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पहले सम्भल, फिर अजमेर

उत्तर प्रदेश का सम्भल उबला, जला और पांच लोगों की मौत के बाद शीर्ष न्यायालय में जा पहुंचा। फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालत की कार्यवाही पर हाईकोर्ट का आदेश आने तक रोक लगा दी…

11:17 AM Nov 30, 2024 IST | Aditya Chopra

उत्तर प्रदेश का सम्भल उबला, जला और पांच लोगों की मौत के बाद शीर्ष न्यायालय में जा पहुंचा। फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालत की कार्यवाही पर हाईकोर्ट का आदेश आने तक रोक लगा दी…

पहले सम्भल  फिर अजमेर

उत्तर प्रदेश का सम्भल उबला, जला और पांच लोगों की मौत के बाद शीर्ष न्यायालय में जा पहुंचा। फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालत की कार्यवाही पर हाईकोर्ट का आदेश आने तक रोक लगा दी है। सम्भल अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अब अजमेर की विश्व प्रसिद्ध दरगाह को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। कभी ताजमहल, कभी भोजशाला तो कभी कुतुबमीनार और अन्य धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद नए नहीं हैं। वाराणसी ​स्थित ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर पहले ही वाद अदालतों में हैं। अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण हो जाने पर ऐसा लगता था कि देश में मंदिर-मस्जिद विवाद खत्म हो जाएंगे लेकिन एक के बाद एक विवाद सामने आने पर उग्रता का क्रूर चेहरा सामने आ रहा है। क्या प्रत्येक मस्जिद की नींव में एक मंदिर ढूंढा जा सकता है? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत ने जून 2022 में कहा था कि हर रोज एक नया मुद्दा नहीं उठाना चाहिए। झगड़े क्यों बढ़ाएं…., हर मस्जिद में​ शिवलिंग क्यों ढूंढे। राम मंदिर आंदोलन के दौर में विश्व हिन्दू परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष स्वर्गीय अशोक सिंघल ने 3000 मस्जिदों की सूची जारी की थी। उन्होंने दावा किया था कि यह सभी मस्जिदें मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा मंदिर तोड़कर बनवाई गई थी। अशोक सिंघल ने यह भी कहा था कि यदि मुस्लिम समाज अयोध्या, काशी और मथुरा की तीन मस्जिदों को हिन्दुओं को दे दें तो हिन्दू समाज बाकी सभी 2997 मस्जिदों पर अपना दावा छोड़ देगा। इसके बाद अयोध्या में राम मंदिर को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया, तब जाकर भव्य राम मंदिर का निर्माण हुआ।

मथुरा हिन्दुओं के आराध्य श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है और करोड़ों हिन्दुओं का आत्मिक लगाव मथुरा-वृंदावन से बना हुआ है। जहां तक प्राचीनतम नगरी काशी का प्रश्न है इसे साक्षात भगवान शिव की नगरी के रूप में देखा जाता है लेकिन अब एक के बाद एक सिलसिला शुरू हो चुका है। अब सवाल यह है कि क्या देश की हर गली-मोहल्ले की मस्जिद में मंदिर ढूंढा जाएगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि मुस्लिम आक्रांताओं ने हिन्दू मंदिर तोड़कर मस्जिदें बनवाई। जहां भी अदालतों ने सर्वे या वैज्ञानिक जांच के आदेश दिए वे हिंसक तनाव की रक्तभूूमि बन गए। उन्मादी और मजहबी भीड़ ने तनाव को दंगों में बदल दिया। मंदिर-मस्जिद की लड़ाई लड़ते रहने से अंततः हासिल क्या होगा। अजमेर शरीफ दरगाह दुनियाभर में मशहूर है और दुनिया भर के लोग यहां आते हैं। प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक और फिल्मी सितारों से लेकर आम जनता तक यहां चादर चढ़ाने आते हैं।

अब एक नया दावा सामने आया है जिसमें दावा किया गया है कि अजमेर दरगाह संकट मोचन मंदिर है। अजमेर की एक स्थानीय अदालत ने दरगाह समिति, केन्द्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को मंदिर घोषित करने वाली मांग पर नोटिस जारी किया है। इन विवादों को देखकर संसद द्वारा बनाए गए पूजा स्थल विशेष अधिनियम 1991 के महत्व को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। यह कानून देश की आजादी 15 अगस्त 1947 को पूजा स्थलों की स्थिति के अलग ‘किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण; (धारा 3) को प्रतिबंधित करता है और उस समय की स्थिति के अनुरूप ‘किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाये रखने का प्रावधान करता है (धारा 4)। कोई भी व्यक्ति ‘किसी भी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग के पूजा स्थल को उसी धार्मिक संप्रदाय के किसी अन्य वर्ग या किसी अन्य धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल में परिवर्तित नहीं कर सकता। ध्यान रहे कि रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद को अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया था। 2019 में अयोध्या विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ के फैसले ने भी पूजा स्थल अधिनियम की वैधता को दोहराया था और कहा था कि मौजूदा धार्मिक स्थलों के खिलाफ कोई दावा कानून द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि, मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण करने की अनुमति दी थी। जिला अदालत में दायर एक याचिका में कहा गया है कि मस्जिद को एक ध्वस्त मंदिर के खंडहर पर बनाया गया था। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सर्वेक्षण जारी रखने की अनुमति देते हुए कहा कि 1991 के अधिनियम के तहत किसी धार्मिक स्थल की प्रकृति का पता लगाना वर्जित नहीं है। बाद में न्यायालय ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता केवल 15 अगस्त, 1947 को स्थान की स्थिति का पता लगाने की मांग कर रहे हैं, न कि अधिनियम के अनुसार स्थान की प्रकृति को बदलने या परिवर्तित करने की।

इस फैसले के बाद विवादों को हवा दी जाने लगी। समय बहुत संवेदनशील है। अतः संयम बनाए रखना बेहद जरूरी है। सबसे जरूरी है समाज के बीच सौहार्द का कायम रहना। या तो सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप कर पूजा स्थल अधिनियम की पवित्रता को बनाए रखना होगा अन्यथा हर स्थल को युद्ध का मैदान नहीं बनाया जाना चाहिए। साम्प्रदायिक वातावरण विषाक्त होने से लोग हाथों में लाठी-डंडे, पत्थर आैर पिस्तौलें लेकर सड़कों पर आ सकते हैं। बेहतर यही होगा कि देश की एकता और अखंडता के ​िलए ऐसे विवादों को थामा जाए।

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