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शिक्षा बनी व्यापार

शिक्षा का उद्देश्य कल्याणकारी है, जिसकी व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है, शिक्षा को व्यवसाय बनाना बुरा नहीं है, लेकिन व्यापार बनाना बुरा है। क्योंकि तब लाभ कमाने की भावना जनकल्याण की भावना को निगल लेती है

03:48 AM Nov 19, 2022 IST | Aditya Chopra

शिक्षा का उद्देश्य कल्याणकारी है, जिसकी व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है, शिक्षा को व्यवसाय बनाना बुरा नहीं है, लेकिन व्यापार बनाना बुरा है। क्योंकि तब लाभ कमाने की भावना जनकल्याण की भावना को निगल लेती है

शिक्षा का उद्देश्य कल्याणकारी है, जिसकी व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है, शिक्षा को व्यवसाय बनाना बुरा नहीं है, लेकिन व्यापार बनाना बुरा है। क्योंकि तब लाभ कमाने की भावना जनकल्याण की भावना को निगल लेती है। शिक्षा मानवता के लिए है लेकिन हमने जो तरीका अपनाया है, वह गलत है। शिक्षा ने लोगों के बीच कई दीवारें खड़ी कर दी हैं। अमीर और गरीब की खाई बहुत चौड़ी हो चुकी है। माहौल ऐसा है कि बच्चों के मन में स्कूल या शिक्षक के प्रति कोई श्रद्धा नहीं रह गई, वहीं शिक्षा संस्थानों की बच्चों के प्रति कोई संवेदना नहीं रही है।
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शिक्षा का बाजारीकरण नर्सरी एडमिशन से लेकर उच्च शिक्षा तक हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश में निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस में बेतहाशा बढ़ौतरी करने पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि शिक्षा मुनाफा वाला व्यापार नहीं है। ट्यूशन फीस हमेशा वहन करने  योग्य होना चाहिए। हाल ही में शीर्ष अदालत ने आंध्र प्रदेश के निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस बढ़ाने का आदेश रद्द करने के फैसले को सही ठहराया बल्कि बढ़ी फीस की रकम वापस करने के आदेश को भी रद्द कर दिया। दरअसल आंध्रप्रदेश सरकार ने निजी मेडिकल कालेजों की फीस बढ़ाकर  24 लाख रुपए सालाना कर दी जो पिछली तय फीस से सात गुणा थी । कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि कॉलेज प्रबंधन गलत सरकारी आदेश के जरिए वसूली गई अतिरिक्त फीस रखने का अधिकारी नहीं है।
 दाखिलों में हेराफेरी  के मामले भी कोई नए नहीं हैं। उत्तर प्रदेश के आयुष कॉलेजों में फर्जी दाखिलों की खबर ने एक बार फिर सनसनी पैदा कर दी है। जिन 891 फर्जी छात्रों को धांधली कर दाखिला दिलाया गया उसमें सब से ज्यादा 516 फर्जी छात्रों को आयुर्वेद कॉलेजों में प्रवेश मिला। अब तक की जांच में सामने आया है कि काउंसलिंग की प्रक्रिया में बड़ा खेल हुआ है। नीट यूजी 2021 की महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा कार्यालय से मिली मैरिट लिस्ट को अपलोड करते समय उसके डाटा में फेरबदल किया गया। यह किस की शय पर हुआ अब इसकी तह तक सीबीआई पहुंचेगी। सरकारी कालेजों की सीट 5-5 लाख में बेची गई। जबकि निजी कॉलेजों की सीट 3-3 लाख में बेची गई नीट परीक्षा नहीं देने वाले 22 छात्र आयुष घोटाले की अहम कड़ी हो सकते हैं। जिन्होंने गैर परीक्षा दिए कालेजों में दाखिला ले लिया। एक तरफ महंगी शिक्षा और दूसरी तरफ फर्जी दाखिले हमारी शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं। यद्यपि फर्जी दाखिलों के संबंध में एक दर्जन