वोट की आजादी
आज़ाद भारत ने अपने लोगों को सबसे बेशकीमती चीज क्या दी है? किसी से भी पूछा जाए तो जवाब होगा, वोट। हम अधिकतर भारतीयों को आजादी के 78 साल बाद भी न काम का रोजगार दे सके, न मकान दे सके, न ही बच्चों के लिए सही शिक्षा ही दे सके। कइयों को तो रोटी, कपड़ा और मकान की भी समस्या रहती है। ले-देकर उनके पास उनका वोट है जो उन्हें हैसियत देता है, पहचान देता है, महत्व देता है और जो उन्हें पांच साल के बाद बदला लेने की ताकत देता है। इसी ताकत का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने इंदिरा गांधी से एमरजैंसी का बदला लिया, पर जनता पार्टी की सरकार की नालायकी को देखते हुए इंदिरा गांधी को फिर सत्ता सौंप दी। यूपीए की सरकार के भ्रष्टाचार की सजा दी गई और पिछले लोकसभा के चुनावों में भाजपा को बहुमत से नीचे ला कर उन्हें भी बता दिया कि केवल आकर्षक नारों से ही पेट नहीं भरता। अगर लोगों से कट जाओगे तो क़ीमत चुकानी पड़ेगी।
अमीर लोग तो अधिकतर घरों से ही नहीं निकलते जबकि बस्तियों के पास भारी मतदान होता है। चाहे बड़ी संख्या में वह अशिक्षित हों, पर वोट की क़ीमत वह जानते हैं। उनके लिए यह सशक्तिकरण का उपकरण है। उत्तर दिल्ली के ओल्ड सीलमपुर मार्केट में काम कर रहे बिहार के अरारिया ज़िले के मुकेश राज का कहना है कि वह घर केवल दो बार जाता है, छठ पूजा और चुनाव के लिए। वह कहता है कि वोट देना जरूरी है। उससे आप सिस्टम में रहते हैं। जो गरीब हैं, वंचित हैं, समाज की सबसे नीचे के पायदान पर खड़े हैं (और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में ऐसा लोग भरे हुए हैं) वह समझते हैं कि शासक और उत्पीड़क वर्ग से जवाबदेही के लिए वोट ही उनके पास एकमात्र हथियार है। चुनाव के समय उसकी वोट के कारण नेताजी भी हाथ जोड़ कर उसके द्वार पर खड़े हो जाते हैं। अगर किसी तकनीकी आधार पर या किसी और बहाने उन्हें वोट से वंचित किया गया तो यह न केवल हताशा बल्कि आक्रोष को भी जन्म दे सकता है।
जैसे मुकेश राज ने कहा है ‘सिस्टम’ में रहना आम आदमी के लिए बहुत जरूरी है। इसी कारण चुनाव आयोग ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया जो शुरू की है और जिस तरह की है उससे बहुत बेचैनी फैल गई है। कई असुखद सवाल उठ रहे हैं। 24 जून को अचानक चुनाव आयोग ने घोषणा कर दी कि वह बिहार में सही मतदाताओं की जांच के लिए एसआईआर शुरू कर रहा है। बिहार में नवम्बर में चुनाव होने हैं। इतने कम समय में क्या चुनाव आयोग 8 करोड़ मतदाताओं की सही जांच कर सकेगा? विशेष तौर पर उस प्रांत में जहां से भारी संख्या में लोग बाहर काम करने जाते हैं? ऐसी प्रक्रिया को सफलतापूर्वक करने के लिए समय चाहिए, पर बिहार में प्रक्रिया उस समय शुरू की गई जब वहां बाढ़ ग्रस्त लोगों को ऊपर से पैक्ट गिराए जा रहे थे। वहां सत्तारूढ़ जद (यू) के सांसद गिरिधारी यादव ने भी शिकायत की है कि प्रदेश का इतिहास और भूगोल जाने बिना चुनाव आयोग ने जबरदस्ती यह प्रक्रिया हम पर थोप दी है।
