चुनाव आयोग और राहुल गांधी
लोकसभा में विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के पिछले विधानसभा चुनावों में धांधली होने का आरोप लगाया है। वह अपना यह आरोप संसद से लेकर सड़क तक कई बार दोहरा भी चुके हैं। उनकी शिकायत पर चुनाव आयोग ने उनसे कहा है कि वह निजी तौर पर आयोग से आकर मिल सकते हैं और अपनी पूरी शिकायत रख सकते हैं। आयोग उनकी समस्या का हल निकालने की कोशिश करेगा मगर इस बीच आयोग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत में चुनाव पूरी तरह संवैधानिक तरीके से नियमानुसार होते हैं और उनकी पवित्रता व शुचिता पर अंगुली नहीं उठाई जा सकती है। मगर श्री गांधी का मूल आरोप यह है कि महाराष्ट्र के चुनावों में मतदाता सूचियों में धांधली की गई और नये वोटरों को बढ़ाया गया।
पहले गांधी कह रहे थे कि पिछले लोकसभा चुनावों और विधानसभा चुनावों के बीच महाराष्ट्र में इतने नये मतदाता जोड़े गये जितने पिछले पांच साल में भी नहीं जुड़ पाये थे। लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच का अन्तराल केवल पांच महीने था। अतः पांच महीने में इतने अधिक नये मतदाता पैदा हो गये जितने पिछले पांच साल में भी नहीं हुए थे। इस सन्दर्भ में श्री गांधी अलग-अलग मतदाता संख्या भी बताते रहे। मगर असली सवाल मतदाता संख्या का नहीं बल्कि चुनाव प्रणाली की शुचिता का है जो श्री राहुल गांधी के निशाने पर है और भारत की चुनाव प्रणाली के लिए यहीं गंभीर सवाल है। पहले विपक्ष ईवीएम से चुनाव कराये जाने को लेकर भी तरह- तरह के सवाल उठाता रहा है, खासकर कांग्रेस पार्टी।
इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने तो पिछले वर्ष घोषणा कर दी थी कि उनकी पार्टी पुनः बैलेट पेपर से चुनाव कराये जाने के लिए बाकायदा मुहीम चलायेगी। मगर इस मुद्दे पर विपक्ष संगठित दिखाई नहीं पड़ता है और इसकी मांग में कोई तारतम्यता भी नहीं है। जिन राज्यों में चुनाव होते हैं और अगर वहां विपक्ष जीत जाता है तो यह मांग दरकिनार हो जाती है और जहां विपक्ष हार जाता है वहां दोष ईवीएम पर मढ़ दिया जाता है। यह नजरिया किसी भी प्रकार से जायज नहीं कहा जा सकता। दरअसल भारत में ईवीएम से चुनाव कराने की शुरूआत कांग्रेस के राज में ही हुई थी और इस बारे में 80 के दशक के शुरू में संसद में चुनाव कानून जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 में संशोधन किया गया था। यह स्व. राजीव गांधी का शासनकाल था।
उस दौर में कम्प्यूटरीकरण टेक्नोलॉजी का खुमार सरकार के सिर चढ़कर बोल रहा था। इसी खुमारी में यह संशोधन विधेयक संसद में लाया गया था कि चुनाव आयोग बैलेट पेपर के स्थान पर ईवीएम मशीनों से भी चुनाव करा सकता है। एेसा इसलिए किया गया था जिससे चुनाव जल्दी सम्पन्न हो सकें और उनका परिणाम भी जल्दी घोषित हो सके। साथ ही जिस प्रकार मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने की घटनाएं होती हैं वे भी रुक सकें। इस मामले में कुछ तो असर हुआ मगर पूरी चुनाव प्रणाली की शुचिता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया क्योंकि मतदाता और प्रत्याशी के बीच ईवीएम मशीन तीसरी शक्ति के रूप में खड़ी हो गई।
खैर इस प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय में भी विचार हो चुका है और अब भी यह मामला विचाराधीन है। जहां तक श्री राहुल गांधी के आरोप का सवाल है तो वह चुनावी प्रकिया की प्रारम्भिक शुचिता से जुड़ा हुआ है। मतदान की शुचिता की पहली शर्त मतदाता सूची ही होती है। यदि इसमें ही गड़बड़ी की आशंका व्यक्त की जाने लगे तो पूरी प्रकिया सन्देहास्पद हो जाती है। अतः चुनाव आयोग ने अब यह फैसला किया है कि वह मतदाता सूचियों का पुनः सत्यापन करेगी। इस वर्ष के अन्त में बिहार विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और आयोग यहीं से यह शुरूआत करना चाहता है। इसके लिए इसने जो तन्त्र विकसित किया है उसमें 2003 के बाद जिन मतदाताओं के नाम सूचियों में जुड़े हैं उनके नाम-पतों व जन्मस्थान का सत्यापन किया जायेगा और पहले से सूचित मतदाताओं का भी पुनः सत्यापन होगा।
चुनाव आयोग का यह प्रयास स्वागत योग्य है। क्योंकि संविधान निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर ने भी मतदाता सूचियों को बनाने के काम को बहुत महत्ता दी थी और कहा था कि चुनाव आयोग की पूरी इमारत इसी मतदाता सूची पर खड़ी होती है। यदि इसकी नींव की ईंट ही गलत लग गई तो पूरी चुनाव प्रणाली शंका के घेरे में आ जायेगी। बाबा साहेब ने भारतीय लोकतन्त्र के जिस चौखम्भा राज की परिकल्पना की थी उसमें चुनाव आयोग ऐसा आधार स्तम्भ था जो अन्य तीन स्तम्भों विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका को खड़े होने की जमीन उपलब्ध करता है। यदि चुनावों के स्तर पर ही अशुद्धि का डर फैल जायेगा तो पूरे लोकतन्त्र की शुचिता ही खतरे में पड़ जायेगी। यही वजह है कि संविधान में चुनाव आयोग को सरकार के निरपेक्ष स्वतन्त्र व स्वायत्तशासी भूमिका दी गई और अधिकृत किया गया है कि यह सीधे संविधान से अधिकार लेकर अपना कार्य पूरी दक्षता, स्वतन्त्रता व निष्पक्षता के साथ करे और सीधे भारत के आम मतदाता के प्रति जवाबदेह बने। अतः राहुल गांधी की शिकायत का निराकरण इसी दृष्टि से होना चाहिए।