से अधिक गिरफ्तारियां की जा चुकी हंै। उत्तर प्रदेश के होम्योपैथिक कालेजों में भी फर्जी दाखिलों का पर्दाफाश हुआ है। एक एमबीबीएस कालेज में छात्रों के लिए राज्य सरकार ने 10 लाख रुपए का बांड भरने की शर्त रखी जिसका छात्रों ने विरोध किया। प्राइवेट मेडिकल कालेज भी कई मदों के नाम पर भारी रकम वसूलते हैं। शिक्षा के हर कदम स्कूल कालेज और प्रति​ष्ठित प्रबंधन शिक्षा संस्थान किसी न किसी नेता से या तो सीधे संबंध रखते हैं या किसी और रास्ते से संबंध रखते हैं। इन शिक्षण संस्थानों की मार्किटिंग अच्छी होती है, क्योंकि उनके यहां आते ही प्रतिभावान छात्र और अमीरों के बच्चे ही हैं। यह संस्थान शिक्षा की भारी कीमत वसूलते हैं। जिन परिवारों के बच्चे कर्ज लेकर पढ़ते हैं। डाक्टर बनने के बाद उनकी सबसे पहली प्रा​थमिकता कर्ज चुकाना होती है। प्राइवेट नर्सिंग होमों या अस्पतालों में महंगे उपचार का एक बड़ा कारण यह भी है। भारी फीस के कारण हजारों छात्र यूक्रेन, रूस और मध्य एशिया के कई देशों में दाखिले लेने को मजबूर होते हैं जहां पढ़ाई काफी सस्ती है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते केन्द्र सरकार ने हजारों छात्रों को निकाल कर सराहनीय काम किया लेकिन अभी इन छात्रों का भविष्य अधर में है। यूक्रेन से हजारों छात्रों की देश वापसी से परिवारों को काफी राहत तो मिली लेकिन यह सवाल सबने उठाया कि भारत जैसे बड़े देश के हजारों छात्र यूक्रेन जैसे छोटे देश में क्यों जाते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में निजी संस्थान पेड सीट्स और कैपीटेशन फीस लेकर फलफूल रहे हैं। योग्य छात्रों को नजरअंदाज कर पैसे देने वालों को प्राथमिकता दी जा रही है। कोई ईमानदार नौकरी करके अपने बच्चों को डाक्टर नहीं बना सकता। यह मांग बार-बार उठ रही है कि देश में उच्च शिक्षा सस्ती हो लेकिन प्राइवेट शिक्षण संस्थानों के संचालकों की मनमानी रोकने में नियामक संस्थाएं बेदम नजर आती हैं। जिस से ​शिक्षा ढांचे में कोई सुधार नहीं हो पा रहा। चाहे स्कूली शिक्षा हो या उच्च शिक्षा दोनों में ही हम आदर्श स्थिति से बहुत दूर हैं। प्रतिभावान बच्चे परिवार का पेट काट-काट कर पढ़ाई करेंगे तो समाज को सस्ता इलाज कहां से मिलेगा। आज प्रवेश परीक्षा हो या नौकरियों के लिए परीक्षा पेपर लीक मा​िफया लगातार काम कर रहा है जिससे युवाओं में आक्रोश पनप रहा है। देश में पारदर्शी, गुणात्मक और जवाबदेह व्यवस्था कामय करने की जरूरत है। प्रतिभाओं का पलायन क्यों हो रहा है। इस का उत्तर स्पष्ट है कि देश में कोई कारगर व्यवस्था नहीं। नीति निर्माताओं को इस ओर गंभीरता के साथ सोचना होगा और सस्ती ​शिक्षा व्यवस्था कायम करनी होगी। शिक्षा के बाजारीकरण का अर्थ है ​शिक्षा को बाजार में बेचने खरीदने की वस्तु में बदल देना अर्थात शिक्षा आज समाज में एक वस्तु बन कर रही गई है और ​शिक्षा को मुनाफे की दृष्टि से चलाने वाले व्यापारी बन चुके हैं। अभिभावक भी शिक्षा के इन शोरूमों की चकाचौंध देखकर फंसते जा रहे हैं। वास्तविकता का पता उन्हें फंसने के बाद चलता है। सबसे बड़ा सवाल शिक्षा की गुणवत्ता का है। शिक्षा आज देश के ​लिए सबसे बड़ी चुनौती है। किसी भी राष्ट्र का ​भविष्य शिक्षा ही तय करती है। इसलिए शिक्षा का कौन सा रास्ता हमें अपनाना है यह तय करना बहुत जरूरी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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