कोराेना काल में किसानों का दिल्ली कूच
यह पंजाब के लिए राहत भरी खबर थी कि कृषि सुधार कानूनों के विरोध में आंदोलनरत किसानों ने रेलवे ट्रैक खाली करने का फैसला किया।
02:45 AM Nov 26, 2020 IST | Aditya Chopra
यह पंजाब के लिए राहत भरी खबर थी कि कृषि सुधार कानूनों के विरोध में आंदोलनरत किसानों ने रेलवे ट्रैक खाली करने का फैसला किया। साथ ही केन्द्र को 15 दिन में किसानों की मांगों पर फैसला करने की शर्त रखते हुए फिर आंदोलन की चेतावनी भी दी है। अब मालगाड़ियों का आवागमन चालू हो गया है। यद्यपि कुछ स्थानों पर अभी भी किसान रेलवे ट्रैक पर बैठे हैं, उस रेलवे खंड में मालगाड़ियों के रूट परिवर्तित कर चलाया जा रहा है। किसानों का आंदोलन रेलवे को काफी महंगा पड़ा है। मालगाड़ियों की आवाजाही बंद होने से रेल मंत्रालय को 19 नवम्बर तक 892 करोड़ के राजस्व का नुक्सान हो चुका है। वहीं पंजाब कोयले और खाद की किल्लत झेलने लगा। सीमेंट, स्टील और अन्य सामान से लदे 230 रैक बार्डर पर ही अटके हुए थे।
बीते 55 दिनों के दौरान पंजाब आने-जाने वाली 2352 यात्री गाड़ियों को या तो रद्द कर दिया गया या उनका रूट बदला गया। गतिरोध खत्म करने के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्द्र सिंह को खुद आगे आना पड़ा आैर उन्होंने किसान संगठनों के नेताओं से बैठक कर उन्हें रेल रोको आंदोलन से हटने के लिए मना लिया। वहीं किसानों ने दिल्ली चलो आंदोलन को स्थगित करने से इंकार कर दिया है।
भारत में शांतिपूर्वक आंदोलन करने का अधिकार सभी को है लेकिन कोरोना महामारी के दौरान किसान आंदोलन लम्बा न खिंचे, इसके लिए गम्भीर प्रयासों की जरूरत है। देश के अनेक किसान संगठनों जैसे अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, राष्ट्रीय किसान महासंघ और भारतीय किसान संघ के विभिन्न धड़ों द्वारा किये जा रहे इन प्रदर्शनों का मुख्य उद्देश्य मोदी सरकार द्वारा पारित तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए केन्द्र सरकार पर दबाव बनाना है। विभिन्न किसान संगठनों ने मिलकर एक संयुक्त मोर्चा बनाया है। इस मोर्चे के कामकाज में समन्वय स्थापित करने के लिए सात सदस्यीय समिति का भी गठन किया गया है। इस मोर्चे ने दिल्ली में गुरुवार से अनिश्चितकालीन धरना-प्रदर्शन करने का ऐलान किया। मोर्चा नेताओं का कहना है कि उन्हें प्रदर्शन की अनुमति मिले या नहीं लेकिन किसान संसद पहुंचेंगे और प्रदर्शन करेंगे। कोरोना काल में दिल्ली में मौतों का आंकड़ा पहले ही काफी खौफ पैदा कर चुका है। संक्रमण के नए केस कम होने का नाम नहीं ले रहे। ऐसी स्थिति में किसानों का आंदोलन मुसीबत ही पैदा करेगा। कोरोना संक्रमण की स्थिति काफी गम्भीर है। ऐसे में पंजाब, हरियाणा, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ आैर आंध्र प्रदेश के किसानों का प्रदर्शन में शामिल होना उचित नहीं होगा। कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए हरियाणा को पंजाब से लगे अपने सभी बार्डर सील करने पड़े। किसान नेताओं की धरपकड़ जारी है। दिल्ली पुलिस ने भी चेतावनी दी है कि बिना अनुमति किसान दिल्ली के अन्दर घुसे तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। दिल्ली सरकार ने भी रामलीला मैदान या जंतर-मंतर पर प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी है। किसान प्रदर्शन से टकराव की स्थितियां पैदा हो सकती हैं। केन्द्र लगातार किसान प्रतिनिधियों से बातचीत करने की कोशिशें कर रहा है। पंजाब के किसान प्रतिनिधियों को मंत्रिस्तरीय बातचीत के लिए 3 दिसम्बर को आमंत्रित भी किया गया है। किसान संगठनों की दो बार बातचीत विफल हो गई थी। पहले कृषि सचिव किसान संगठनों से मिले थे तो बैठक में मंत्रियों के न होने के कारण किसानाें ने वार्ता से वाकआउट कर दिया था। वहीं इसी माह कृषि मंत्री नरेन्द्र तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल से बातचीत भी विफल रही थी। केन्द्र सरकार को अब किसानों से बातचीत की दिशा में गम्भीर पहल करनी होगी। यदि किसानों में नए सुधारों को लेकर कुछ आशंकाएं और असुरक्षा बोध है तो उन्हें दूर किया जाना चाहिए। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिन्द्र सिंह ने भी किसान संगठनों को आश्वासन दिया है कि वह उनकी मांगें पूरी करवाने के लिए प्रयास करेंगे।
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने यह भी कहा है कि जो लोग यह कह रहे हैं कि इन कृषि कानूनों के लागू हो जाने पर भविष्य में मंडियां खत्म हो जाएंगी तो उनकी आशंकाएं निर्मूल हैं। हरियाणा सरकार तो प्रदेश में मंडियों की संख्या में बढ़ौतरी करने जा रही है। केन्द्र की तरफ से एमएसपी पर खरीदी जाने वाली फसलों के अलावा भी हरियाणा सरकार बाजरा, सरसों, मूंग और मूंगफली आदि की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद जारी रखेगी।
दूसरी तरफ किसान संगठनों को भी संयम से काम लेना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी लगभग हर मंच से कृषि कानूनों के फायदे गिनवा रहे हैं। आंदोलन वही बेहतर होता है जो अनुशासित हो और जिससे न आंदोलनकारियों को नुक्सान हो न दूसरे लोगों और न ही राज्य को। कोराेना काल में किसानों का दिल्ली कूच करना ठीक नहीं। जो भी शंकाएं हैं उनका निवारण हो सकता है। कानूनों में फेरबदल होते रहे हैं। बेहतर यही होगा कि किसान संगठन राज्य हित में दिल्ली कूच न करें।
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