यूनिफाइड पेंशन स्कीम में कर्मचारियों के हित सर्वोपरि
कर्मचारियों से जुड़ा हर छोटा- बड़ा मुद्दा चर्चा का केंद्र बिंदु होता है…
कर्मचारियों से जुड़ा हर छोटा- बड़ा मुद्दा चर्चा का केंद्र बिंदु होता है, ऐसे में यूनिफाइड पेंशन स्कीम यानी यूपीएस फिर से एक बार चर्चाओं में है। केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को एनपीएस के तहत यूनिफाइड पेंशन स्कीम यानी एनपीएस का विकल्प पेश किया है। इसे लेकर अधिसूचना जारी कर दी गई है। यूपीएस सरकार की नई स्कीम है। यह स्कीम अगस्त 2024 में घोषित की गई थी। नई पेंशन स्कीम उन कर्मचारियों के लिए है जो पहले से ही एनपीएस में हैं। यह ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) और नेशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) दोनों के फायदे मिलाकर बनाई गई है। इससे कर्मचारियों को निश्चित पेंशन मिलेगी। सरकार का कहना है कि इससे कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद अच्छा जीवन जीने में मदद मिलेगी। यह योजना आगामी 1 अप्रैल काे लागू होगी।
सेवानिवृत्त यानी सुपर एन्यूएशन के बाद मिलने वाली पेंशन सामाजिक सुरक्षा का महत्वपूर्ण भाग है। देशभर में सरकारी कर्मचारियों की तरफ से मांग आती रही कि नई पेंशन स्कीम यानी एनपीएस में सुधार किए जाएं। अप्रैल 2023 में डॉ. सोमनाथन की अध्यक्षता में इस पर समिति बनी और सौ से ज्यादा कर्मचारी संगठनों-यूनियन के साथ विस्तार से सलाह-मशविरा किया गया। रिजर्व बैंक से बात की गई। राज्यों के वित्त सचिव, राजनीतिक नेतृत्व, कर्मचारी संघों ने अपने सुझाव दिए। इसके बाद समिति ने एकीकृत पेंशन योजना की सिफारिश की थी।
पीएम मोदी के केंद्रीय कैबिनेट ने 24 अगस्त 2024 को करीब 2,300,000 केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के लिए नई पेंशन नीति को मंजूरी दी थी। इस कैबिनेट बैठक में इसको लेकर एक आउटलाइन प्रस्तुत की गई, जिसमें सुनिश्चित किया गया कि मूल वेतन का 50 प्रतिशत हिस्सा मासिक भुगतान के रूप में कर्मचारियों को मिलेगा। एक तरह से यह पुरानी पेंशन स्कीम की तरह ही होगी लेकिन अंतर सिर्फ इतना होगा कि ओपीएस में जहां कर्मचारियों को योगदान नहीं देना होता था, यूपीएस में नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) की तर्ज पर ही 10 प्रतिशत योगदान देना होगा। यूपीएस के लिए कर्मचारियों को कोई भी अतिरिक्त योगदान नहीं देना होगा, जबकि केंद्र सरकार की तरफ से पेंशन फंड में योगदान मौजूदा 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 18.5 प्रतिशत कर दिया गया है। यह साल दर साल महंगाई दर आदि के कारण बढ़ता रहेगा। इससे केंद्र पर वर्ष 2025-26 के दौरान ही 6,250 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार एनपीएस लेकर आई थी। यूपीएस 21 साल पुरानी एनपीएस व्यवस्था में बदलाव का प्रतीक है। यूपीएस पुरानी पेंशन स्कीम और एनपीएस के फायदों को मिलाकर तैयार की गई है। यह सरकारी कर्मचारियों को अंतिम वेतन का 50 फीसदी पेंशन के रूप में प्रदान करती है। कर्मचारियों को महंगाई भत्ता, फैमिली पेंशन और एकमुश्त भुगतान जैसे लाभ भी मिलेंगे। एनपीएस के तहत आने वाले कर्मचारियों को यूपीएस चुनने का विकल्प दिया जाएगा। सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए भी यूपीएस के तहत लाभ का प्रावधान है।
एनपीएस के तहत पेंशन फंड में सरकार 14 प्रतिशत देती है तो कर्मचारी अपने वेतन और महंगाई भत्ता का 10 प्रतिशत का योगदान देता है। इस पूरे फंड को कर्मचारी अपने हिसाब से मैनेज कर सकता है। मतलब उस फंड का पैसा कहां लगेगा, यह कर्मचारी तय कर सकता है। यूपीएस में 10 प्रतिशत कर्मचारी तो 18.5 प्रतिशत सरकार अपना योगदान देगी। सूत्रों के मुताबिक कर्मचारी इस 28.5 प्रतिशत में से 20 प्रतिशत फंड को मैनेज कर सकेगा, बाकी के 8.5 प्रतिशत फंड को सरकार अपने हिसाब से मैनेज करेगी। इस वजह से भविष्य में सरकार पर पेंशन का भार कम आएगा।
