फौजी वर्दी में जिहादी है फील्ड मार्शल मुनीर
सफलता के कई पिता होते हैं लेकिन विफलता अनाथ होती है। अलबत्ता पाकिस्तान में विफलता…
सफलता के कई पिता होते हैं लेकिन विफलता अनाथ होती है। अलबत्ता पाकिस्तान में विफलता का जश्न मनाया जाता है। मूर्खता के विध्वस्त महासंघ पाकिस्तान में, जहां फौजी जनरल शासन करते हैं और असैन्य जनप्रतिनिधि डरते रहते हैं, जनरल सैयद आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाया जाना उनकी काबिलियत का प्रमाण कम और अव्यवस्था का राजतिलक ही ज्यादा है। इससे न सिर्फ वहां सेना के प्रभावी होने का संकेत मिलता है, बल्कि यह पाकिस्तान में उसके वर्चस्व का भी सबूत है।
शहबाज शरीफ की कैबिनेट ने मुनीर को फील्ड मार्शल का तमगा देने का फैसला भारत के उस ऑपरेशन सिंदूर के बाद लिया जिसके तहत पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर के आतंकी शिविरों और एयरबेस पर सटीक कार्रवाई की गयी। उसके जवाब में पाकिस्तान का ऑपरेशन न केवल प्रभावहीन था, बल्कि उसका अंत उसकी कोशिशों के कारण संघर्षविराम के रूप में सामने आया। इस लिहाज से देखें तो मुनीर को मिली प्रोन्नति का कारण युद्ध क्षेत्र में बहादुरी नहीं, बल्कि एक विफल देश द्वारा अपने कथित शौर्य की डुगडुगी पीटना और सेना के झूठे अहंकार को बढ़ावा देना ही ज्यादा लगता है।
मुनीर की यह तरक्की पाकिस्तान के फील्ड मार्शलों की कहानी कहती है। यह मुनीर की ईर्ष्यालु विचारधारा और सेना द्वारा नागरिक शासन को लगातार दबाने की प्रवृत्ति के बारे में भी बताती है। यह भारत के खिलाफ पाक सेना की मोर्चेबंदी के बारे में बताती है। यह मुनीर की तरक्की के राजनीतिक तथा रणनीतिक नतीजे से जुड़े गंभीर सवाल तो खड़े करती ही है, अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान से उसके नाजुक रिश्ते के बारे में बताती है और लगातार आगे बढ़ रहे भारत की तुलना में पाकिस्तान की क्रमिक विफलता के फर्क को रेखांकित करती है। पाक सेनाध्यक्ष को फील्ड मार्शल की तरक्की देने का उदाहरण इससे पहले 1959 में देखने को मिला था, जब जनरल अयूब खान ने खुद को यह तमगा दिया था।
अलबत्ता मुनीर को फील्ड मार्शल बनाये जाने का फैसला केवल प्रतीकात्मक नहीं है, यह एक नागरिक शासन द्वारा खुद को सैन्य प्रतिष्ठान के पीछे ले जाने का उदाहरण है। मुनीर को मिली तरक्की के पीछे एक गंभीर पैटर्न दिखता है। वर्ष 1947 से ही पाकिस्तान तानाशाहों को सहन करता आया है- चाहे वह याह्या खान हों, जियाउल हक हों या फिर परवेज मुशर्रफ हों। मुनीर इसके ताजातरीन उदाहरण हैं, जो अपने पूर्ववर्ती जनरलों की तरह विरोधियों को जेल में डालते हैं, मीडिया का मुंह बंद करते हैं और मनमाने कानूनों के जरिये शासन करते हैं। इस साल वहां के सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में आम नागरिकों के खिलाफ सैन्य कानूनों के तहत मुकदमा चलाने की जो अनुमति दी वह सिर्फ संविधान की अवहेलना नहीं है, बल्कि संविधान को लहूलुहान करने का उदाहरण है।
