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विरोधाभास खत्म कर करें चुनौतियों का सामना

यूं तो जीवन विरोधाभासों से भरा पड़ा है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए विरोधाभासों को खत्म कर चुनौतियों का मुकाबला करना ही पड़ता है।

12:32 AM Jun 17, 2020 IST | Aditya Chopra

यूं तो जीवन विरोधाभासों से भरा पड़ा है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए विरोधाभासों को खत्म कर चुनौतियों का मुकाबला करना ही पड़ता है।

यूं तो जीवन विरोधाभासों से भरा पड़ा है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए विरोधाभासों को खत्म कर चुनौतियों का मुकाबला करना ही पड़ता है। कोरोना वायरस से बचाव के चलते लगाए गए लॉकडाउन और बाद में अनलॉक-वन ने भी कई विरोधाभास खड़े कर दिए हैं। मुम्बई में आवश्यक सेवाओं से जुड़े लोगों के लिए लाईफ लाइन यानि लोकल ट्रेनें भी शुरू हो चुकी हैं। बेस्ट की बसें भी चलाई जा रही हैं। कोलकाता में ट्राम सेवाएं भी सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कर चलने लगी हैं। राजधानी दिल्ली में भी बस सेवाएं चलाई जा रही हैं। हालांकि बसों की संख्या काफी सीमित है। घरेलू उड़ानें भी शुरू हो चुकी हैं। 
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मुम्बई हाईकोर्ट ने विमानों में बीच वाली सीट पर भी यात्रियों को बैठाने की अनुमति दे दी है। हालांकि पहले इस पर आपत्ति की गई और एयरलाइनों को कहा गया था कि विमानों में बीच वाली सीट खाली छोड़ी जाए ताकि सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन किया जा सके। राज्यों में शराब की दुकानें खोलने को लेकर भी काफी विरोधाभास रहा है। मजदूरों के पलायन और उनकी घर वापसी को लेकर भी विरोधाभास कम नहीं रहा है। एक तरफ देश खुल रहा है तो दूसरी तरफ चेन्नई में 30 जून तक फिर पूर्ण लॉकडाउन लगा दिया गया। लॉकडाउन और अनलॉक ने रोजमर्रा की जिन्दगी काे बोझिल और नीरस बनाया है। लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें क्या न करें। यह सही है कि राज्य सरकारों को स्थितियों के हिसाब से फैसले लेने का हक है और कंटेनमैंट जोन में सख्ती से नियमों का पालन कराना भी उसकी जिम्मेदारी है तो लोगों को भी अपनी जान बचाने के लिए नियमों का पालन करना चाहिए। हम सभी के जीवन का एक ही अर्थ होता है। कोरोना वायरस जीवन के उस मायने को समझाने में हमारी मदद कर सकता है। वह हमारे जरिये खुद की जंग लड़ रहा है और हम खुद को बचाने की जंग लड़ रहे हैं। हमारी जागरूकता ही हमें अलग बना सकती है। सोशल मीडिया अब सोशल हो चुका है। जितना भय कोरोना काल में उसने पैदा किया है, उतना किसी ने नहीं किया है।
हर समय लोगों का मन डरा और अशांत रहने लगा है। अब जबकि यह स्पष्ट हो चुका है कि हमें कोरोना के साथ जीना है तो फिर खुद पर डर को हावी नहीं होने देना चाहिए। सोशल मीडिया पर दोबारा लॉकडाउन की अफवाह फैलने से लोगों में तनाव साफ दिखाई दिया और कुछ क्षेत्रों में तो लोग दुकानों की तरफ रोजमर्रा की चीजों को खरीदने पहुंच गए। शाम तक अफवाह की धुंध छंट गई और लोग सामान्य हुए। ऐसी परिस्थितियों में सरकारों को भी लोगों के दिलों का भय खत्म करने के प्रयास करने होंगे। जब तक समाज में भय बना रहेगा तब तक आर्थिक गतिविधियां भी सुस्त बनी रहेंगी। भय खत्म होगा तो लोग खुद को सम्भाल सकेंगे। अपनी और दूसरों की मदद कर सकेंगे। लोगों को चाहिए कि अब अपने जीवन को नया अर्थ देंगे। तन और मन को शांत रखकर अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का ध्यान रखें। इस दौर में सकारात्मक सोच बनाए रखना बहुत जरूरी है।
कोरोना से देश की अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित हुई है। बाजार दाएं और बाएं में उलझा पड़ा है। भीड़ उमड़ी तो पुलिस ने कई जगह लाठियां फटकारीं। कुछ लोग अभी भी दुविधा में हैं और दुकानें नहीं खोल रहे। शापिंग माल्स भी खुल गए हैं लेकिन ग्राहक नजर नहीं आ रहे।
सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि लोगों के मन में से खौफ को कैसे दूर किया जाए। बेहतर होगा कि देशभर में आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिए स्पष्ट एवं एक समान दिशा-निर्देश जारी किए जाएं। आप अर्थव्यवस्था को टुकड़ों-टुकड़ों में नहीं चला सकते। अर्थव्यवस्था से जुड़ी हर चीज एक-दूसरे की कड़ी है। माल के उत्पादन, सप्लाई, बाजार और खरीददार का संबंध अटूट है। उद्योग और मजदूरों का संबंध एक-दूसरे के पूरक हैं। मजदूरों के गांव और शहर छोड़ देने से श्रम का संकट पैदा हो चुका है। अगर काम-धंधे ठप्प रहे तो संकट और भी गहरा जाएगा। बेहतर यही होगा कि बचाव को अपनाते हुए हम अपना काम शुरू कर दें। हमें चिंतित होना चाहिए, भयभीत नहीं। राज्यों सरकारों को हैल्थ सैक्टर का ढांचा तेजी से विकसित करना चाहिए ताकि लोगों का उस पर भरोसा कायम हो सके। अगर चीन दस दिन में एक अस्पताल खड़ा कर सकता है तो भारत क्यों नहीं। लोगों के भय को दूर करने के लिए भी सरकारों को कदम उठाने होंगे ताकि देश पटरी पर आ सके।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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