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...जरा आंख में भर लो पानी

सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के 92 वर्ष की आयु में निधन के साथ ही सुरों का काफिला थम गया।

01:25 AM Feb 07, 2022 IST | Aditya Chopra

सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के 92 वर्ष की आयु में निधन के साथ ही सुरों का काफिला थम गया।

   जरा आंख में भर लो पानी
सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के 92 वर्ष की आयु में निधन के साथ ही सुरों का काफिला थम गया। कोरोना के कारण लता जी जिन्दगी की जंग हार गई और भारत ने अपना अमूल्य रत्न खो दिया। संगीत प्रेमी उनके ठीक होने की दुआ कर रहे थे क्योंकि शनिवार को उनकी दशा नाजुक होने की खबर ने सभी को विचलित कर दिया था। हजारों कालजयी गानों को अपनी आवाज देने वाली लता जी अब अनंत यात्रा पर जा चुकी हैं अब उनके गीत ही देश की धरोहर हैं। भारतीय फिल्म उद्योग में भारत रत्न लता जी का जो स्थान रहा, वह किसी और का न है न हो सकता है। ‘‘न भूतो न भविष्यः’’  स्वर की अपदस्थ अप्सरा, राष्ट्र की आवाज, कोकिल कंठी, जीवित किवदंती उन्हें आज तक न जाने कितनी उपमाओं से नवाजा गया। स्वर उठाने, स्वर मिलाने, स्वर लगाने, स्वर बीनने, स्वर छोड़ने, स्वर साधने, संगीत के रंग की तमाम बारीकियां जितनी लता जी के गायन में परिलक्षित होती रही उतनी कहीं और नहीं मिलती।
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लता जी ने 36 भाषाओं में 30 हजार गाने गए जो किसी भी गायक के लिए एक रिकार्ड है। करीब एक हजार से ज्यादा फिल्मों में उन्होंने अपनी आवाज दी। 1960 से 2000 तक एक ऐसा दौर भी आया जब उनकी आवाज के बिना फिल्में अधूरी मानी जाती थी। लता जी के गायन सागर में हर राग, हर रंग, हर मनस्थिति, हर भाव के हृदयस्पर्शी गीत हैं। मोहब्बत भरे गीत का उन्माद हो या टूटे दिल से निकला दर्द, भक्ति गीत हो या राष्ट्रभक्ति गीत, प्रियतम से मिलने की बेकरारी हो या विवाह का गीत या महिफल सजाता पार्टी गीत हो या मुजरा, वह ऐसे सभी गीतों में सशरीर मौजूद रहती थी। उन्होंने जो भी गाया उसे दिल के साथ-साथ आत्मा से भी गाया। मदन मोहन की मुश्किल भरी धुनें हो या सज्जाद हुसैन, नौशाद और रोशन की विशुद्ध भारतीय रचनाएं। एस.डी. बर्मन का लोकधुनों भरा ताल व्यवस्थापन हो या  विशुद्ध भारतीय शास्त्रीय रचनाएं। आर.डी. बर्मन की पूरब और पश्चिम की मिलीजुली धर्मिता हो या लक्ष्मीकांत प्यारे लाल की मधुर धुनें इन तमाम चोटी के संगीतकारों की कल्पना को सरलता से हकीकत बनाने की योग्यता रही।
कई दशकों तक वह भारत की सबसे मशहूर और डिमांड में रहने वाली गायिका रही। बालीवुड की हर बड़ी अभिनेत्री की ख्वाहिश होती थी कि उसके गाने लता जी ही गायें। लता जी ने अपना पहला गाना 1949 में आई फिल्म महल के लिए गाया था, इस फिल्म में उनकी गायकी की काफी प्रशंसा हुई। उस दौर के मशहूर संगीतकारों ने उन्हें नोटिस किया। उसके बाद उनकी गायन यात्रा कभी नहीं रुकी। ‘श्री 420, आवारा, मुगल-ए-आजम, मजबूर, पाकीजा, आराधना, सत्यम शिवम सुन्दरम और दिल वाले दुल्हनियां ले जाएंगे’ जैसी सामाजिक फिल्मों में उन्होंने गाने गाये।
एक गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी….’ ने उन्हें अमर कर दिया। 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के सम्मान में यह गीत गाया था तो भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की आंखें भी भर आई थी। आज जब भी यह गीत सुना जाता है तो जनमानस शहीदों के प्रति नतमस्तक हो जाता है और आंखों से आंसू छलक उठते हैं। लता जी ने पहले यह गाना गाने से इन्कार कर दिया था क्योंकि ​वह रियाज नहीं कर पाई थी तब कवि प्रदीप ने उन्हें किसी तरह इस गाने के लिए मना लिया  था। इस गीत की पहली प्रस्तुति दिल्ली में 1963 में गणतंत्र दिवस समारोह पर हुई थी। उन्होंने अपने दौर में मोहम्मद रफी हो या कि​शोर कुमार के साथ गाया। उन्होंने राज कपूर से लेकर गुरुदत्त और मणिरत्नम से लेकर नये दौर के संगीतकारों के साथ काम किया। वह एक ऐसी गायिका रही जिन्होंने पार्श्व गायन में पुरुषों को चुनौती दी और उन्होंने मोहम्मद रफी जैसे दिग्गज गायक से ज्यादा पैसे और रायल्टी मांगी और उन्हें मिली भी। लता जी ने बाल्यकाल में ही जिन्दगी से जूझना सीख लिया था।
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पिता की मृत्यु के बाद परिवार का पालन-पोषण करने के लिए उन्हें थियेटर में काम करना पड़ा। 14 वर्ष की आयु में उन्होंने मराठी फिल्म में अभिनय किया था। फिर कुछ फिल्मों में काम करने के बाद 1946 में गाना शुरू कर दिया था। 1947 में हिन्दी गीत गाने शुरू कर दिए  थे। उनकी तीन बहनें आशा भोंसले, मीना, उषा मंगेशकर और भाई हृदयनाथ मंगेशकर भी संगीत की दुनिया से ही जुड़े हैं। लता जी के संगीत की दुनिया में योगदान पर 2001 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। इसके अलावा उन्हें दादा साहेब फाल्के सम्मान सहित अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया। उनकी आवाज मोती जैसी पवित्र और क्रिस्टल जैसी साफ थी। उनका गायन भारतीय संवेदनाओं से परिपूर्ण था। संगीत की देवी की साधना काफी लम्बी रही। उन्हें जितना  देश के लोगों ने सम्मान दिया, वह भी बहुत कम लोगों को नसीब होता है। उनकी जादुई आवाज हमें त्रस्तता, परेशानी, दुःख, संकट और विद्रोह की स्थिति में मरहम बन कर सुकून देती रहेगी। पंजाब केसरी परिवार उन्हें नम आंखों से भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
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