतर संपर्क में हैं, और इस भगवा योजना को अंजाम तक पहुंचाने में संजय झा, लल्लन सिंह, हरिवंश, प्रशांत किशोर व आरसीपी सिंह जैसे लोग दिन-रात जुटे हैं।
सूत्रों की मानें तो भाजपा नेतृत्व नीतीश कुमार द्वारा बिहार में कराए जा रहे ‘भूमि सर्वेक्षण’ को लेकर खासा नाराज़ है। भाजपा का तर्क है कि ‘राज्य की लगभग एक-तिहाई जमीन पहले से विवादित है और भूमि सर्वेक्षण के बाद यह आंकड़ा दो-तिहाई तक पहुंच सकता है, जिससे वहां के परिवारों में जमीन को लेकर झगड़े, मुकदमे और हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी होगी। इस भूमि सर्वेक्षण का खामियाजा सबसे ज्यादा राज्य की अगड़ी जातियों को उठाना पड़ सकता है, जो कायदे से भाजपा के कोर वोटर हैं।’ बदलती हवा का रुख भांपते हुए नीतीश पहले अपने दफ्तर में राजद नेता तेजस्वी यादव से मिले और दोनों नेताओं के बीच बंद कमरे में एक लंबी बात हुई। इसके कुछ दिनों बाद नीतीश लालू-राबड़ी से मिलने उनके घर जा पहुंचे, अपने साथी भाजपा को यह बताने के लिए कि उन्होंने भी सियासत में कोई कच्ची गोलियां नहीं खेल रखी है।
बिहार कांग्रेस को कब मिलेगा नया मुखिया
बिहार कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष जो लालू यादव के परम शिष्यों में शुमार होते हैं, उन्हें हटाने की कवायद पिछले कई महीनों से जारी है, पर नतीजा वही है ढाक के तीन पात। अभी पिछले दिनों बिहार कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मिलने दिल्ली पहुंचा और उनसे अर्ज करता नज़र आया कि ‘अगर अखिलेश प्रसाद सिंह को तुरंत प्रदेश अध्यक्ष पद से नहीं हटाया गया तो फिर बिहार में कांग्रेस का भगवान ही मालिक है।’
वहीं इन बातों से बेखबर अखिलेश प्रसाद बिहार कांग्रेस के कुछ नेताओं से अपनी पुरानी दुश्मनी साधने में जुटे हैं। जैसे उन्होंने पिछले दिनों सारण के जिला अध्यक्ष अजय सिंह के बारे में हाईकमान को पत्र लिख कर उन पर तुरंत कार्रवाई करने को कहा, यह कहते हुए कि ‘अजय सिंह की वजह से पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है।’ सनद रहे कि राजपूत जाति से ताल्लुक रखने वाले ये यही अजय सिंह है जो पहले बिहार कांग्रेस सेवा दल और किसान कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। एक बार वे राबड़ी देवी के खिलाफ चुनाव भी लड़ चुके हैं। अखिलेश को शक है कि इस दफे के 2024 के लोकसभा चुनाव में उनके पुत्र आकाश को महाराजगंज सीट से चुनाव हरवाने में अजय सिंह की एक महती भूमिका है, क्योंकि वे महाराजगंज की सीट अपने पुत्र श्रीकृष्ण हरि के लिए मांग रहे थे, श्रीकृष्ण हरि पिछले दो वर्षों से महाराजगंज में सक्रिय थे, वे ऑल इंडिया यूथ कांग्रेस के सचिव होने के साथ मध्य प्रदेश युवा कांग्रेस के प्रभारी भी हैं। ‘नीट’ एक्जाम में धांधली के विरोध में श्रीकृष्ण हरि ने पटना में एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था, जिसमें शामिल होने पर पुलिस की लाठियों से यूथ कांग्रेस अध्यक्ष श्रीनिवास का हाथ टूट गया था। वहीं अखिलेश पुत्र आकाश पहले उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में थे, वहां से वे एक दफे चुनाव भी लड़ चुके हैं और किसी को नहीं मालूम कि वे कब कांग्रेस में आ गए और महाराजगंज से कांग्रेस का टिकट भी पा गए।
हरियाणा का भगवा सबक दिल्ली के लिए
हरियाणा की चुनावी आहूति में अपनी अंगुलियां जला चुका भाजपा शीर्ष अभी से दिल्ली के विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट तो गया है पर अपना हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहा है। वैसे भी आप नेताओं की हालिया जेल यात्राओं के बाद दिल्ली में कमल के प्रस्फुटन की संभावनाएं बेहतर बताई जा रही हैं। सो, पार्टी शीर्ष ने दिल्ली भाजपा के तीन बड़े दिग्गजों मीनाक्षी लेखी, प्रवेश साहिब सिंह वर्मा और रमेश बिधूड़ी से विधानसभा चुनाव में उतरने के लिए तैयार रहने को कहा है।
भाजपा ने अपने दिल्ली के मौजूदा सातों सांसदों से कहा है कि ‘वे अभी से अपने क्षेत्रों में मजबूती से जम जाएं, वक्त-वक्त पर आलाकमान को अपनी रिपोर्ट सौंपे ताकि जहां जो कमी है उसे दूर करने के प्रयास किए जा सके।’ इसके अलावा सांसदों से विधानसभा वार उनके पसंदीदा व जिताऊ उम्मीदवारों की लिस्ट भी मांगी गई है ताकि जमीनी सर्वेक्षणों में उनकी जीत की संभावनाओं को टटोला जा सके। पार्टी ने अपने सभी मौजूदा सांसदों को ताकीद दी है कि ‘उनके लोकसभा के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों को विजयी बनाना उनका नैतिक दायित्व है।’

Advertisement
Author Image

Shera Rajput

View all posts

Advertisement
×