पाकिस्तान में अल्पसंख्यक लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दू और सिख परिवारों की लड़कियों के साथ दुष्कर्म के बाद उनके धर्म परिवर्तन के मामलों में निरन्तर बढ़ौतरी होती देखी जा रही है, जो कि बेहद चिन्ता का विषय है। हाल ही में पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में एक हिन्दू परिवार की 15 वर्षीय नाबालिग लड़की के साथ पहले दुष्कर्म किया गया और बाद में जबरन इस्लाम कबूल करवा उसका निकाह एक बुजुर्ग के साथ कर दिया गया। पीड़िता के द्वारा घर वापसी के लिए लगातार गुहार लगाई जा रही है। इससे कुछ दिन पूर्व ही इसी तरह का एक मामला 9 वर्षीय लड़की के साथ हुआ और जब उसके परिवार वाले उसे अस्पताल ले जा रहे थे तो उन पर जानलेवा हमला भी किया गया। इससे पहले भी कई हिन्दू और सिख बच्चियां इन लोगों की हैवानियत का शिकार बन चुकी हैं। इस मामले को भारत की सरकार को गंभीरता से लेते हुए इस पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दबाव बनाकर एक्शन करवाना चाहिए, अगर मुगलिया इतिहास को देखा जाए तो इस तरह से महिलाओं पर अत्याचार मुगल काल में अक्सर होता रहा है। उस समय तो हिन्दू महिलाओं को जबरन उठाकर ले जाया जाता और टके-टके में बाकायदा मंडियों में जैसे सामान बेचा जाता है उस प्रकार लड़कियों की मंडिया लगाकर उन्हें बेचा जाता, मगर बाद में गुरु गोबिन्द सिंह जी के सजाए हुए खालसे ने इनके खिलाफ आवाज उठाई और हिन्दू लड़कियों को इनकी कैद से छुड़वाकर घर वापस भेजा गया इस प्रकार इनके अत्याचार पर लगाम लगी, मगर आज ऐसा प्रतीत होता है कि इन्हीं के वंशज ही हैं जो इस प्रकार से हिन्दू और सिख लड़कियों पर पुनः अत्याचार कर जबरन उनका धर्म परिवर्तन करवाने पर अमादा हुए हैं, वैसे देखा जाए तो इस्लाम धर्म भी इस बात की इजाजत नहीं देता कि किसी महिला के साथ और वह भी नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म किया जाए जिससे ऐसा लगता है कि जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें अपने धर्म के प्रति जानकारी का आभाव है। पाकिस्तान में भी इन्हीं के धर्म से कुछ लोग हैं जो इस सब के विरुद्ध आवाज उठाते हैं और उन्हीं के माध्यम से पता चला है कि पिछले कुछ सालों में एक हजार से अधिक हिन्दू सिख लड़कियां इनका शिकार बन चुकी हैं। भारत में भी लव जेहाद के मामले सामने आ रहे हैं जिसमें इन लोगों के द्वारा हिन्दू सिख लड़कियों को गुमराह कर अपने जाल में फंसाया जाता है, उनकी जिन्दगी से खिलवाड़ कर या तो उन्हें छोड़ दिया जाता है या फिर उनका धर्म परिवर्तन करवा दिया जाता है, हालांकि भारत की सरकार और समाज सेवी संस्थाओं की चौकसी के चलते यह लोग अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं।
गुरु हरगोबिन्द जी ने 52 हिन्दू राजाओं को मुक्ति दिलाई थी : इतिहास में इस बात का जिक्र है कि सिखों के छठे गुरु हरिगोबिन्द साहिब जी ने गवालियर के किले में कैद 52 हिन्दू राजाओं को आजाद करवाया था। बात उस समय की है जब गुरु हरगोबिन्द साहिब जी को बादशाह के द्वारा कैद कर ग्वालियर के किले में रखा गया जहां पहले से ही 52 हिन्दू राजा कैद कर रखे गए थे पर जैसे ही बादशाह को गुरु जी की शक्तियों के बारे में जानकारी मिली तो उसने उनकी रिहाई का आदेश दिया मगर गुरु जी ने रिहाई लेने से साफ इन्कार कर दिया और कहा कि उनके साथ सभी कैद हिन्दू राजाओं को भी रिहा किया जाए, जिस पर बादशाह ने गुरु जी के सामने किले से रिहाई के समय शर्त रखी कि जो भी राजा गुरु जी को पकड़कर बाहर आ जाएगा उसे भी गुरुजी के संग रिहा कर दिया जाएगा गुरु जी ने रातोंरात 52 कलियों वाला कुर्ता सिलवाया जिसकी एक-एक