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प्रवेश परीक्षाएं : जीवन चलने का नाम

कोरोना वायरस के चलते जितना नुक्सान शिक्षा के क्षेत्र का हुआ है उसकी भरपाई होना काफी मुश्किल लगता है। स्कूलों और कालेजों को खोलने और शिक्षा के तौर-तरीकों पर विचार किया जा रहा है।

12:00 AM Aug 23, 2020 IST | Aditya Chopra

कोरोना वायरस के चलते जितना नुक्सान शिक्षा के क्षेत्र का हुआ है उसकी भरपाई होना काफी मुश्किल लगता है। स्कूलों और कालेजों को खोलने और शिक्षा के तौर-तरीकों पर विचार किया जा रहा है।

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प्रवेश परीक्षाएं   जीवन चलने का नाम
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कोरोना वायरस के चलते जितना नुक्सान शिक्षा के क्षेत्र का हुआ है उसकी भरपाई होना काफी मुश्किल लगता है। स्कूलों और कालेजों को खोलने और शिक्षा के तौर-तरीकों पर विचार किया जा रहा है। परीक्षाओं के मामले अभी तक उलझे पड़े हैं। दरअसल हम तय नहीं कर पा रहे कि हमने कोरोना का भय खत्म कर आगे कैसे बढ़ना है। कोरोना के भय से अभिभावक अभी भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने को तैयार नहीं। कालेजों और विश्वविद्यालयों में अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षाओं का आयोजन करने की भी तैयारी चल रही है लेकिन उनके पाठ्यक्रम ही पूरे नहीं हुए हैं। ​बिना परीक्षा के डिग्रियां बांटने का औचित्य नजर नहीं आ रहा। कालेजों और विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राएं  अंतिम वर्ष में प्राप्त किए गए अंकों के आधार पर ही अपने करियर का चयन करते हैं। बिना परीक्षा के प्रतिभाओं की मेधा शक्ति की पहचान नहीं हो सकती। इसलिए परीक्षाएं भी जरूरी हैं। अब मसला सामने आया है जेईई और नीट परीक्षाओं का। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों फैसला सुनाया था कि ये प्रवेश परीक्षाएं तय समय पर होंगी। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि ‘‘जीवन ठहर नहीं सकता, इसलिए कोरोना से बचाव के सभी उपायों के साथ आगे बढ़ना है।’’ कोर्ट ने यह भी कहा है ​कि छात्रों के लिए एक वर्ष बहुत महत्वपूर्ण होता है। एक वर्ष को गंवाने का अर्थ बड़ा नुक्सान होता है और छात्र स्वयं इस बात का मूल्यांकन करें। इस फैसले के बाद नेशनल टैस्टिंग एजैंसी ने इन परीक्षाओं की डेटशीट भी घोषित कर दी। 50 फीसदी से अधिक छात्रों ने अब भी इन परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग की है। तेलंगाना, बिहार, आंध्र प्रदेश, असम और अन्य राज्य बाढ़ की चपेट में हैं। सार्वजनिक परिवहन सेवाएं भी नाम मात्र की चल रही हैं। इन राज्यों के लोग खुुद को कोरोना और बाढ़ से बचाने में जुटे हैं। उनकी जिन्दगी काफी दुश्वार हो चुकी है। ऐसी स्थिति में छात्र मानसिक रूप से परीक्षा देने की स्थिति में नहीं। अब हजारों छात्रों ने अपनी बात केन्द्र सरकार तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया पर जोरदार अभियान शुरू किया है। नेशनल टैस्टिंग एजैंसी विभिन्न राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश एवं पात्रता परीक्षाएं आ​यो​जित करती है। इनमें से अधिकांश परीक्षाएं मार्च और जून में हर वर्ष हो जाती हैं। इस बार कोरोना महामारी के चलते ये परीक्षाएं करवाई नहीं जा सकीं। छात्रों के सोशल मीडिया पर ​अभियान को बड़ी संख्या में समर्थन मिल रहा है। छात्रों ने यह मांग भी की है कि मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा जेईई-मेन की परीक्षाओं की डेट आगे बढ़ा दी जाए। अधिकारियों का कहना है कि छात्रों की जो आशंकाएं हैं उसे पहले ही दूर कर दिया गया। कोविड-19 के दौर में सुरक्षित तरीके से परीक्षा लेने के लिए हर जरूरी इंतजाम किए गए हैं। छात्रों को अपनी पसंद के परीक्षा केन्द्र दिए गए हैं। दूसरी तरफ छात्रों का कहना है कि दूरदराज और अति पिछड़े क्षेत्रों के छात्रों को परीक्षा केन्द्रों तक पहुंचना आसान नहीं होगा। अगर डेट दो माह आगे बढ़ा दी जाए तो उन्हें बहुत राहत मिलेगी। कुछ ऐसे छात्र भी सामने आए हैं जिनका तर्क है कि दो महीने बाद हालात पूरी तरह सामान्य हो जाएंगे, इस बात की कोई गारंटी नहीं, इसलिए एहतियात के साथ परीक्षा करवाना ही सही होगा। भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को पत्र लिख कर सुझाव दिया है कि ये परीक्षाएं दीपावली के बाद आयोजित की जाएं। देश में अभी परीक्षाएं आयोजित करवाने के लिए समय ठीक नहीं। अगर मुम्बई को ही देखें तो वहां ट्रांसपोर्ट की कोई सुविधा है ही नहीं। छात्रों को परीक्षा सैंटर तक पहुंचने के लिए 20-30 किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा। स्वामी ने यह भी लिखा है कि परीक्षाओं को लेकर छात्रों में काफी हताशा है। कोरोना के चलते छात्र पहले से ही तनाव में हैं। परीक्षाओं के चलते मानसिक दबाव से छात्र आत्महत्याएं करेंगे।
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लॉकडाउन के दौरान लोग अवसाद के शिकार हो रहे हैं और आत्महत्याओं के केस बढ़े हैं। स्वामी ने छात्रों के आत्महत्याएं करने की जो आशंका व्यक्त की है, वह निर्मूल नहीं है। जिन छात्रों के अभिभावकों का रोजगार छिन चुका हो, काम-धंधे, व्यापार ठप्प हो चुका हो या फिर उनके घर बाढ़ के पानी से घिरे हुए हों, ऐसी स्थिति में पहले से ही मानसिक दबाव में रह रहे छात्र कड़ी प्रतिस्पर्धा वाली इन परीक्षाओं की तैयारी कैसे कर पाएंगे। परीक्षाओं में नाकाम रहने पर भी आत्महत्या के मामले बढ़ सकते हैं। परीक्षाओं को लेकर छात्रों की राय बंटी हुई है। राजनीतिज्ञों की भी राय बंटी हुई है। यह सही है कि जीवन ठहर नहीं सकता इसलिए छात्रों को हताशा को मन से निकाल आगे बढ़ने का संकल्प लेना होगा। जीवन के इस अवसर को अंतिम अवसर नहीं माना जाना चाहिए। मौके तो आगे आते ही रहेंगे।
‘‘जीवन चलने का नाम
चलते रहो सुबह-ओ-शाम
ये रस्ता कट जाएगा मित्रा
ये बादल छंट जाएगा मित्रा।’’
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Aditya Chopra

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