ओपीएस में इस प्रकार के फंड की कोई व्यवस्था नहीं थी और सरकार ही पूरी तरह से कर्मचारियों की पेंशन का बोझ उठाती थी। आगामी एक अप्रैल से लागू होने वाली यूपीएस में नौकरी के अंतिम वर्ष के औसत सैलरी का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में निर्धारित होगा। जबकि ओपीएस में अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत निर्धारित किया जाता था। यहां पर थोड़ा अंतर है क्योंकि अंतिम वर्ष में प्रमोशन मिलने पर सैलरी अगर बढ़ जाती है तो उस सैलरी का 50 प्रतिशत पेंशन नहीं मिलकर उस साल के औसत वेतन का 50 प्रतिशत निर्धारित होगा। एनपीएस में पेंशन की कोई सीमा निर्धारित नहीं थी और यह राशि कुछ भी हो सकती थी।
जानकारों का कहना है कि यूपीएस पुरानी पेंशन योजना से काफी मिलती-जुलती है। इस योजना के तहत कर्मचारी की मृत्यु होने पर उनके परिवार को पेंशन का 60 फीसदी फैमिली पेंशन के रूप में दिया जाएगा। रिटायरमेंट के समय कर्मचारियों को ग्रेच्युटी के अलावा एकमुश्त भुगतान भी मिलेगा। यदि कोई कर्मचारी कम से कम 10 साल तक केंद्र सरकार की नौकरी करता है तो उसे न्यूनतम 10,000 रुपये प्रति माह पेंशन मिलेगी। अधिसूचना में स्पष्ट किया गया है कि जो कर्मचारी यूपीएस का विकल्प चुनते हैं, वे किसी अन्य नीतिगत रियायत, नीतिगत बदलाव, वित्तीय लाभ या भविष्य में सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों के साथ किसी भी तरह की समानता का दावा नहीं कर सकेंगे। यूपीएस चुनने वाले कर्मचारियों के रिटायरमेंट फंड में दो हिस्से होंगे- एक व्यक्तिगत फंड, जिसमें कर्मचारी का योगदान और सरकार का समान योगदान होगा। दूसरा, पूल फंड, जिसमें सरकार का अतिरिक्त योगदान होगा।
योजना के तहत 25 साल की सेवा पूरी करने पर, सुपरएनुएशन से पहले के 12 महीनों के औसत बेसिक पे का 50 फीसदी सुनिश्चित पेंशन के रूप में मिलेगा। इसके अलावा, 25 साल से कम सेवा पर, पेंशन की राशि सेवा के अनुपात में दी जाएगी। वहीं, 10 या अधिक वर्षों की सेवा के बाद सेवानिवृत्ति होने पर न्यूनतम 10,000 रुपये प्रति माह की पेंशन मिलेगी। जबकि, पेंशनधारी की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी/पति को पेंशन का 60 फीसदी हिस्सा दिया जाएगा। वहीं महंगाई पेंशनधारकों और उनके परिवारों को पेंशन के साथ दी जाएगी। यह महंगाई भत्ते की तरह ही काम करेगा और पेंशन शुरू होने के बाद लागू होगा।
सुपरएनुएशन के समय कर्मचारी को बेसिक पे और महंगाई भत्ते का 10 फीसदी हर 6 महीने की सेवा के लिए लंप-सम भुगतान के रूप में दिया जाएगा। वहीं यूपीएस के तहत दो कॉर्पस बनाए जाएंगे। पहला, व्यक्तिगत कॉर्पस, जिसमें कर्मचारी और सरकार दोनों का योगदान होगा और दूसरा पूल कॉर्पस, जिसमें अतिरिक्त सरकारी योगदान होगा। इसके अलावा कर्मचारी अपने बेसिक पे और महंगाई भत्ते का 10 फीसदी योगदान देंगे और सरकार भी समान योगदान देगी। इसके अलावा सरकार पूल कॉर्पस के लिए 8.5 फीसदी अतिरिक्त योगदान देगी।
यूपीए के तहत कर्मचारियों को महंगाई इंडेक्सेशन का फायदा मिलेगा। मतलब महंगाई के हिसाब से डियरनेस रिलीफ का पैसा मिलेगा जो कि ऑल इंडिया कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स फॉर इंडस्ट्रियल वर्कर्स पर आधारित होगा। ग्रैच्युटी के अलावा कर्मचारियों को रिटायरमेंट पर एक एकमुशत रकम भी दी जाएगी। इसका कैल्कुलेशन कर्मचारियों के हर 6 महीने की सेवा पर मूल वेतन और महंगाई भत्ते के 10वें हिस्से के रूप में किया जाएगा। विपक्ष के राजनीतिक दल और कुछ कर्मचारी संगठन इस स्कीम को लेकर भ्रम फैला रहे हैं कि इस स्कीम से कर्मचारियों को नुक्सान होगा लेकिन मोदी सरकार ने कर्मचारियों के हितों को सर्वोपरि रखा है। कर्मचारियों को इस मामले में विपक्ष की ओर से भड़काने और भ्रमित करने की कोशिशें की जा रही हैं लेकिन कर्मचारियों काे पता है कि उनका भला किसके साथ है। इसलिये वो चुप हैं। अब यह देखना अहम होगा कि आने वाले दिनों में इस पर किस तरह की राजनीति होती है। वहीं कर्मचारी संगठनों की प्रतिक्रियाओं पर भी सबकी नजर रहेगी।