कली पकड़कर सभी 52 हिन्दू राजा भी जहांगीर की कैद से रिहा हो गए। कैद से बाहर आकर जब गुरु जी अमृतसर की धरती पर पहुंचे तो सिखों ने पूरे शहर को दीप जलाकर रोशन किया तभी से सिख धर्म के लोग इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हुए अपने घरों में दीये जलाते हैं। यह दिन दीवाली के दिन ही आता है इसलिए सिख दीवाली वाले दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं। समाज सेवी दविन्दरपाल सिंह पप्पू का मानना है कि गुरु साहिब चाहते तो अकेले बादशाह जहांगीर की कैद से रिहा हो सकते थे, मगर उन्होंने अपने साथ दूसरे राजाओं को भी कैद मुक्ति करवाकर एक सन्देश समूची मानवता को दिया उसी प्रकार सिख जत्थेबंिदयों को भी चाहिए कि गुरु साहिब के दिखाए मार्ग पर चलते हुए कौम की बेहतरी के लिए एकजुटता दिखाएं।
न्यूयार्क में गुरु तेग बहादुर जी के नाम पर सड़क : गुरु तेग बहादुर जी जिन्होंने मानतवा की एक ऐसी मिसाल कायम की और दूसरे धर्म की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहूती दे दी जो कि संसार में और कहीं भी देखने को नहीं मिलती कि कोई शक्स स्वयं अपने प्राणों का बलिदान देने के लिए आगे आया हो। उनकी शहादत को 350 साल हो चुके हैं और आज संसारभर में उनकी याद को लोग अपने अपने अंदाज में मनाते हुए दिख रहे हैं। सिख जत्थेबंिदयों और धार्मिक कमेटियांे के द्वारा तो शताब्दी पर कार्यक्रम किए जी जा रहे हैं, मगर गुरु जी की शहादत को केन्द्र और राज्यों की सरकारों के द्वारा सरकारी स्तर पर मनाने की तैयारियां की जा रही हैं। जिसे देखकर अब विदेशों में भी गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी शताब्दी पर वहां की सरकारों के द्वारा भी कुछ न कुछ ऐसा किया जा रहा है जो कि एक यादगार
बनकर रहेगा।
न्यूयॉर्क सिटी के क्वींस क्षेत्र में 114वीं स्ट्रीट और 101वीं एवेन्यू के चौराहे का आधिकारिक रूप से नामकरण “गुरु तेग बहादुर जी वे” के नाम से किया गया है। यह पहला अवसर है जब भारत के बाहर किसी स्थान ने नौवें सिख गुरु के सम्मान में इस प्रकार की श्रद्धांजलि दी है। यह पहल सिख नेताओं और समुदाय के सदस्यों के नेतृत्व में की गई है, जो गुरु तेग बहादुर जी की अमर विरासत का उत्सव मनाती है। वह विरासत जो धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा, मानव अधिकारों की सुरक्षा और न्याय के पक्ष में अडिग खड़े रहने का प्रतीक है। विदेशी लोग भी इस बात को मानने लगे हैं।
दरबार साहिब जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए रिहाईश की समस्या : पिछले कुछ सालों से देश ही नहीं विदेश की संगत का रुझान भी श्री दरबार साहिब के दर्शनों के लिए काफी बढ़ने के चलते हालात ऐसे बन चुके हैं कि रोजाना हजारों की गिनती में श्रद्धालुगण पहुंचते हैं और उनके लिए सबसे बड़ी समस्या रिहाईश की आती है, हालांकि शिरोमणि कमेटी द्वारा निरंतर नई रिहाईश बनाई भी जा रही हैं अनेक होटल भी हैं, मगर बावजूद इसके संगत को अक्सर परेशानी का सामना करना पड़ता है। दिल्ली के राजौरी गार्डन गुरुद्वारा साहिब के अध्यक्ष हरमनजीत सिंह जो कि शिरोमणि कमेटी सदस्य भी हैं उनका मानना है कि बड़ी सिंह सभाओं को इस ओर ध्यान देते हुए दरबार साहिब के नजदीक जगह लेकर सराओं का निर्माण करवाना चाहिए। राजौरी गार्डन की कमेटी ने तो इसकी शुरुआत कर दी है।
इससे पूर्व पीतमपुरा गुरुद्वारा द्वारा भी सराए बनाई गई है, अगर इसी प्रकार अन्य सिंह सभाएं भी आगे आकर इस कार्य को करें तो निश्चित तौर पर कुछ राहत संगत को दी जा सकती है खासकर दिल्ली की संगत को इधर उधर नहीं भटकना पड़ेगा और वह अपनी सिंह सभा में संपर्क कर रिहाईश ले सकेंगे।