मुनीर सिर्फ एक जनरल नहीं है, वह सैन्य वर्दी में जिहादी है। वर्ष 1968 में जालंधर से पाकिस्तान गये एक परिवार के घर पैदा मुनीर ने खुद को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया, जिसके पास कुरान भी है और अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक चले जाने की सोच भी, पहले आईएसआई प्रमुख और फिर सेना प्रमुख के रूप में उसने धार्मिक राष्ट्रवाद और सांस्थानिक निरंकुशता के मिलेजुले स्वरूप का परिचय दिया है। उसकी कट्टरता लगातार परवान चढ़ती रही है। पिछले महीने रावलपिंडी की एक मस्जिद में भाषण देते हुए उन्होंने कश्मीर को पाकिस्तान के ‘गले की नस’ बताया था। उसके भाषण के बाद ही पहलगाम आतंकी हमले को अंजाम दिया गया। कहा जाता है कि 2019 में करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन के समय मुनीर ने चेतावनी दी थी कि सिख श्रद्धालु भारतीय एजेंट हो सकते हैं।
वर्ष 2023 में बलूचिस्तान के एक मदरसे में उन्होंने छात्रों से पाकिस्तान के सम्मान में कलम और तलवार, दोनों उठाने की अपील की थी। पाकिस्तान का इतिहास सेना द्वारा निर्वाचित असैन्य सरकारों को हटाने के त्रासद वृत्तांतों से भरा है। अयूब खान द्वारा 1958 में किया गया तख्तापलट, जियाउल हक का इस्लामी सैन्य तंत्र और परवेज मुशर्रफ का आधुनिक सत्तावाद- इन सबसे पाक फौज के लोकतंत्र के तिरस्कार का पता चलता है।
सैन्य तंत्र को मजबूत करने की भारी कीमत पाकिस्तान को चुकानी पड़ी है और अब भी पड़ रही है। पाकिस्तान के नागरिक शासन ने सैन्य वर्चस्व के सामने अपनी जमीन जानबूझ कर गंवा दी है। जनरल मुनीर को फील्ड मार्शल बनाया जाना सिर्फ तुष्टिकरण नहीं है, राजनीतिक अर्थ में यह शासन त्याग या अपनी सत्ता को सैन्य तंत्र की तुलना में कमतर बना देना है।
इमरान खान की पीटीआई का इतना दमन किया गया कि आज वह शक्तिविहीन है। घरेलू स्तर पर पाकिस्तान की स्थिति दयनीय है। वर्ष 2024 में उसकी जीडीपी दो साल पहले के 376 अरब डॉलर से घटकर 338 अरब डॉलर रह गयी। मुद्रास्फीति 30 प्रतिशत है, जबकि एक डॉलर 300 पाकिस्तानी रुपये के बराबर है। चालीस फीसदी से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं, जबकि विदेशी मुद्रा भंडार घटकर आठ अरब डॉलर रह गया है और बेरोजगारी आठ प्रतिशत के आसपास है। इसकी तुलना में 2024 में भारत की जीडीपी 3.9 ट्रिलियन डॉलर रही, जिसके 2025 में 4.2 ट्रिलियन डॉलर पार कर जाने की उम्मीद है। हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 700 अरब डॉलर से अधिक है, जबकि मुद्रास्फीति पांच फीसदी से कम है। वर्ष 2024 में आईएमएफ की सात अरब डॉलर की राहत राशि पर निर्भर पाकिस्तान ने अपने बजट का 16 फीसदी रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटित किया, जो भारत द्वारा रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटित राशि से आनुपातिक रूप से दोगुने से भी अधिक था। मुनीर का सैन्य मिशन बताता है कि पाकिस्तान की यह नीति जारी रहेगी। वहां विकास को रोक दिया गया है, लोकतंत्र को कुचल दिया गया है और विरोध को दबा दिया गया है। इसकी परिणति भीषण हुई है। मुनीर के सिर पर कांटों का ताज है। उसके भाषण संघर्ष की पटकथा तैयार करते हैं, उसके सिद्धांत कूटनीति को अंधी गली में छोड़ देते हैं और उसकी तरक्की ने भारत के साथ शांति की झीनी-सी उम्मीद भी खत्म कर दी है।
अगर मुनीर अपनी ताकत बढ़ाते हैं तो पाकिस्तान सैन्य तंत्र में तब्दील हो जायेगा। भारत की प्रभावी सैन्य कार्रवाई और प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीतिक पहलकदमी ने मुनीर के बड़बोलेपन की हवा निकाल दी है, ऐसे में फील्ड मार्शल के जिहाद छेड़ने का सपना उन्हें ऐसी स्थिति में ले जा रहा है, जहां उनके डूबते जहाज को बचाने वाला कोई नहीं होगा।