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लोकतान्त्रिक नेपाल में चुनाव

आज नेपाल में राष्ट्रीय संसद व राज्यों के चुनाव हो रहे हैं। भारत के पड़ोसी होने के अलावा दोनों देशों के बीच के प्रगाढ़ सांस्कृतिक दोस्ताना सम्बन्ध होने की वजह से इन चुनावों का भारत के लिए भी कम महत्व नहीं है क्योंकि भारत व नेपाल सगे भाई-भाई जैसे ही समझे जाते हैं

12:11 AM Nov 20, 2022 IST | Aditya Chopra

आज नेपाल में राष्ट्रीय संसद व राज्यों के चुनाव हो रहे हैं। भारत के पड़ोसी होने के अलावा दोनों देशों के बीच के प्रगाढ़ सांस्कृतिक दोस्ताना सम्बन्ध होने की वजह से इन चुनावों का भारत के लिए भी कम महत्व नहीं है क्योंकि भारत व नेपाल सगे भाई-भाई जैसे ही समझे जाते हैं

लोकतान्त्रिक नेपाल में चुनाव
आज नेपाल में राष्ट्रीय संसद व राज्यों के चुनाव हो रहे हैं। भारत के पड़ोसी होने के अलावा दोनों देशों के बीच के प्रगाढ़ सांस्कृतिक दोस्ताना सम्बन्ध होने की वजह से इन चुनावों का भारत के लिए भी कम महत्व नहीं है क्योंकि भारत व नेपाल सगे भाई-भाई जैसे ही समझे जाते हैं। बेशक नेपाल एक छोटा व पहाड़ी देश है मगर आजादी के बाद से ही इसकी राष्ट्रीय सुरक्षा व विदेश सम्बन्धों का निर्धारण एक लम्बी अवधि तक भारत की घोषित नीतियों के तहत होता ही रहा है। यह बेवजह नहीं है कि भारतीय सेना के जनरल को नेपाल सेना का भी यही मानद पद दिया जाता है। 2008 तक यह विश्व का एकमात्र घोषित ‘हिन्दू राष्ट्र’ था और यहां राजशाही कायम थी। परन्तु इसी वर्ष में जनान्दोलन के चलते इस देश में लोकतन्त्र आया और बहुदलीय राजनैतिक प्रशासनिक व्यवस्था कायम हुई। परन्तु इस बहुदलीय व्यवस्था के अन्तर्गत नेपाल में स्थायित्व नहीं आ सका, इसकी वजह देश में कम्युनिस्ट पार्टी का बढ़ा हुआ प्रभाव व चीन के साथ बनते विशिष्ट सम्बन्धों का भी रहा है।
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देश के कम्युनिस्ट आन्दोलनों ने राजशाही के खालफ विद्रोह का माहौल तो तैयार किया परन्तु राजनैतिक क्षेत्र में भी पारंपरिक नेपाली नीतियों को बदलने का प्रयास किया जिसकी वजह से इस देश में राजनैतिक स्थायित्व पैदा होने में कठिनाई भी हुई। भारत का 1947 से ही यह प्रयास रहा कि नेपाल का विकास वहां के लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप इस प्रकार हो कि उन्हें अपना देश वैज्ञानिक युग में प्रवेश करता दिखे। इसी वजह से भारत के सहयोग से यहां विविध विकास कार्य सड़क निर्माण से लेकर हवाई अड्डों तक के निर्माण का हुआ। भारत प्रारम्भ से ही नेपाल की अर्थव्यवस्था में सहायक व उत्प्रेरक दोनों की ही भूमिका निभाता चला आ रहा है, परन्तु लोकतन्त्र स्थापित होने के बाद जिस प्रकार चीन की तरफ झुकी हुई कम्युनिस्ट पार्टियों ने भारत विमुख रुख अख्तियार करना शुरू किया उसका सबसे अधिक नुकसान नेपाली जनता को ही भुगतना पड़ा। यहां लोकतन्त्र स्थापित करने में भी भारत की सकारात्मक भूमिका को कोई अनदेखा नहीं कर सकता है। नेपाल का संविधान बनाने से लेकर पारदर्शी व जवाबदेह चुनाव प्रणाली स्थापित करने के साथ निष्पक्ष न्यायपालिका के गठन में भी भारत की ही प्रमुख भूमिका रही है। अतः यह बेवजह नहीं है कि जब रविवार को नेपाल के एक करोड़ 80 लाख मतदाता मतदान करेंगे तो भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त श्री राजीव कुमार नेपाल में ही होंगे और वह चुनावों की शुचिता का ध्यान रखेंगे। इसकी भी एक वजह है कि क्यों भारत ने नेपाल में वहां के लोगों की इच्छानुसार लोकतन्त्र की स्थापना के लिए सभी आवश्यक उपकरण उपलब्ध कराने में सहयोग किया?