आयोग ने मतदाता सूची में नाम दर्ज करवाने के लिए जो शर्तें रखीं वह भी अजीब हैं। मतदाता को अपनी पहचान बताने के लिए जिन 11 दस्तावेज़ों में से एक बताना है उनमें आधार कार्ड, वोटर पहचान पत्र या राशन कार्ड नहीं है। अजीबोगरीब स्थिति है कि जिस पासपोर्ट के लिए आधार कार्ड चाहिए उसे तो सूची में रखा गया है, पर आधार कार्ड नहीं है! गजब है कि चुनाव आयोग ने तो अपना पिछला वोट पहचान पत्र ही अस्वीकार कर दिया। जिन्होंने वोटर कार्ड के बल पर 2020 में वहां वोट डाला था या 2024 के लोकसभा चुनाव में वोट डाला था निश्चित नहीं कि उन्हंे वोट का अधिकार मिलागा। 2011 की मतगणना के अनुसार बिहार में 50 प्रतिशत महिलाएं और 40 प्रतिशत पुरुष अशिक्षित हैं। तब से स्थिति बेहतर हुई है, पर अधिकतर के पास जो दस्तावेज आयोग मांग रहा है, वह नहीं हैं। न पासपोर्ट है, न जन्म या जाति या शिक्षा या जमीन या किसी सरकारी दफ्तर का कोई प्रमाण पत्र ही है। पूर्व राजनयिक पवन वर्मा जो बिहार से सांसद भी रहे हैं का लिखना है, “सच्चाई है कि वहां धरातल पर पूरी तरह से घबराहट और भ्रम की स्थिति है क्योंकि बेसहारा गरीब लोग अपना हक मांग रहे हैं”। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में दिल्ली में रह रहे बेगूसराय के अंकित कुमार के बारे बताया है जिसका कहना है कि वह वोट डालने जाना चाहता था, पर नहीं जा रहा क्योंकि उसके पास ‘केवल’ आधार कार्ड और वोटर कार्ड है जो मान्य नहीं है। उसने 2024 के लोकसभा चुनाव में वोट डाला था।
यह कितनी ज़्यादती है? आम आदमी अपनी नागरिकता कैसे सिद्ध करेगा? अवैध प्रवासियों को सूची से निकालने के बहाने वैध मतदाता वंचित नहीं होने चाहिए। चुनाव आयोग का काम वोटर जोड़ना है उन्हें वंचित करना नहीं। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि ड्राफ्ट मतदाता सूची से बाहर किए गए वोटर की सूची देना या नाम न शामिल करने का कारण बताना, क़ानून में जरूरी नहीं है। यह सही है, पर अगर आयोग यह बता दें तो क्या आफत आ जाएगी? चुनाव आयोग के अपने ड्राफ्ट रोल के अनुसार विशाल 65 लाख नाम वोटर लिस्ट से काटे गए हैं। यह कुल का 9% बनता है जो बहुत बड़ा और परेशान करने वाला आंकड़ा है। 1977 के बाद बिहार के हर चुनाव में वोटर बढ़े हैं, पर इस साल बहुत गिरावट होगी। वहां वयस्कों की संख्या लगातार तेज़ी से बढ़ रही है, पर वोटर घट रहे हैं! 65 लाख तो वह हैं जो वोटर लिस्ट से काटे जाएंगे, पर वह कितने हैं जो शामिल ही नहीं किए गए?पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी का कहना है कि चुनाव आयोग को अंतिम वोटर तक पहुंचना चाहिए, पर यहां तो लाखों काटे जा रहे हैं और कोई कारण सार्वजनिक नहीं किया जा रहा।
