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केजरीवाल के सामने बांसुरी की चुनौती?

चाहे चुनाव हो या ना हो, पर भारतीय जनता पार्टी की चुनावी मशीनरी को हमेशा ही दिन-रात काम करते देखा जा सकता है,

10:08 AM Nov 16, 2024 IST | त्रिदीब रमण

चाहे चुनाव हो या ना हो, पर भारतीय जनता पार्टी की चुनावी मशीनरी को हमेशा ही दिन-रात काम करते देखा जा सकता है,

केजरीवाल के सामने बांसुरी की चुनौती

‘बड़ी देर में आरजू मेरी मुकम्मल हुई है,

जिसे मांगा था उम्र भर

वह रास्ता ही अब मेरी मंजिल हुई है’

चाहे चुनाव हो या ना हो, पर भारतीय जनता पार्टी की चुनावी मशीनरी को हमेशा ही दिन-रात काम करते देखा जा सकता है, पार्टी के दोनों पुरोधा भी चुनावी प्रबंधन और चुनावी रणनीति बुनने में पारंगत हैं। अभी झारखंड में पहले फेज का चुनाव संपन्न हो चुका है, आने वाले 20 नवंबर को झारखंड के दूसरे व अंतिम फेज का और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव होने हैं, पर भाजपा के चुनावी प्रबंधकों ने अभी से दिल्ली व बिहार में अपना डेरा-डंडा डाल लिया है, जहां अगले वर्ष चुनाव होने हैं। यही वजह है कि पीएम मोदी भी किसी न किसी बहाने अक्सर बिहार के दौरे पर निकल जाते हैं, कमोबेश यही हाल जेपी नड्डा का भी है।

बात करें दिल्ली की तो पूरी भाजपा ने जैसे यहां चुनावी शंखनाद फूंक दिया हो। दिल्ली में अकेले पूर्वांचली वोटरों की तादाद 42 फीसदी से अधिक है, उन्हें साधने के लिए छठ पूजा का हवाला देते हुए दिल्ली भाजपा के मुखिया वीरेंद्र सचदेवा प्रदूषित यमुना में कूद गए जिसकी वजह से उन्हें स्किन इंफेक्शन भी हो गया। ऐसा करना यह बताने के लिए था कि यमुना का पानी इस कदर भी साफ नहीं कि मां-बहन उसमें उतर कर सूर्य देवता को अर्घ्य दे सकें।

वहीं दिल्ली के सातों भाजपा सांसद जगह-जगह छठ पूजा में सम्मलित होते दिखे। मनोज तिवारी ने तो छठ पूजा के लिए मनीष सिसोदिया के विधानसभा क्षेत्र पटपड़गंज का रुख कर लिया। जब से भाजपा के थिंक-टैंक का यह विचार निकल कर सामने आया है कि दिल्ली का मुख्यमंत्री दिल्ली से बाहर का होना चाहिए, इसके बाद तिवारी जी दिल्ली में कुछ ज्यादा ही सक्रिय दिख रहे हैं। पार्टी का एक वर्ग अरविन्द केजरीवाल के मुकाबले स्मृति ईरानी को मैदान में उतारना चाहता है, संभावनाओं की इस नई आहट को भांपते स्मृति ने अपना वोट भी आर.के. पुरम से बनवाया है।

वहीं संघ की सोच है कि अरविन्द केजरीवाल को अपनी ओजपूर्ण वाणी व वाक्पटुता से केवल बांसुरी स्वराज ही जमीन दिखा सकती हैं। बांसुरी महिलाओं और युवाओं में भी खासी लोकप्रिय हैं और वह केजरीवाल की विधानसभा को समेटने वाली नई दिल्ली संसदीय सीट से सांसद भी हैं। सो, दिल्ली में उनका दांव ही माकूल रहेगा।

अपनी सीट क्यों बदलना चाहते हैं मनीष सिसोदिया?

आम आदमी पार्टी दिल्ली में लगातार जनमत सर्वेक्षण करवा रही है, पर कहते हैं इसके नतीजे अब भी पार्टी के मनमाफिक नहीं आ रहे। शायद यही वजह है कि केजरीवाल के बाद पार्टी के नंबर दो माने जाने वाले मनीष सिसोदिया भी अपनी पटपड़गंज सीट बदलने की सोच रहे हैं। सो, एक ओर जहां मनीष लगातार पद यात्राएं कर रहे हैं, वहीं अपनी वैकल्पिक सीट के तौर पर जंगपुरा विधानसभा सीट को तैयार भी कर रहे हैं, सनद रहे कि जंगपुरा आप के नजरिए से बहुत ‘सेफ सीट’ मानी जाती है। जहां सिख व मुस्लिम मतदाताओं का बोलबाला है, जिसे आप अपना परंपरागत वोटर मान कर चल रही है। वैसे भी 2020 के पिछले दिल्ली विधानसभा चुनाव में सिसोदिया पटपड़गंज से भाजपा के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी रवीन्द्र सिंह नेगी से मात्र 3207 वोटों से जीत पाए थे। 2024 के लोकसभा चुनावों की बात करें तो पटपड़गंज सीट से भाजपा उम्मीदवार हर्ष मल्होत्रा को जहां 79,044 वोट मिले थे तो आप के कुलदीप कुमार मनीष इस सीट पर महज 49,845 वोट ही पा सके थे, वह भी उस सूरत में जब इस चुनाव में आप का कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन था। सो, मौके की नज़ाकत को भांपते हुए मनीष ने अभी से ही जंगपुरा का रुख कर लिया है।

क्या निशिकांत को मिलेगा कोई बड़ा ईनाम?