जब 2008 में नेपाल में राजशाही के खात्मे का आंदोलन चरम पर था और वहां के महाराजा ने भारत की मदद मांगी थी तो भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह फ्रांस की यात्रा पर थे और उनकी अनुपस्थिति में विदेश मन्त्री श्री प्रणव मुखर्जी के पास कार्यकारी प्रधानमन्त्री के अधिकार थे। नेपाल के महाराजा की ओर से जब भारत से यह पूछा गया कि वह क्या चाहता है तो श्री मुखर्जी ने उत्तर भिजवाया कि भारत वही चाहता है जो नेपाल की जनता चाहती है? अतः नेपाल में लोकतन्त्र की स्थापना में कोई बड़ी बाधा नहीं आ पाई और सत्ता का हस्तांतरण भी सरलता के साथ हो गया। यह श्री मुखर्जी की दूरदर्शिता थी कि उन्होंने नेपाल के आन्तरिक मामले में हस्तक्षेप करने से साफ इनकार करते हुए वहां के लोगों की इच्छा का सम्मान किया। परन्तु इसके बाद जिस तरह कम्युनिस्ट गुटों में खींचतान हुई और यहां की कम्युनिस्ट पार्टियों ने सत्ता हथियाने के लिए चीनी समर्थन तक की दरकार की उससे नेपाली जनता का भ्रम टूटा और उन्होंने अपने देश की मूल राजनैतिक पार्टी नेपाली कांग्रेस को तरजीह देनी शुरू की।
कम्युनिस्टों की पिछली के.पी. शर्मा ओली सरकार ने भारत के साथ सीमा विवाद तक को तूल देना शुरू किया जिसकी कल्पना कोई भारतीय सपने मेें भी नहीं कर सकता था। फिलहाल नेपाल में शेर बहादुर देउबा की नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबन्धन सरकार है और विपक्ष में पूर्व प्रधानमन्त्री के.पी. शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी नीत गठबन्धन है। इस गठबन्धन ने हालांकि हिन्दू राष्ट्रवादी कही जाने वाली राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातन्त्र पार्टी भी है और कई छोटे-छोटे तराई इलाके के क्षेत्रीय दल भी हैं मगर असली वर्चस्व श्री ओली की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी- युनाइटेड मार्क्सवादी लेनिनवादी का ही है। इसी प्रकार सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस के गठबन्धन में नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व में दो कम्युनिस्ट पार्टियां हैं। ये पूर्व प्रधानमन्त्री पुष्प कुमार दहल उर्फ प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी सेन्टर व माधव सिंह नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी एकीकृत समाजवादी हैं। नेपाल की संसद मेें कुल 275 सीटें हैं जिनमें से 165 सीटों पर प्रत्यक्ष चुनाव होगा और शेष पर मतदाता अपनी वरीयता की पार्टी को वोट देंगे। इसी प्रकार राज्यों के चुनाव में कुल 550 सीटें हैं जिनमें से 330 पर चुनाव प्रत्यक्ष रूप से खड़े हुए प्रत्याशियों के बीच होगा और शेष 220 सीटों पर वरीयता की पार्टी को वोट दिया जायेगा। प्रत्येक मतदाता चार अलग-अलग बैलेट बक्सों में चार वोट डालेगा। राष्ट्रीय संसद के प्रत्याशियों के लिए एक वोट व पार्टियों के लिए एक वोट जबकि राज्य परिषदों के लिए भी एेसा ही होगा। नेपाल में प्रत्यक्ष व अनुपातिक हिसाब से संसद व राज्य परिषदों की सीटें भरी जाती हैं।  इस देश में 2015 से नया संविधान लागू हुआ है जिसके अपनाये जाने पर भी भारी विवाद हुआ था औऱ बाद में न्यायपालिका व संसद के बीच तक तनातनी हो गई थी। 2008 के बाद यह 11वीं सरकार होगी। अपेक्षा की जानी चाहिए कि इन चुनावों के बाद नेपाल में राजनैतिक स्थायित्व आयेगा।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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