इस विवाद के बीच राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर 2024 के चुनाव में भाजपा के साथ मिल कर ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाया है। उनका आरोप है कि कर्नाटक की बैंगलोर सेंट्रल लोकसभा सीट के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में 100250वोट का फ्राड हुआ है। भाजपा और चुनाव आयोग के बीच कथित साज़िश का कोई प्रमाण राहुल गांधी ने नहीं दिया, पर वोटर लिस्ट में धांधली के कई प्रमाण उन्होंने दिए हैं। एक कमरे में 80 वोट हैं। कई फर्ज़ी पते हैं, कई डुप्लीकेट वोट हैं। उनके आरोप है कि इस धांधली के कारण ही भाजपा यह सीट जीतने में सफल रही। चुनाव आयोग का बिहार की एसआईआर और राहुल गांधी के महादेवपुरा विधानसभा चुनाव के बारे लगाए आरोपों के बारे जो असहयोग पूर्ण और अड़ियल रवैया है वह समझ से बाहर है। मैं राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ के आरोप से सहमत नहीं हूं, पर उनके गड़बड़ के आरोप काे गम्भीरता से लेना चाहिए। आख़िर राहुल गांधी आम नागरिक नहीं है, वह विपक्ष के नेता हैं। उनके आरोप को रफादफा नहीं किया जा सकता। अगर आयोग समझता है कि यह आरोप सही नहीं है तो उन्हें इनका प्रमाण सहित जवाब देना चाहिए। बार-बार यह कह कर कि ‘एफेडेविट दो’, ‘एफेडेविट दो’, आयोग खुद संशय पैदा कर रहा है। राहुल गांधी सबूत पेश कर रहे हैं, आप कह रहे हैं कि एफेडेविट दो! पूर्व चुनाव आयुक्त ओ.पी. रावत का सही कहना है कि आयोग को राहुल गांधी के आरोपों पर बिना औपचारिक शिकायत का इंतज़ार किए जांच करवानी चाहिए। चुनाव चाहे बिहार का हो या कर्नाटक के महादेवपुरा चुनाव क्षेत्र के बारे शिकायत हो, बिना जांच किए सबूतों को रद्द नहीं किया जाना चाहिए।
हर मामले पर अवरोध खड़ा करने से तो चुनाव आयोग की अपनी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। ठीक है कानूनी तौर पर आप जिनके नाम काटे गए हैं बताने और उसकी वजह बताने को बाध्य नहीं हैं, पर अगर संदेह को खत्म करने के लिए आप सूची सार्वजनिक कर दो तो दिक्कत क्या है? राहुल गांधी ने मांग की है कि मतदाता सूची डिजिटल फार्म में दी जाए ताकि मशीन के द्वारा जांच हो सके। यह भी नहीं दी जा रही। पेपर का पुलिंदा पकड़ाया जा रहा है जिसकी छानबीन में वर्षों लग जाएंगे। एक साफ-सुथरी पारदर्शी वोटर लिस्ट जिसमें सबका विश्वास हो निष्पक्ष और विश्वसनीय चुनाव के लिए जरूरी है। चुनाव आयोग को आत्म मंथन करना चाहिए। लोकतांत्रिक संस्थाएं पारदर्शिता से मजबूत होती हैं। जो मांगा जा रहा है वह डेटा दे कर आयोग विवाद को समाप्त कर सकता हैं, नहीं तो परेशानी बढ़ती जाएगी। 300 विपक्षी सांसदों ने अपनी शिकायतों के साथ चुनाव आयोग की तरफ मार्च किया है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला तो है नहीं कि आयोग जानकारी देने से इंकार कर रहा है। वोट लोकतंत्र का आधार है। वोट की आज़ादी पर आंच नहीं आनी चाहिए। चुनाव प्रकिया में विश्वास का क्षरण लोकतंत्र के लिए घातक है। सुप्रीम कोर्ट ने भी एसआईआर के बारे कहा है कि ‘भरोसे की कमी है’। यह भरोसा बहाल करना आयोग की प्राथमिकता होनी चाहिए। जो सवाल उठ रहे हैं इनका उचित जवाब मिलना चाहिए। जैसे कहा गया, न्याय होना ही नहीं चाहिए, न्याय होता दिखना भी चाहिए।