चुनाव आयोग का ‘सद् प्रयास’
चुनाव आयोग के आधार कार्ड से मतदाता सूची को जोड़ने के प्रयास का समर्थन इसलिए…
चुनाव आयोग के आधार कार्ड से मतदाता सूची को जोड़ने के प्रयास का समर्थन इसलिए किया जाना चाहिए क्योंकि आयोग सूची में किसी भी प्रकार की अनियमितता को दूर करना चाहता है और प्रत्येक वयस्क नागरिक के 18 साल से ऊपर हो जाने पर उसका नाम सूची में जोड़ना चाहता है। भारत में फिलहाल कुल 98 करोड़ के लगभग मतदाता पंजीकृत हैं जिनमें से 66 करोड़ के लगभग को अभी तक आधार कार्ड से जोड़ दिया गया है। इनमें से एक भी मतदाता ने अपना आधार कार्ड नम्बर चुनाव आयोग को देने में किसी भी प्रकार की आपत्ति दर्ज नहीं कराई है। सवाल यह है कि कोई भी मतदाता चुनाव आयोग को अपना आधार कार्ड नम्बर देने से क्यों गुरेज करे? जबकि वह जानता है कि ऐसा करके उसकी निजता किसी भी प्रकार से भंग नहीं होगी क्योंकि उसकी निजी जानकारियां पहले से ही आधार कार्ड के माध्यम से सरकार के पास हैं। बेशक आधार कार्ड बनाने का अधिकार देश की एकल समीकृत पहचान प्रपत्र जारी करने वाली संस्था ‘उदय’ के पास है।
सोचने वाली बात यह है कि जब कोई भी व्यक्ति कोई भी मोबाइल फोन लेते समय अपना आधार कार्ड नम्बर दे सकता है तो उसे चुनाव आयोग को देने में क्यों हिचकिचाहट होनी चाहिए? फिर भी आयोग ने प्रस्ताव किया है कि यदि कोई मतदाता अपना आधार कार्ड नम्बर देने से परहेज करता है तो उसे व्यक्तिगत रूप से मतदाता पंजीकरण अधिकारी के सामने पेश होकर इसकी वजह बतानी होगी। पहले यह व्यवस्था की गई थी कि यदि कोई मतदाता अपने आधार कार्ड की जानकारी देने से मना करता है तो उसे आयोग के फार्म 6 बी में बताना होगा कि वह एेसा क्यों करना चाहता है। अब आयोग ने इसमें संशोधन किया है और वह चाहता है कि मतदाता स्वयं उपस्थित होकर इसका कारण पंजीकरण अधिकारी को बताये। चुनाव आयोग कोशिश कर रहा है कि आधार कार्ड देना स्वैच्छिक बने क्योंकि इससे किसी भी मतदाता को हानि नहीं पहुंचती है।
अगर हम इसे वृहद स्वरूप में देखें तो त्रुटिहीन मतदाता सूची के लिए यह बहुत जरूरी भी है। इसके जरिये मतदाता सूची में किसी भी नाम का दोहरीकरण रुकेगा और चुनावी कार्ड सीधे उसके आधार कार्ड से जुड़ जायेगा। भारत के संविधान ने चुनाव आयोग को पूरे देश में स्वतन्त्र व निष्पक्ष साफ-सुथरे चुनाव कराने का अधिकार दिया हुआ है। अपने इसी प्रयास में यदि वह आगे बढ़ना चाहता है तो इसका अनावश्यक विरोध क्यों किया जाये? जब भारत में उदय द्वारा आधार कार्ड बनाने का काम किया जा रहा था तो तब भी कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति दर्ज की थी मगर उनकी आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं, अतः आज पूरे देश के लोगों के पास आधार कार्ड है। कम से कम उन लोगों के पास तो है ही जिनकी उम्र 18 साल के आसपास है। चुनाव आयोग ऐसी स्वतन्त्र व स्यात्तशासी संस्था है जो संविधान से शक्ति लेकर अपना कार्य निर्भयता पूर्वक करती है। सरकारों का उसके साथ सहयोग करना लाजिमी है।
भारत में प्रत्येक नागरिक को एकल पहचान पत्र देने की मांग भी एक जमाने से उठती रही थी और 1999 से 2004 तक केन्द्र में रही वाजपेयी सरकार के गृहमन्त्री श्री लाल कृष्ण अडवानी ने उस समय संसद में खड़े होकर ही यह कहा था कि देश के नागरिकों को एेसा एकल पहचान पत्र दिये जाने की जरूरत है जिसमें उसके बारे में सब प्रकार की जानकारी उपलब्ध हो। वाजपेयी सरकार 2004 में बिदा हो गई और केन्द्र में स्व. डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार गठित हुई। इस सरकार ने श्री अडवानी के इस विचार का समर्थन ही किया और अपने कार्यकाल में आधार कार्ड बनाने के लिए उदय संस्था का गठन किया जिसने देशवासियों का आधार कार्ड बनाने का काम किया। जब यह आधार कार्ड नम्बर पासपोर्ट से लेकर बैंक खातों तक से जुड़ा हुआ है तो चुनाव आयोग को इसे देने में किसी भी व्यक्ति को आपत्ति क्यों हो? इसके बावजूद 2023 में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने इस सम्बन्ध में चल रहे एक मुकदमे में फैसला दिया कि आधार कार्ड नम्बर देना स्वैछिक नहीं बल्कि ऐच्छिक होना चाहिए। चुनाव आयोग की कोशिश है कि यह स्वैछिक बने जिससे उसे मतदाता सूचियां त्रुटिहीन बनाने में मदद मिले इसीलिए वह फार्म 6बी के माध्यम से ऐसे उपाय करना चाहता है जिससे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान भी हो और जो मतदाता आधार कार्ड से अपना चुनावी कार्ड नहीं जुड़वाना चाहते हैं उन्हें आपत्ति दर्ज करने का अवसर भी मिले।
चुनाव आयोग का यह प्रयास साफ-सुथरे चुनाव कराने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि अक्सर यह शिकायत की जाती है कि सब कुछ वैध होने के बावजूद कुछ मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में नहीं पाये जाते हैं। आधार कार्ड नम्बर जुड़ने से यह शिकायत खुद-ब-खुद समाप्त हो जायेगी क्योंकि कोई भी वयस्क मतदाता अपना आधार कार्ड दिखा कर अपने जायज मतदाता होने का प्रमाण दे सकता है। इससे हाल ही में प. बंगाल की मतदाता सूची में दोहरे पंजीकरण का विवाद भी समाप्त हो जायेगा क्योंकि किसी भी मतदाता के पास यदि दोहरा अवैध आधार कार्ड है तो वह पकड़ में आ जायेगा। इसके साथ ही हमें यह भी सोचना चाहिए कि भारत की चुनाव प्रणाली को किसी भी शंका या शक से ऊपर रखने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर ही है। चुनावों के माध्यम से वह जो लोकतांन्त्रिक जमीन तैयार करता है उसी के ऊपर पूरी लोकतान्त्रिक व्यवस्था खड़ी होती है। हमारे संविधान निर्माताओं ने इसी वजह से चुनाव आयोग को सरकार का अंग नहीं बनाया जिससे उस पर कोई भी राजनैतिक दल सत्ता में काबिज होने पर अपना रूआब गालिब न कर सके। इसलिए चुनाव आयोग के इस प्रयास को राजनैतिक समर्थन भी मिलना चाहिए।