किसान हित सर्वोपरि
किसान मुद्दे भारत के लिए अति संवेदनशील हैं। भारत में अधिकतर लोगों का जीवन निर्वाह कृषि क्षेत्र पर आधारित है। इसलिए भारत में किसान हितों की उपेक्षा नहीं की जा सकती। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पहले 25 फीसदी टैरिफ लगाया और बाद में उसे बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया। ट्रम्प भारत पर दबाव बढ़ाकर अपनी सभी मनमानी शर्तें मनवाना चाहते हैं लेकिन भारत में हरित क्रांति के सूत्रधार महान कृषि वैज्ञानिक एन.एस. स्वामीनाथन की जन्म शताब्दी के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्रम्प की धमकियों का दो टूक जवाब देते हुए कहा कि ‘‘भारत अपने किसानों, पशु पालकों और मछुआरों के हितों से कभी समझौता नहीं करेंगे। मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं कि इसके लिए मुझे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं। भारत अपने किसानों के साथ मजबूती से खड़ा है और मैं उनके कल्याण के लिए किसी भी तरह की चुनौती का सामना करने को तैयार हूं।’’ यह स्पष्ट हो चुका है कि अमेरिका-भारत ट्रेड डील किसान हितों के मुद्दे पर ही अटकी हुई है। ट्रम्प दबाव बनाकर भारत को ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लागू करने की तिथि भी 27 अगस्त रखी है। यह समझना बहुत जरूरी है कि आखिर भारत किसानों के मुद्दे पर अमेरिका से क्याें टकरा रहा है।
अमेरिका लगातार भारत पर दबाव बना रहा है कि वह अपने एग्रीकल्चर मार्केट को अमेरिकी उत्पादों के लिए खोले। अमेरिका चाहता है कि उसके डेयरी, पोल्ट्री, मक्का, सोयाबीन, चावल, गेहूं, एथेनॉल, फल और बादाम-पिस्ते जैसे मेवों को बिना किसी शुल्क के भारतीय मार्केट में एंट्री मिले लेकिन भारत ने अब तक सिर्फ ड्राई फ्रूट्स और सेब जैसे कुछ उत्पादों के लिए ही बाजार खोलने पर सहमति दी है। जबकि मक्का, सोयाबीन, गेहूं और डेयरी जैसे सेक्टर्स के लिए भारत सख्ती से मना कर रहा है। इसके पीछे असली वजह यह है कि अमेरिका के अधिकतर मक्का और सोयाबीन जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) होते हैं, जबकि भारत में अभी तक जीएम फसलों के आयात की इजाजत नहीं है। भारत में जीएम फसलों को स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक माना जाता है और खुद बीजेपी से जुड़े कई संगठन जीएम फसलों के विरोध में हैं। जीएम फसलों के अलावा डेयरी प्रोडक्ट्स भी भारत-अमेरिका ट्रेड डील में एक बड़ा टकराव का मुद्दा बने हुए हैं। भारत में डेयरी केवल भाेजन का साधन नहीं है, बल्कि करोड़ों छोटे और भूमिहीन किसानों की आय का साधन है।
भारतीय किसानों ने फसलों के न्यूूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी के लिए बाजारों तथा उनकी जमीन पर कार्पोरेट नियंत्रण के खिलाफ लम्बा आंदोलन किया था। अमेरिका भारत को अपने माल का डंपिंग यार्ड बना देना चाहता है। अमेरिका में एक क्विंटल गेहूं के उत्पादन की लागत 1700 रुपए है जबकि भारत सरकार द्वारा एक क्विंटल गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2425 रुपए है। भारतीय किसानों के पास औसतन एक हेक्टेयर से कम जमीन है। अगर गेहूं और धान के भारतीय बाजार को अमेरिकी कम्पनियों के लिए खाेल दिया जाए तो भारतीय किसानों की हालत क्या होगी यह सब जानते हैं। अमेरिका भारत के साथ अपने 45 अरब डॉलर के व्यापार घाटे को कम करने के लिए गेहूं, कपास, मक्का, सोया, अमेरिकी मक्खन आैर दूध उत्पाद के लिए भारत का बाजार खोलने के लिए दबाव डाल रहा है। भारत इन उत्पादों के लिए पहले ही आत्मनिर्भर है। दूसरा संवेदनशील पहलू यह भी है कि अमेरिकी पशुपालन में जानवरों को भी मांस खिलाते हैं। वे अधिक दूध के लिए गायों को भी मांसाहार परोसते हैं। भारत की एक बड़ी आबादी शाकाहारी है। अमेरिका के डेयरी उत्पाद उनके धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों से मेल नहीं खाते। भारतीय किसान पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं और उनकी आत्महत्याओं का सिलसिला आज भी जारी है।
सबसे बड़ा सवाल लाखों भारत के छोटे किसानों की आजीविका का है। कृषि क्षेत्र भारत की जीडीपी में 16 प्रतिशत योगदान देता है। कोरोना महामारी के काल में अगर किसी सैक्टर ने भारत को बचाया है तो वह कृषि क्षेत्र ही रहा। महामारी के दिनों में भी कोई भारतीय भूखा नहीं सोया। ऐसे में किसान हितों की रक्षा करना सरकार का दायित्व है। हमें विश्व बाजार में भारतीय कृषि को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने, किसानों की आय बढ़ाने, कृषि अनुसंधानों एवं खाद्य परसंस्करण पर ध्यान देना होगा। भारत को ऐसी मोर्चाबंदी करनी होगी जिससे कई देशों के साथ हमारा द्विपक्षीय व्यापार बढ़े और हम अमेरिका की चुनौतियों का सामना करने का सामर्थ्य पैदा कर सकें।