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कश्मीर में ‘विदेशी’ पाकिस्तान

रक्षा मन्त्री श्री राजनाथ सिंह ऐसे राजनेता हैं जो प्रायः कम बोलते हैं मगर जितना…

10:56 AM Jan 15, 2025 IST | Aditya Chopra

रक्षा मन्त्री श्री राजनाथ सिंह ऐसे राजनेता हैं जो प्रायः कम बोलते हैं मगर जितना…

कश्मीर में ‘विदेशी’ पाकिस्तान

रक्षा मन्त्री श्री राजनाथ सिंह ऐसे राजनेता हैं जो प्रायः कम बोलते हैं मगर जितना भी बोलते हैं वह सारगर्भित होता है और उसके मतलब भी बहुत गंभीर माने जाते हैं, अतः उनका जम्मू-कश्मीर में खड़े होकर यह कहना कि पाक अधिकृत कश्मीर के बिना जम्मू-कश्मीर राज्य अधूरा है, बहुत मायने रखता है और यह बताता है कि भारत संसद द्वारा 1994 में सर्वसम्मति से पारित हुए उस प्रस्ताव से बंधा हुआ है जिसमें कहा गया है कि पाकिस्तान कश्मीर के कब्जाये गये इलाके को खाली करे क्योंकि पूरा जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न और अटूट हिस्सा है। राजनाथ सिंह ने अपने ताजा वक्तव्य से स्पष्ट कर दिया है कि पाक अधिकृत कश्मीर को खाली कराये बगैर भारत की सन्तुष्टि नहीं हो सकती क्योंकि 1994 के प्रस्ताव में यह साफ तौर पर कहा गया था कि पाकिस्तान कब्जाये हुए कश्मीर को खाली करे। इसके साथ यह भी सर्वविदित है कि पाकिस्तान इसी इलाके का प्रयोग भारत के खिलाफ आतंकवाद पनपाने के लिए लगातार करता आ रहा है।

यह भी तथ्य है कि पाक के कब्जे वाले कश्मीर में पाकिस्तान आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर चलाता है। इसका प्रमाण भी भारत ने कई बार दुनिया के सामने रखा है खासतौर पर 2008 में मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले के बाद। उस समय भारत के विदेश मन्त्री पद पर रहे स्व. प्रणव मुखर्जी ने पूरी दुनिया के सामने इसके प्रमाण रखे थे और पाकिस्तान काे आतंकवादी देश घोषित होने के कगार पर खड़ा कर दिया था। श्री राजनाथ सिंह ने भी साफ किया है कि पाक अधिकृत कश्मीर में आज भी एेसे प्रशिक्षण शिविर चल रहे हैं जिनका उपयोग भारत के खिलाफ आतंकवाद फैलाने में किया जा रहा है। इसके साथ रक्षा मन्त्री ने साफगोई का परिचय देते हुए यह भी कहा है कि अगर 1965 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय सेनाओं के लाहौर तक पहुंचने के बाद वार्ता की मेज पर हाजी पीर इलाके को पाकिस्तान को न लौटाया होता तो 1965 से ही पाक द्वारा आतंकवाद फैलाने पर काबू पा लिया गया होता। रक्षा मन्त्री का यह कहना कि 1947 से लेकर 1999 तक भारत-पाक के बीच जितने भी युद्ध हुए सभी में पाकिस्तान की करारी पराजय हुई, स्पष्ट करता है कि पाकिस्तान की नीति भारत पर आक्रमण करने की रही है।

1965 का युद्ध ऐसा युद्ध था जिसे पाकिस्तान के तब के फौजी हुक्मरान जनरल अय्यूब ने कश्मीर के मोर्चे पर ही लड़ा था मगर भारतीय फौजों ने इसका इतना करारा जवाब दिया था कि उन्होंने लाहौर तक पहुंचने में सफलता प्राप्त कर ली थी। मगर इस युद्ध के बाद सोवियत संघ ने बीच में पड़कर ताशकन्द समझौता कराया था जिससे दोनों देशों की फौजों को पूर्व स्थिति में लौटना पड़ा था। उस समय हाजी पीर के इलाके पर भारत का कब्जा हो गया था। श्री राजनाथ सिंह इतिहास की पर्तों का ऊपरी संज्ञान लेकर पाकिस्तान को याद दिला रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में उसकी हैसियत एक हमलावर मुल्क की है। अतः अपने कब्जे में जम्मू-कश्मीर का जो भी इलाका उसने ले रखा है वह उसे खाली करे। रक्षा मन्त्री जब भारत-पाक के बीच हुए चार युद्धों की बात करते हैं तो उनके सामने 1971 की बंगलादेश की लड़ाई भी होती है जिसमें भारत की फौजों ने पाकिस्तान को ही बीच से चीर दिया था और इसके दो टुकड़े कर डाले थे। इस युद्ध के बाद शिमला में दोनों देशों के बीच जो समझौता हुआ था उसमें भारत द्वारा न केवल कैद किये गये पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को रिहा करने का मामला था बल्कि जम्मू-कश्मीर विवाद को भी आपसी वार्ता द्वारा निपटाने का अहद था। इससे पाकिस्तान ने कश्मीर की समस्या को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाने का हक खो दिया था। अतः जब आज भारत यह कह रहा है कि पाकिस्तान अपने कब्जे से कश्मीर के एक भाग को मुक्त करे तो उसकी मंशा शान्तिपूर्वक तरीकों से ही इस मसले को सुलझाने की है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के लोगों की हालत लगातार बदतर बनाने की कोशिशें पाकिस्तानी हुक्मरान करते रहते हैं और दूसरी तरफ इसे आजाद कश्मीर कहते हैं जबकि उनकी आजादी अपने विच्छेदित कश्मीरी लोगों के साथ मिलने-जुलने और भारत का जायज हिस्सा बनने में ही निहित है। मगर पाकिस्तान ने इस इलाके को दहशतगर्दों की सैरगाह बना रखा है जिसका विरोध कभी-कभी हमें पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों द्वारा किया जाना भी सुनाई पड़ता है। अब जब श्री राजनाथ सिंह यह कह रहे हैं कि पाक के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवादी शिविर काम कर रहे हैं और इनकी मार्फत भारत में आतंकवाद फैलाया जाता है तो स्पष्ट है कि भारत सरकार इस मसले पर यथास्थिति को कबूल नहीं कर सकती है। क्योंकि 26 अक्तूबर, 1947 को जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने अपनी पूरी रियासत का विलय भारतीय संघ में किया था।

पाकिस्तान ने 1949 में राष्ट्रसंघ में स्वयं स्वीकार किया था कि 1947-48 में कश्मीर पर हमले में उसकी फौजें भी शामिल थीं। इससे पहले पाकिस्तान कहता था कि उसके इलाके के कबायली लोगों ने कश्मीर में हमला किया था। अतः बहुत स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की स्थिति एक हमलावर मुल्क की ही है। ऐसे हमलावर मुल्क से ही राजनाथ सिंह कह रहे हैं कि वह अपने कब्जे वाले कश्मीर के लोगों पर जुल्म ढहाना और उन्हें भारत के विरुद्ध भड़काना बन्द करे। क्योंकि कश्मीर के सन्दर्भ में पाकिस्तान की हैसियत एक विदेशी मुल्क की है। जहां तक भारत का सम्बन्ध है तो आज भी जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अपने इन लोगों के लिए 24 सीटें खाली पड़ी हुई हैं।

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