गोंडा से भाजपा सांसद डॉ. निशिकांत दुबे पर भाजपा शीर्ष आने वाले दिनों में कई और मेहरबानियां दिखा सकता है। भाजपा नेतृत्व के कहने पर निशिकांत दुबे की न सिर्फ सरकारी सुरक्षा बढ़ा दी गई है बल्कि उन्हें नई दिल्ली के लुटियंस इलाके में एक बड़ा शानदार बंगला भी आवंटित किया गया है। यह सरकारी बंगला 7, सफदरगंज रोड कई मायनों में अलहदा है। यहां कभी भाजपा के शीर्ष पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी रहा करते थे, फिर वाजपेयी के ही स्वर्णिम युग में उनके सबसे भरोसेमंद सिपहसालार में शुमार होने वाले प्रमोद महाजन को यह बंगला आवंटित हुआ जो अपने जीवन के आखिरी समय तक इसी बंगले में रहे, फिर यहां कई लोग आए-गए, मोदी ने जब 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो यह बंगला मुख्तार अब्बास नकवी को आवंटित हो गया। जब से निशिकांत दुबे को यह बंगला आवंटित हुआ है कयासों के बाजार गर्म है कि आने वाले दिनों में उन्हें केंद्र सरकार में कुछ बड़ा मिलने जा रहा है।

क्या चंद्रबाबू से पीछा छुड़ाना चाहती है भाजपा?

मोदी नीत एनडीए के एक प्रमुख घटक दल तेलगुदेशम पार्टी व भाजपा में इन दिनों सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। इसकी एक बड़ी वजह चंद्रबाबू की उस बारंबार डिमांड से जुड़ा है कि ‘वे चाहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी को ‘दोषी’ ठहरा उन्हें सलाखों के पीछे डाला जाए।’ पर माना जाता है कि भाजपा ने अंदरखाने से जगन के साथ भी अपने चैनल खुले रखे हैं।

वहीं भगवा पार्टी आंध्र के डिप्टी सीएम पवन कल्याण पर अपना दांव लगा रही है। कहते हैं भाजपा को ही खुश करने के लिए पवन की पार्टी जनसेना ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए आंध्र और तेलांगना में ‘नरसिंह वाराही विंग’ का गठन किया है जो इन दोनों प्रदेशों में संघ व भाजपा पोषित सनातन की हवा को रफ्तार दे रहे हैं। इससे इस बात के कयास भी लगाए जा रहे हैं कि आने वाले 2029 के चुनाव में भाजपा का पवन कल्याण की पार्टी जनसेना से चुनाव पूर्व गठबंधन हो सकता है।

नीतीश इतना झुक क्यों रहे हैं?

बार-बार ​बिहार के सीएम नीतीश कुमार भाजपा के सामने झुक रहे हैं, पिछले छह महीने से ऐसा चल रहा है। उनका झुकना एक आम दस्तूर बन चुका है। कुछ लोग कहते हैं नीतीश भाजपा के बेहद दबाव में हैं, कोई तो बात है जिसके लिए वे बार-बार भाजपा से माफी मांग रहे हैं, कुछ लोगों का कहना है कि ‘नीतीश अपने पुत्र निशांत कुमार को अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी बनाने के लिए बेकरार हैं, इसके लिए वे भाजपा का आशीर्वाद चाहते हैं।’

आजकल नीतीश जहां भी सार्वजनिक मंचों पर नज़र आते हैं, निशांत हमेशा साये की तरह उनके साथ होते हैं। अभी हाल में ही नीतीश हरियाणा के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह के पुत्र की शादी के सिलसिले में रेवाड़ी आए थे तब भी निशांत उनके साथ ही थे। अभी बिहार में जदयू की कमान नीतीश के भरोसेमंद श्रवण कुमार के हाथों में हैं, पर श्रवण भी निशांत को खुले मन व खुले दिल से स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।

क्या होगा महाराष्ट्र चुनाव में?

महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव इस दफे एक दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है। इस बार का चुनाव यहां इस वजह से भी रोचक मोड़ पर है कि इसमें कोई 152 छोटे दल व 7 हजार निर्दलीय उम्मीदवार हिस्सा ले रहे हैं और बागियों की तो कुछ पूछिए मत, इन्होंने तो लगभग सभी प्रमुख राजनैतिक दलों की नींद उड़ा रखी है। उद्धव ठाकरे के बारे में कहा जा रहा है कि ‘उनकी पार्टी अपनी क्षमता से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही है।’ अजित पवार के अगर दर्जन भर लोग भी चुनाव जीत जाएं तो सब गनीमत है।

महायुति के एकनाथ शिंदे की मुश्किल है कि लोग उनके वादों पर भरोसा नहीं कर पा रहे। भले ही प्रदेश की शिंदे सरकार ने ‘लड़की बहन योजना’ को 1500 रुपए से बढ़ा कर 2100 रुपए प्रतिमाह कर दिया हो, पर महिलाओं को भरोसा नहीं हो रहा है कि अगर महायुति जीत गया तो उनके खातों में पैसा भी आएगा। कमोबेश यही हाल किसानों की कर्ज माफी के वादे का भी है।

अभी पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का एक ताजा बयान सामने आया, बकौल गडकरी-अभी अनिश्चित है कि इन्वेस्टर्स को समय पर सब्सिडी का भुगतान हो भी पाएगा या नहीं, सरकार को ‘लड़की बहन योजना’ के लिए भी फंड आवंटित करना है, सब्सिडी के अभाव में टेक्सटाइल मिल बंद होने की कगार पर थे, अभी आपको भले ही सब्सिडी मिल रही हो लेकिन यह पक्का नहीं कि सब्सिडी मिलेगी कब? गडकरी के बयान से इतना तो साफ ही हो जाता है कि राज्य अभी भी भारी वित्तीय संकट से जूझ रहा है।

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त्रिदीब रमण

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